Emergency में जेल जाने के बाद Jamshedpur के तीन नेता बने थे सांसद और विधायक
Emergency Day Special आपातकाल के दौरान जमशेदपुर में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास पूर्व विधायक स्व. दीनानाथ पांडेय व स्व. अयूब खान समेत दर्जनों लोग गिरफ्तार हुए थे। आंदोलन में तब के छात्र नेता संतोष अग्रवाल भी गिरफ्तार हुए थे।
जमशेदपुर : आजाद भारत में 25 जून 1975 को आपातकाल लगा था, जो 21 मार्च 1977 तक रहा। इसे आज लोग भारतीय लोकतंत्र का काला दिवस के रूप में याद करते हैं। आपातकाल के दौरान जमशेदपुर में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, पूर्व विधायक स्व. दीनानाथ पांडेय व स्व. अयूब खान समेत दर्जनों लोग गिरफ्तार हुए थे।
आंदोलन में तब के छात्र नेता संतोष अग्रवाल (अध्यक्ष, पूर्वी सिंहभूम जिला अग्रवाल सम्मेलन) भी गिरफ्तार हुए थे। संतोष बताते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जेपी (जयप्रकाश नारायण) आंदोलन की वजह से ही इमरजेंसी लगाई थी, जो 18 मार्च 1974 से चल रहा था। 25 जून की आधी रात को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अहमद के हस्ताक्षर से लागू हुआ, तो एकबारगी पूरे देश के साथ जमशेदपुर में हड़कंप मच गया था। हमें कुछ मालूम नहीं था। हमलोग अगले दिन 26 मार्च को जमशेदपुर को-आपरेटिव कालेज में इंटर के छात्र थे और परीक्षा देने कालेज गए थे। कालेज कैंटीन के पास से मेरे समेत 10 छात्र गिरफ्तार कर लिए गए। हमें बिष्टुपुर थाना ले जाया गया, जहां दो दिन रखने के बाद सभी छात्रों को निजी मुचलके पर रिहा कर दिया गया, जबकि रघुवर दास, स्व. मृगेंद्र प्रताप सिंह, दीनानाथ पांडेय ,अयूब खान, वशिष्ठ नारायण तिवारी, रामदत्त सिंह, प्रो. भृगुनाथ सिंह, सच्चिदानंद राय, शंभू सिंह आदि महीनों जेल में रहे। थाना से जमानत पर रिहा होने के बाद मैं राउरकेला चला गया, जहां से आपातकाल समाप्त होने के बाद जमशेदपुर लौटा। इसमें मेरी इंटर की परीक्षा भी छूट गई, करीब एक साल बाद 1977 के मार्च में जब परीक्षा हुई तो इंटर की परीक्षा दी। इसके बाद सभी ने राहत की सांस ली।
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आपातकाल के बाद आरपी षाड़ंगी बने सांसद, दीनानाथ व अयूब बने विधायक
आपातकाल समाप्त होने के बाद देश में चुनाव हुआ, जिसमें जनता पार्टी के टिकट पर चक्रधरपुर निवासी रूद्रप्रताप षाड़ंगी जमशेदपुर से सांसद बने, जबकि जमशेदपुर पूर्वी से दीनानाथ पांडेय व जमशेदपुर पश्चिमी से अयूब खान विधायक बने। स्व. षाड़ंगी साकची में वरिष्ठ अधिवक्ता मनोरंजन दास के घर पर रहते थे। वहीं चुनाव को लेकर बैठक होती थी। अयूब खान को जिताने के लिए मुझे और प्रो. भृगुनाथ सिंह को लगाया गया। पैसे नहीं थे, तो हमने सांकेतिक तौर पर जूता पालिश और भिक्षाटन करके पैसे जुटाए। तब के कई लोग दिवंगत हो गए हैं, लेकिन हमारी यादों में आज भी वह दिन जिंदा है।