सहसा विश्वास ही नहीं हुआ, हक्का-बक्का रह गई : बछेंद्री
भारत में साहसिक अभियान का पर्याय बन चुकी बछेंद्री पाल को शुक्रवार को भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया। शुक्रवार की शाम पांच बजे, हर रोज की तरह बछेंद्री जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स स्थित टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन स्थित कार्यालय में अपने अगले अभियान की तैयारी कर रहीं थीं, तभी केंद्रीय गृह मंत्रालय के सचिव का फोन आया। बकौल बछेंद्री, 'मैं तो हक्का-बक्का रह गई। मैंने गृह मंत्रालय के सचिव से कहा, मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है।
-
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : भारत में साहसिक अभियान का पर्याय बन चुकी बछेंद्री पाल को शुक्रवार को भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया। शुक्रवार की शाम पांच बजे, हर रोज की तरह बछेंद्री जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स स्थित टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन स्थित कार्यालय में अपने अगले अभियान की तैयारी कर रहीं थीं, तभी केंद्रीय गृह मंत्रालय के सचिव का फोन आया।
बकौल बछेंद्री, 'मैं तो हक्का-बक्का रह गई। मैंने गृह मंत्रालय के सचिव से कहा, मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है। सचिव ने कहा, मैम आप इस योग्य हो।' बछेंद्री ने बताया कि यह खबर सुनकर वह उनके पांव जमीन पर टिक नहीं रहे थे। सचिव ने बताया कि इसकी आधिकारिक घोषणा रात 10 बजे के बाद की जाएगी। इस दौरान मैंने भी इस बारे में किसी को नहीं बताया।
1994 में पद्मश्री पुरस्कार हासिल करने वाली बछेंद्री को 18 साल बाद पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। हाल ही में नमामि गंगे अभियान के तहत गंगा की सफाई कर चुकी बछेंद्री इस सम्मान को अपने माता-पिता, टाटा स्टील व देश के बच्चों को समर्पित करना चाहती है। उन्होंने कहा कि मां-बाप से जो संस्कार मिले, उसे टाटा स्टील ने आगे बढ़ाया। जब मैं सोचती हूं कि देश के लाखों-करोड़ों बच्चे पुस्तकों में मेरे बारे में पढ़ते हैं तो मैं रोमांचित हो जाती हूं। आज भी छोटे बच्चे पत्र में स्केच बनाकर भेजते हैं।
--
दर्जनों को दिखाई एवरेस्ट की राह
24 मई 1954 को उत्तराखंड में जन्मी बछेंद्री ने 23 मई 1984 को एवरेस्ट फतह करने वाली भारत की पहली महिला पर्वतारोही बनी। तब से लेकर आजतक बछेंद्री साहसिक अभियान के जरिए दर्जनों पर्वतारोहियों को एवरेस्ट की राह दिखाई। चाहे वह सबसे ज्यादा उम्र में एवरेस्ट फतह करने वाली महिला प्रेमलता अग्रवाल हो या फिर हादसे में एक पैर खो चुकी अरुणिमा मिश्रा। टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की मुखिया बछेंद्री को शुरुआत में मेधावी और प्रतिभाशाली होने के बावजूद उन्हें कोई अच्छा रोजगार नहीं मिला। जो मिला वह अस्थायी, जूनियर स्तर का था और वेतन भी बहुत कम था। इससे बछेंद्री को निराशा हुई और उन्होंने नौकरी करने के बजाय नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग कोर्स के लिये आवेदन कर दिया। यहां से बछेंद्री के जीवन को नई राह मिली। 1982 में एडवास कैंप के तौर पर उन्होंने गंगोत्री (6,672 मीटर) और रूदुगैरा (5,819) की चढ़ाई को पूरा किया। इस कैंप में बछेंद्री को ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने बतौर इंस्ट्रक्टर पहली नौकरी दी। हालाकि पेशेवर पर्वतारोही होने की वजह से उन्हें परिवार और रिश्तेदारों के विरोध का सामना भी करना पड़ा।
12 साल में मिला पहला मौका
बछेंद्री के लिए पर्वतारोहण का पहला मौक़ा 12 साल की उम्र में आया, जब उन्होंने अपने स्कूल की सहपाठियों के साथ 400 मीटर की चढ़ाई की। 1984 में भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ। इस अभियान में जो टीम बनी, उस में बछेंद्री समेत सात महिलाओं और 11 पुरुषों को शामिल किया गया था। इस टीम के द्वारा 23 मई 1984 को अपराह्न एक बजकर सात मिनट पर 29,028 फुट (8,848 मीटर) की ऊंचाई पर सागरमाथा (एवरेस्ट) पर भारत का झडा लहराया गया। इस के साथ एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक कदम रखने वाले वे दुनिया की पांचवीं महिला बनीं। भारतीय अभियान दल के सदस्य के रूप में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण के कुछ ही समय बाद उन्होंने इस शिखर पर महिलाओं की एक टीम के अभियान का सफल नेतृत्व किया। उन्होने 1994 में गंगा नदी में हरिद्वार से कोलकता तक 2,500 किमी लंबे नौका अभियान का नेतृत्व किया। हिमालय के गलियारे में भूटान, नेपाल, लेह और सियाचिन ग्लेशियर से होते हुए काराकोरम पर्वत श्रृंखला पर समाप्त होने वाला 4,000 किमी लंबा अभियान उनके द्वारा पूरा किया गया, जिसे इस दुर्गम क्षेत्र में प्रथम महिला अभियान का प्रयास कहा जाता है।