झारखंडी डोमिसाइल नीति का क्या होगा अंजाम, आदिवासी सेंगेल अभियान का सवाल
एक बार फिर डोमिसाइल नीति का सवाल उठाया गया है। झारखंड सरकार से सवाल पूछा गया है कि झारखंड की डोमिसाइल नीति कब बनेगी। 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता नीति का वायदा करने वाला जेएमएम अब तक साबित हुआ है।
जमशेदपुर, जासं। आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने एक बार फिर डोमिसाइल नीति का सवाल उठाया है। झारखंड सरकार से सवाल पूछा है कि झारखंड की डोमिसाइल नीति कब बनेगी। सालखन ने कहा कि 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता नीति का वायदा करने वाला जेएमएम (झारखंड मुक्ति मोर्चा) सरकार में साढ़े तीन वर्षों तक काबिज होकर भी अब तक देने में असफल साबित हुआ है।
दूसरी तरफ 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता नीति की मांग करने वाले आए दिन सेमिनार, गोष्ठी, धरना आदि करने के बावजूद भी लेने में असफल हुए हैं। अंतत: देने वाले और लेने वालों की असफलता ने झारखंडी जन अर्थात आदिवासी और मूलवासी को बहुत निराश किया है। एक प्रकार से झारखंडी जन ब्लैकमेल का शिकार है। जाएं तो कहां जाएं?
तात्कालिक वैकल्पिक समाधान क्या हो सकता है ?
- चूंकि आदिवासी और मूलवासियों ने झारखंड अलग प्रांत मांगा था। आंदोलन किया था। बलिदान दिया था। तब झारखंड प्रदेश में लाभ प्राप्त करने का प्रथम अधिकार भी झारखंडी जन का बनता है। वास्तव में वे हकदार के साथ स्थानीय भी हैं। अतः उनको स्थानीय परिभाषित करना ही स्थानीयता नीति का मकसद होना चाहिए और यही न्यायसंगत भी है। अन्यथा राज्य गठन का मूल औचित्य ही गायब हो जाता है।
- आदिवासी और मूलवासी की पहचान उनकी भाषा- संस्कृति, परंपरा आदि से संभव है। अतएव 5 आदिवासी भाषाएं (संताली, मुंडारी, हो, खड़िया व कुड़ुख) और 4 मूलवासी भाषाएं ( खोरठा, कुरमाली, नागपुरी व पांच परगनिया ) ही झारखंडी भाषा-संस्कृति को स्थापित करते हैं। जो निश्चित स्थानीयता नीति निर्धारण के आधार बिंदु हैं और आदिवासी- मूलवासी के अस्तित्व, पहचान और हिस्सेदारी/ भागीदारी की रक्षा कर सकते हैं।
- झारखंड में क्लास 3 और 4 की नौकरियों का 90% हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों को प्रदान किया जाए तथा प्रखंडवार कोटा तय कर प्रखंडवार आवेदकों से भरा जाए। झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदेश की लगभग 90% आबादी वास करती है। इसे झारखंडी आबादी का दर्जा दिया जा सकता है।
- यह वैकल्पिक झारखंडी डोमिसाइल या स्थानीयता नीति का प्रस्ताव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16(3), 309 और मान्य झारखंड हाईकोर्ट के 27 नवंबर 2002 के फैसले के अनुरूप भी है। जिसमें मान्य झारखंड हाईकोर्ट ने "स्थानीय भाषा- संस्कृति और परंपरा आदि" को नीति निर्धारण तत्व के अनुरूप अपने फैसले के पारा 9(1), पारा 13 और पारा 55 (ii) में उद्धरित किया है।