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गोवंश की तस्करी का सेफ जोन बना ओडिशा का रायरंगपुर

झारखंड में राज्य सरकार की सख्ती के कारण गोवंश की तस्करी पर अ

By JagranEdited By: Published: Sat, 30 Jun 2018 08:07 PM (IST)Updated: Sat, 30 Jun 2018 08:51 PM (IST)
गोवंश की तस्करी का सेफ जोन बना ओडिशा का रायरंगपुर

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : झारखंड में राज्य सरकार की सख्ती के कारण गोवंश की तस्करी पर अंकुश लगा है। इस कारण इन दिनों गोवंश की तस्करी का सेफ जोन ओडिशा का रायरंगपुर बन गया है, जो झारखंड के पूर्वी सिंहभूम व सरायकेला-खरसावां जिले की सीमा से सटा है। बावजूद इसके गोवंश की तस्करी रोकने की ओर ओडिशा सरकार का कोई ध्यान नहीं है। इसी का फायदा तस्कर उठाते हैं और इसकी तस्करी झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश तक करते हैं।

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सुनसान इलाके में स्टॉक यार्ड

ओडिशा के रायरंगपुर के इस क्षेत्र में मेन रोड से वाहनों की आवाजाही होती है, लेकिन अधिकांश इलाका सुनसान ही रहता है। दूरदराज में इक्का-दुक्का गांव हैं, लेकिन वहां के ग्रामीणों को इससे कोई मतलब नहीं। यही कारण है कि तस्करों ने रायरंगपुर से ति¨रग गेट तक को स्टॉक यार्ड बना लिया है। इस इलाके के जंगलों में जगह-जगह गोवंश के झुंड देखने को मिल जाएंगे।

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ऐसे होती है तस्करी

स्टॉक यार्ड से मांग के अनुसार आपूर्ति की जाती है। बड़ी खेप ओडिशा के बारीपदा तक ले जाई जाती है। बारीपदा से ट्रक में लादकर पश्चिम बंगाल की सीमा मुर्शिदाबाद तक यह खेप पहुंचाई जाती है। यहां बांग्लादेश के कारोबारी भी इस धंधे में जुड़े हैं। इस कारण इसकी तस्करी बांग्लादेश तक की जा रही है।

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अधिकतर चोरी के मामले

तस्करों तक पहुंचने वाले गोवंश अधिकतर चोरी के होते हैं, शहरी या सीमावर्ती क्षेत्रों से चोर इन्हें लग्जरी कारों में भी भरकर गंतव्य तक पहुंचाते हैं। हालांकि इनके एजेंट गांव में भी घूमते रहते हैं। ये गरीब ग्रामीणों को एक-दो हजार रुपये देकर खरीद लेते हैं।

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एक से दूसरे स्थान पर पहुंचानेवालों को मिलते हैं 300 रुपये

गोवंश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने के लिए महज तीन-चार लोग रखे जाते हैं। यही 50-100 के झुंड को एक सीमा से दूसरी सीमा तक पशुओं को हांकते हुए ले जाते हैं। इसके लिए इन्हें दो से तीन सौ रुपये तक दिए जाते हैं। चार से छह घंटे की दूरी तय करने के बाद ये लौट आते हैं। वहां से दूसरे लोग इसके लिए लगाए जाते हैं, उन्हें भी इतनी ही राशि दी जाती है। इन्हें एस्कॉर्ट करने वाले बाइक या कार से आगे-पीछे चलते हैं, ताकि रास्ते में कहीं बाधा आए तो निपट सकें। यही नहीं खेप को जब ट्रक से ले जाया जाता है तो दो कार आगे और दो कार (स्कार्पियो-बोलेरो) चलती है। उसमें हरवे-हथियार के साथ पांच-छह लोग रहते हैं। ये एस्कॉर्ट करते हुए ट्रक को पार कराते हैं। अमूमन ये इन ट्रकों को ऐसे रास्तों से ले जाते हैं, जहां चेकपोस्ट नहीं पड़ता। वैसे कहीं चेकिंग में पकड़े गए तो पुलिस को मोटी रकम देकर निकल जाते हैं। तस्करों को एक-एक गोवंश के बदले 20-25 हजार रुपये मिलते हैं।

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गोवंश की तस्करी के लिए नया फंडा अपनाया जा रहा है। अब ये एक गोवंश के साथ खुले वाहन पर बछड़े के साथ ले जाते हैं, ताकि कोई समझे कि पालने के लिए ले जाया जा रहा है। वास्तव में एक ही बछड़े से कई गायों को पार कराया जाता है। जब हम लोग विरोध करते हैं, तो पुलिस-प्रशासन हमें ¨हसक बताकर आरोप लगा देती है।

- संजय कुंवर, प्रांत के प्रचार-प्रसार, विहिप

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तस्करी की वजह से देसी नस्ल खत्म हो गए हैं। अब हर जगह जर्सी नस्ल के गोवंश दिख रहे हैं। हालांकि सरकार अब गिर व सहिवाल नस्ल की ब्रीडिंग कराने पर जोर दे रही है। हम तस्करी को रोकने के लिए लगे हुए हैं।

- जनार्दन पांडेय, मंत्री, जमशेदपुर महानगर, विहिप

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