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जीवित्पुत्रिका व्रत: जानिए किस मुहूर्त में व्रत करना रहेगा फलदायी Jamshedpur News

काशी से प्रकाशित पंचांगों के अनुसार जीवत्पुत्रिका व्रत 22 सितंबर रविवार को है। इस बार शनिवार 21 सितंबर को दिन में 333 बजे तक सप्तमी तिथि रहेगी।

By Vikas SrivastavaEdited By: Published: Thu, 19 Sep 2019 07:55 PM (IST)Updated: Fri, 20 Sep 2019 11:27 AM (IST)
जीवित्पुत्रिका व्रत: जानिए किस मुहूर्त में व्रत करना रहेगा फलदायी Jamshedpur News
जीवित्पुत्रिका व्रत: जानिए किस मुहूर्त में व्रत करना रहेगा फलदायी Jamshedpur News

जमशेदपुर, जेएनएन। पौराणिक कथाओं व मान्यताओं के आधार पर माताओं द्वारा संतान की रक्षा हेतु किया जाने वाला प्रमुख व्रत जीवित्पुत्रिका है। इसे जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की उदया अष्टïमी तिथि को किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिउतिया अर्थातï जीवित्पुत्रिका व्रत को करने से पुत्र शोक नहीं होता है। अत: इस व्रत को माताएं पुत्र की लंबी आयु, रक्षा, आरोग्य, सबलता, सुख, समृद्घि, ख्याति एवं कष्टों से मुक्ति की कामना से करती हैं। क्षेत्रीय लोकाचार एवं मान्यताओं के आधार पर इस व्रत में माताएं सप्तमी तिथि को दिन में नहाय-खाय, रात में विधिवतï पवित्र भोजन करके, अष्ïटमी तिथि के सूर्योदय से पूर्व भोर में ही सरगही व चिल्हो सियारो को भोज्य पदार्थ अर्पण कर व्रत का प्रारंभ करती हैं तथा विधिवतï राजा जीमूतवाहन की कथा को श्रवण करती हैं। 

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राजा जीमूतवाहन की पूजा क्यों

राजा जीमूतवाहन अति दयालु परोपकारी व धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने गरुड़ से सर्पों की रक्षा हेतु अपने शरीर को गरुड़ के समक्ष भोजन हेतु समर्पित कर सर्प की माता को पुत्र शोक से बचाया। राजा के इस परोपकारी कृत्य से गरुड़ जी अति प्रसन्न हुए तथा राजा की प्रार्थना पर पूर्व में सभी मारे गए सर्पों को उन्होंने जीवित कर दिया। इसी कारण इस व्रत में राजा जीमूतवाहन की पूजा होती है तथा इस व्रत को जीवत्पुत्रिका या जिउतिया व्रत कहा जाता है।    

काशी से प्रकाशित पंचांगों के अनुसार जीवत्पुत्रिका व्रत 22 सितंबर रविवार को है। इस बार शनिवार 21 सितंबर को दिन में 3:33 बजे तक सप्तमी तिथि रहेगी, तदुपरांत अष्टïमी तिथि लग रही है। अïष्टमी तिथि रविवार 22 सितंबर को दिन में 2:40 बजे तक रहेगी तदुपरांत नवमी तिथि लगेगी। पौराणिक व शास्त्रीय उल्लेखों के अनुसार सूर्योदय कालीन शुद्घ अष्टïमी तिथि में व्रत करके तिथि के अंत में अर्थातï नवमी तिथि में पारण करना वर्णित है। सप्तमी विद्ध अष्टमी तिथि में व्रत प्रारंभ करना शास्त्रसम्मत नहीं है। 

कात्यायन के अनुसार- आश्विने बहुले पक्षे याष्टमी भास्करोदये। स्वल्पापि चेतï तदा कार्या सा स्मृता जीवत्पुत्रिका।। 

माधवाचार्य के अनुसार- उदये चाष्टïमी किंचितï सकला नवमी भवेत सैवोपोष्या वरस्त्रीभि: पूजयेज्जीवतï् पुत्रिकामï। निराहारं व्रतं कुर्यातï तिथ्यन्ते पारणं सदा।।    

अर्थातï जिउतिया व्रत सूर्योदय के उपरांत की शुद्घ अष्टमी में करना शास्त्रानुसार उचित है। अत: जिउतिया व्रत हेतु शनिवार 21 सितंबर को दिन में नहाय-खाय, रात्रि में शुद्घ भोजन, भोर में अर्थातï रात्रि शेष 3:00 बजे से 4:00 बजे के मध्य सरगही एवं रविवार 22 सितंबर को शुद्घ उदया अष्टïमी तिथि में जिउतिया व्रत एवं पूजन करना श्रेयस्कर रहेगा। जिउतिया व्रत का पारण सोमवार 23 सितंबर को प्रात: सूर्योदय के उपरांत करना शास्त्रोचित होगा। विशेष परिस्थिति में रविवार को पूजनोपरांत रात्रि मेंनवमी तिथि में जलपान या पारण करना भी शास्त्रसम्मत है। व्रत के दौरान शांत चित्त, क्रोध से दूर रहते हुए, सदï्विचार के साथ भगवतï् भजन व ध्यान करें। परमपिता परमेश्वर की कृपा से सभी माताओं का व्रत सफल हो तथा उन्हें अभीष्ट व पूर्ण फल की प्राप्ति हो।        

पं. रमा शंकर तिवारी, ज्योतिषाचार्य


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