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    Bibhutibhushan Bandopadhyay Birth anniversary : अमर प्रेम के रचयिता को यूं ही नहीं मिला श्रेष्ठ साहित्यकार का दर्जा

    By Rakesh RanjanEdited By:
    Updated: Thu, 12 Sep 2019 10:37 PM (IST)

    विभूतिभूषण बंदोपाध्याय को आधुनिक भारत के श्रेष्ठ साहित्यकार का दर्जा दिया गया है। उनके जन्मदिन पर पढि़ए उनका पूरा सफरनामा। ...और पढ़ें

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    Bibhutibhushan Bandopadhyay Birth anniversary : अमर प्रेम के रचयिता को यूं ही नहीं मिला श्रेष्ठ साहित्यकार का दर्जा

    जमशेदपुर, जेएनएन। पश्चिम बंगाल की माटी में जन्मे और झारखंड की सरजमी से शब्दों को कागज पर उकेर कर अमर प्रेम की कालजयी रचना करनेवाले विभूतिभूषण बंदोपाध्याय को यूं ही आधुनिक भारत के श्रेष्ठ साहित्यकार का दर्जा नहीं मिल गया। आइए उनके जन्मदिन पर आपको बताते हैं उनका पूरा सफरनामा।
    विभूतिभूषण बंदोपाध्याय की बांग्ला कहानी हिंगेर कोचुरी पर 1972 में बनी फ‍िल्म अमर प्रेम दर्शकों को इतनी पसंद आई कि इसे फ‍िल्मफेयर पुरस्कार मिला। इस कहानी पर पहले ही बांग्ला फ‍िल्म निशि पद्मा बन चुका था। अमर प्रेम शक्ति सामंत के निर्देशन में बनी थी। इसमें राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर नायक-नायिका की भूमिका में थे। शर्मिला टैगोर वेश्या की भूमिका में थी जो पति की दूसरी शादी के बाद ससुराल और मायके दोनों जगह से ठुकरा दी गई और फ‍िर धोखे से वेश्यालय में बेच दी गई।

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    कहानीकार की थे संतान

    विभूतिभूषण बंदोपाध्याय का जन्‍म 12 सितंबर 1894 को हुआ था। उन्हें सबसे प्रसिद्ध रचना पाथेर पांचाली के लिए जाना जाता है, जिसपर तब के नामचीन फिल्म निर्माता सत्यजीत रे ने फ‍िल्म भी बनाई थी। बंदोपाध्याय का जन्म पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के मुरातीपुर में हुआ था। उनके पिता संस्कृत के विद्वान और कहानीकार थे। बंदोपाध्याय पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। बंदोपाध्याय प्रतिभाशाली छात्र थे और उन्होंने बोंगन हाई स्कूल में अध्ययन किया। उसके बाद उन्होंने रिपन कॉलेज कोलकाता में अर्थशास्त्र, इतिहास और संस्कृत की डिग्री पूरी की।

    शिक्षक के रूप में भी किया काम

    अपनी शिक्षा के बाद बंदोपाध्याय ने शिक्षक और यात्रा प्रचारक के रूप में भी काम किया। वे संगीत के क्षेत्र में लोकप्रिय खेलचंद घोष के साथ भी जुड़े थे। बंदोपाध्याय ने खेलचंद्र के बच्चों को कोचिंग दी और खेलचंद्र मेमोरियल स्कूल में एक शिक्षक के रूप में भी काम किया। बाद में बंदोपाध्याय अपने मूल स्थान पर लौट आए जहां उन्होंने गोपालनगर स्कूल में शिक्षक के रूप में काम किया।

    पाथेर पांचाली को मिली थी काफी प्रसिद्धि‍

    एड्रैश हिंदू होटल, बिपिनर संसार, पाथेर पांचाली और इचमाटी उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं। हालाकि सर्वाधिक प्रसिद्धि‍ पाथेर पांचाली को मिली। बंदोपाध्याय ने अपनी पहली लघु कहानी 1921 में प्रोबेशिता शीर्षक से प्रकाशित की। 1928 में उन्होंने अपना पहला उपन्यास पाथेर पांचाली (छोटी सड़क का गीत) प्रकाशित किया। पाथेर पांचाली और इसके सीक्वल अपराजितो ने बंदोपाध्याय को बंगाली साहित्य की दुनिया में विशिष्ट नाम बना दिया और दोनों किताबों का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया।

     इचमाती में गांव की हकीकत

    उनके उपन्यास इचमाती में अविभाजित बंगाल से होकर बहने वाली इचमाती नदी के किनारे के ग्रामीण जीवन की तस्वीर है। प्रचलित जाति व्यवस्था का एक सुंदर चित्रण इसमें किया गया है। धार्मिक और सामाजिक जीवन पर रोशनी डालते उपन्यास में बड़े करीने से जातिवाद पर भी चोट है। 

    55 वर्ष की उम्र में निधन

    बंदोपाध्याय के लेखन को अपार आलोचनात्मक प्रशंसा मिली और यहां तक ​​कि उनकी तुलना शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की पसंद से की गई। उपन्यास पाथेर पांचाली सीबीएसई पाठ्यक्रम का हिस्सा है जो बंगाली का विकल्प चुनते हैं। एक ब्रिटिश कवि और साहित्यिक आलोचक मार्टिन सेमोर स्मिथ ने बंदोपाध्याय को एक बेहतरीन आधुनिक भारतीय उपन्यासकार के रूप में वर्णित किया है। इस महान लेखक का 1 नवंबर 1950 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। तब वे  55 वर्ष के थे।

    झारखंड के घाटशिला से गहरा रिश्ता

    झारखंड के घाटशिला से उनका गहरा रिश्ता था। यहां दाहीगोड़ा में उनका आवास था। उसका नाम गौरी कुंज है। 126वीं जयंती के अवसर पर पूर्व विधायक बास्ता सोरेन सहित अन्य ने उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। आवास परिसर में लोगों ने पौधे भी लगाए। इस माैके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किए गए।