झारखंड का एकमात्र ऐसा बोधि विहार जहां रहते हैं बौद्ध भिक्षु भी
वर्ष 1956 में बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा जब जमशेदपुर आए थे, तब पौधे को बोधगया से लेकर आए थे। उन्होंने बौद्ध विहार परिसर में इसे लगाया था।
जमशेदपुर [दिलीप कुमार]। राजकुमार सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) ने जिस वृक्ष के नीचे बैठकर दशकों पूर्व ज्ञान प्राप्त किया था, उस बोधि वृक्ष को दुनिया में हर कोई सम्मान देता है। बौद्ध समाज के लोग तो इसकी पूजा भी करते हैं। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए सम्राट अशोक ने भी इस पवित्र पौधे को श्रीलंका समेत दुनिया के कई देशों में खुद रोपा था। यह बोधि वृक्ष झारखंड के पूर्वी सिंहभूम के जमशेदपुर में भी है। लेकिन यहां इसे बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा ने वर्ष 1956 में रोपा था। विशाल पेड़ बन चुके इस बोधि वृक्ष के नन्हे पौधे को तब बिहार के गया जिले से यहां लाया गया था। यदि आप इसे देखना चाहते हैं तो चले आइए साकची स्थित बोधि सोसाइटी परिसर।
दलाई लामा खुद लेकर आए थे पौधा
वर्ष 1956 में बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा जब जमशेदपुर आए थे, तब इस पौधे को अपने साथ बोध गया से लेकर आए थे। उन्होंने विश्व शांति का संदेश देने के लिए बौद्ध विहार परिसर में इसे लगाया था। अब यह ऐतिहासिक पेड़ लोगों के आस्था का केंद्र बन गया है। इस विशाल पेड़ के नीचे बैठकर लोग शांति की अनुभूति करते हैं।
नियमित होती है पूजा
इस बोधि वृक्ष की रोज नियमानुसार पूजा की जाती है। बौद्ध समाज के लोग इसके नीचे बैठकर विश्व शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। इस प्रार्थना के लिए विशेष मंत्र का उच्चारण करते हैं। साथ ही इस पेड़ के नीचे ही बौद्ध समाज के लोग जनेऊ, दीक्षा आदि अनुष्ठान करते हैं। बोधि वृक्ष पर हर दिन जल अर्पित करना बौद्ध समाज में सौभाग्य माना जाता है।
वर्ष 2001 में बना झारखंड मुख्यालय
जमशेदपुर स्थित बोधि सोसाइटी झारखंड राज्य का मुख्यालय भी है। बिहार से अलग राज्य बनने के बाद वर्ष 2001 में बुद्ध पूर्णिमा के दिन सोसाइटी को प्रदेश का बौद्ध मुख्यालय घोषित किया गया था। यह झारखंड का एकमात्र ऐसा बोधि विहार है जहां बौद्ध भिक्षु भी रहते हैं। जमशेदपुर बोधि विहार के अध्यक्ष डॉ. के. संघरक्षित महाथेरा हैं। ये भारतीय संघराज भिक्षु महासभा के उप संघराज भी हैं। साथ ही बोधि सोसाइटी में प्रियदर्शी भिक्षु और धर्मदर्शी भिक्षु भी रहते हैं।
ये भी जानें
- 1956 में बिहार के गया जिले से यहां लाया गया था बोधि वृक्ष
- बोध गया से खुद दलाई लामा लेकर यहां आए थे नन्हा पौधा