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धर्म का मार्ग सबसे अच्छा, पर चलना कठिन

साकची बौद्ध विहार में मनाया गया चिवरदान उत्सव

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 01:55 AM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 01:55 AM (IST)
धर्म का मार्ग सबसे अच्छा, पर चलना कठिन
धर्म का मार्ग सबसे अच्छा, पर चलना कठिन

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : जमशेदपुर बोधि सोसायटी द्वारा रविवार को साकची स्थित बौद्ध मंदिर में आयोजित दानोत्तम कठिन चिवरदान उत्सव मनाया गया। कठिन चिवरदान उत्सव उस बोध विहार में होता है जिसमें आषाढ़ी पूर्णिमा से लेकर आसिन पूर्णिमा तक बौध भिक्षु ध्यानमग्न रहते हैं। उसी बौध विहार में आसिन पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा के बीच दानोत्तम कठिन चिवरदान उत्सव मनाया जाता है। रविवार को साकची स्थित बौध विहार में मनाए गए कठिन चिवरदान उत्सव में डा. के संगरक्षित विहार अध्यक्ष बोधी सोसायटी जमशेदपुर सह झारखंड प्रदेश गोध मुख्यालय का विहार अध्यक्ष मुख्य रूप से उपस्थित थे। इनके साथ ही नई दिल्ली से डा. श्रीमत कुच्चायन महाखेरा, बोद्ध गया से श्रीमत धम्मिका महाखेरा, श्रीमत सुमंगल महाखेरा, श्रीमत पूर्णानंद महाखेरा, प्रियदर्शी भिक्षु और उपाली भिक्षु आदि शामिल थे। उत्सव में जिला के उपायुक्त अमित कुमार और वरीय पुलिस अधीक्षक अनुप बिरथरे भी शामिल हुए।

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चिवरदान उत्सव का शुभारंभ विश्व शाति प्रार्थना के साथ हुआ। दस बजे झंडोत्तलन किया गया औश्र अनुयायियों ने संगदान किया। मौके पर सामुहिक भोजन किया गया। इसके बाद बौद्ध विहार से साकची गोलचक्कर तक शोभा यात्रा निकाला गया। बौद्ध विहार में शाम चार बजे से धर्म सभा का आयोजन किया गया। शाम सात बजे विश्व शांति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ एक हजार एक दीया जलाकर महोत्सव का समापन हुआ।

धर्म का मार्ग सबसे अच्छा है, लेकिन उस पर चलना आसान नहीं होता है। जो एक बार धर्म के मार्ग पर चलना प्रारंभ करता है, वह सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है। यह बात डा के संगरक्षित ने कही। उन्होंने सभी को धर्म का पालन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलने का आग्रह किया। उत्सव को पूर्वी सिंहभूम जिले के उपायुक्त अमित कुमार, वरीय पुलिसस अधीक्षक अनुप बिरथरे समेत बौद्ध भिक्षुओं ने भी संबोधित किया। मौके पर मंदिर परिसर में भक्तों की भारी भीड़ रही। भक्तों के आने का सिलसिला अल सुबह से शुरू हो गया था, जो शाम तक जारी रहा। उत्सव में पूरे झारखंड के साथ पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, महाराष्ट्र आदि स्थानों से बौद्ध अनुयायी पहुंचे थे।


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