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यहां ब्याह दी जाती नाबालिग, पल्ला झाड़ लेते रोकने के लिए जिम्मेदार

कानून व तमाम जागरूकता कार्यक्रमों के बावजूद आज भी ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह की प्रथा को पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सका है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 09 Mar 2019 03:15 PM (IST)Updated: Sat, 09 Mar 2019 03:15 PM (IST)
यहां ब्याह दी जाती नाबालिग, पल्ला झाड़ लेते रोकने के लिए जिम्मेदार
यहां ब्याह दी जाती नाबालिग, पल्ला झाड़ लेते रोकने के लिए जिम्मेदार

जमशेदपुर [विकास श्रीवास्तव]।  कानून व तमाम जागरूकता कार्यक्रमों के बावजूद आज भी ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह की प्रथा को पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सका है। सरायकेला-खरसावां जिले ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह अक्सर सुनने को मिलता है।

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कुछ बाल विवाह को रोके भी गए लेकिन सभी नहीं। यदि कोई जागरूक संस्था या लोग इस कुप्रथा को रोकना चाहें तो जिम्मेदार लोग झाड़ लेते हैं। रोकने की कोशिश विफल हो जाती है और बीड़ा उठानेवाले अलग-थलग पड़ जाते हैं। सवाल यह है कि नासमझी, जागरूकता की कमी या कम पढ़े-लिखे होने की वजह से नाबालिग की शादी करा देने वाले  जिम्मेदार हैं या समय रहते जानकारी मिल जाने के बावजूद इसे रोकने की जहमत नहीं उठानेवाला तंत्र। 

बीडीओ, सीडीपीओ को जानकारी देने के बावजूद ब्याह दी गई नाबालिग

मामला सरायकेला-खरसावां जिले के चौका थाना अंतर्गत धुनाबुरू गांव का है। यहां 2018 में 11 मई को बानसा के धुनाबुरू में एक नाबालिग लड़की की शादी होनी तय थी। नौ मई को वैवाहिक कार्यक्रम शुरू हो चुके थे। शादी से एक दिन पहले 10 मई को झारखंड ह्यूमन राइट्स के अध्यक्ष दिनेश कुमार किनू की ओर से प्रखंड विकास अधिकारी व महिला एवं बाल विकास पदाधिकारी (सीडीपीओ) को पहले मोबाइल पर व उसके बाद संपर्क कर जानकारी दी गई। किसी भी पदाधिकारी ने बाल विवाह रोकने की जहमत नहीं उठाई और नाबालिग ब्याह दी गई।

अब पदाधिकारियों पर कार्रवाई के लिए जूझ रहा शिकायतकर्ता

नाबालिग की शादी हो गई। पूर्व सूचना के बावजूद बाल विवाह नहीं रोके जाने पर झारखंड ह्यूमन राइट्स की ओर से मामले को मुख्यमंत्री जनसंवाद में ले जाया गया और संबंधित पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई। शिकायत की प्रति राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष को भी प्रेषित की गई। जनसंवाद में सुनवाई शुरू हुई। दोनों आरोपित पदाधिकारियों की ओर से प्रतिवेदन नहीं देने पर 3 अगस्त को मामले को उपायुक्त के संज्ञान में लाकर प्रतिवेदन समर्पित करने को कहा गया। यही निर्देश अगली दो सुनवाई में 21 जून व 14 अगस्त को जारी किया गया। अबतक इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।

थाना प्रभारी ने किया गुमराह

मुख्यमंत्री जनसंवाद से कार्रवाई के बारे में रिपोर्ट मांगने पर चांडिल थाने की ओर से गुमराह करनेवाली रिपोर्ट भेजी गई। इसमें कहा गया कि बाल विवाह हुआ ही नहीं। शादी के कार्ड को भी झूठा साबित करने की कोशिश की गई जबकि ब्याही गई नाबालिग आज भी सातवीं कक्षा में पढ़ रही है।  


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