अटल जी ने आपातकाल के बाद यहां के लोगों में भरा था अदम्य विश्वास
अचरज हुआ यह देखकर कि पांच-सात मिनट के समय में भी वे किताब खोलकर पढ़ने लगे। यानी एक मिनट समय भी नहीं गंवाते थे। किताब में बुकमार्क लगा था।
जमशेदपुर, जागरण संवाददाता। पूरे देश में उथल-पुथल मची थी। जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर छात्र आंदोलित थे। तत्कालीन केंद्र सरकार की ओर से देश में आपातकाल लागू किए जाने के बाद चारों तरफ गुस्से का आलम था।
शहर के वरिष्ठ अधिवक्ता मनोरंजन दास उस वक्त को याद करते हैं, जब आपातकाल समाप्त होने के बाद अटल जी शहर आए थे। स्मृतियों को टटोलते हुए मनोरंजन दास बताते हैं- 1977-78 में जनता पार्टी की सरकार गठित हो चुकी थी। अटल जी शहर आए तो छात्रों के बड़े समूह के बीच घिरे रहे। छात्र उन्हें लेकर साकची बसंत टॉकीज के पास पहुंचे, जहां जेपी आंदोलन के दौरान तीन छात्र पुलिस की गोली से मारे गए थे। उस जगह को शहीद स्थल कहा जाता था।
छात्रों व आम जनता की भीड़ में घिरे रहे। उनके बीच नया विश्वास भरा। वहीं पर उनके साथ सान्निध्य का अवसर मिला। मुझे समझ में आया कि वे क्यों इतने प्रख्यात थे। अद्भुत व्यक्तित्व। हर किसी की सुनने की उत्कंठा। अटल जी क्या बोलेंगे, इसका बेसब्री से इंतजार होता था। भाषा पर पकड़, शब्दों का चयन ऐसा कि सुननेवाला सम्मोहित हो जाता था। मुझे भी उनकी सेवा का अवसर मिला। रीगल मैदान में भाषण देने के बाद मैं गाड़ी में उनके साथ सर्किट हाउस गया।
अचरज हुआ यह देखकर कि पांच-सात मिनट के समय में भी वे किताब खोलकर पढ़ने लगे। यानी एक मिनट समय भी नहीं गंवाते थे। किताब में बुकमार्क लगा था। सर्किट हाउस पहुंचे तो जितना पढ़ा, वहां बुकमार्क लगाकर बंद कर दिया।
अफसोस, भारत को ऐसा दिन भी देखना पड़ा कि अटल जी हमारे बीच नहीं रहे। मेरा मानना है कि देश क्या, विश्व में उनके कैलिबर का नेता नहीं। मुझे तो पार्लियामेंट में भी उन्हें सुनने का सौभाग्य मिला। विरोधी नेता भी उन्हें सुनने का इंतजार करते थे।