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ईसाई परिवार करता है दुर्गापूजा, दस वर्षों से स्थापित हो रही प्रतिमा

इसकी पहल अल्फ्रेड मार्शल पीटर ने की, जिन्होंने कुंजनगर के अपराजिता कांप्लेक्स में 2008 में इसकी शुरुआत की थी।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sun, 14 Oct 2018 05:57 PM (IST)Updated: Mon, 15 Oct 2018 09:30 AM (IST)
ईसाई परिवार करता है दुर्गापूजा, दस वर्षों से स्थापित हो रही प्रतिमा
ईसाई परिवार करता है दुर्गापूजा, दस वर्षों से स्थापित हो रही प्रतिमा

जमशेदपुर(वीरेंद्र ओझा)।  पश्चिम बंगाल से सटे होने और बंगाली बहुल क्षेत्र की वजह से जमशेदपुर में दुर्गापूजा का उल्लास कुछ ज्यादा ही रहता है। षष्ठी से दशमी तक पूरा शहर सड़क पर ही दिखता है। इस भीड़ में यह फर्क करना मुश्किल हो जाता है कि कौन किस धर्म से ताल्लुक रखता है। मूर्ति और पंडाल देखने की उत्सुकता, चेहरे पर मुस्कुराहट और परिवार की हंसी-ठिठोली धर्म-संप्रदाय की दूरियां मिटा देती है। 

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पर्व-त्योहार का आनंद उठाना एक बात है और उसे अपना बनाना दूसरी बात। इस धारणा को भी सोनारी का एक ईसाई परिवार तोड़ता नजर आता है। इसकी पहल अल्फ्रेड मार्शल पीटर ने की, जिन्होंने कुंजनगर के अपराजिता कांप्लेक्स में 2008 में इसकी शुरुआत की थी। पीटर बताते हैं कि जब वे फ्लैट में आए, तो उनके मन में आया कि क्यों ना हम अपनी कालोनी में दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें। इसमें उनकी पत्नी व बेटी ने हौसला बढ़ाया, तो कालोनी के शिशिर घोष, मोना माइती आदि से बात कर चंदा एकत्र करना शुरू किया।

कॉलोनी में रहते 75 परिवार

कालोनी में 75 परिवार रहते हैं, सभी ने सहयोग किया। तब से उनके यहां ना केवल पंडाल में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित होती है, बल्कि सप्तमी से नवमी तक सांस्कृतिक कार्यक्रम और भोग वितरण भी होता है। दुर्गोत्सव के प्रति मेरी ललक को देखते हुए कालोनी के लोग आयोजन की अहम जिम्मेदारी उन्हें ही दे देते हैं। धर्म की बात पर पीटर कहते हैं कि वह इसे धर्म से हटकर उत्सव के रूप में देखते हैं। यह ऐसा उत्सव है, जिसमें खासकर जमशेदपुर में रहने वाला कोई व्यक्ति चाहकर भी खुद को अलग नहीं रख सकता। मैं यहां बचपन से ही इस उत्सव का आनंद लेता आया हूं, इसलिए बड़े होने पर भी दुर्गापूजा आते ही मचलने लगता हूं।

आपसी मेलजोल है मिसाल

कालोनी में कोई मुझे अलग नहीं समझता। क्रिसमस के दिन मेरे घर पर भी कालोनी के सभी परिवार आते हैं। वे भी उसी तरह उत्साहित रहते हैं, जैसा मैं दुर्गोत्सव में रहता हूं। उनकी कालोनी में एक और ईसाई दंपती है। वे भी उत्सव में शामिल होते हैं। कालोनी में बिहारी व बंगाली के अलावा गुजराती और सिख परिवार भी हैं। हम सभी एक परिवार की तरह रहते हैं। यह संयोग है कि कालोनी में कोई मुस्लिम परिवार नहीं है, वरना हम ईद-बकरीद भी मिलकर मनाते।  


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