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नक्सलियों का भय व पुलिस का अत्याचार भी नहीं डिगा सका इनका आत्मविश्वास

घोर नक्सल प्रभावित इलाके के बाघुड़िया के डुमकाकोचा गांव निवासी 36 वर्षीय सुनील सिंह नवयुवकों के लिए प्रेरणाश्रोत हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 06 Oct 2018 05:10 PM (IST)Updated: Sun, 07 Oct 2018 12:29 PM (IST)
नक्सलियों का भय व पुलिस का अत्याचार भी नहीं डिगा सका इनका आत्मविश्वास
नक्सलियों का भय व पुलिस का अत्याचार भी नहीं डिगा सका इनका आत्मविश्वास

गालूडीह (सुजीत सरकार)। इनका हौसला काबिलेतारीफ है। लाख दुश्वारियों के बावजूद खुद को संभाला और जीवन की गाड़ी सरपट दौड़ा रहे हैं। दो बार नक्सली संदेह में जेल जाने के बावजूद बुलंद हौसले और मजबूत इरादे से उसका आत्मविश्वास तनिक भी नहीं डिगा। नक्सलियों के भय के आगे उसने हार नहीं मानी। पुलिस के अत्याचार का भी साहस से किया सामना। कोई गलत कदम नहीं किया।

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पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर घोर नक्सल प्रभावित इलाके के बाघुड़िया पंचायत अंतर्गत डुमकाकोचा गांव निवासी 36 वर्षीय सुनील सिंह नवयुवकों के लिए प्रेरणाश्रोत हैं। जीवन में इतनी उथल पुथल होने के बावजूद उन्होंने धैर्य नहीं खोया। सुनील उन नवयुवकों के आईकॉन हैं जो विषम परिस्थितियों में अक्सर गलत फैसला ले लेते हैं। सुनील वर्तमान समय में गांव में खेतीबाड़ी कर परिजनों के साथ खुशहाल जीवन बीता रहे हैं। 

साक्ष्य के अभाव में कोर्ट से हुए बरी 
सुनील ने बताया कि वर्ष 2006 में बंगाल पुलिस नक्सली संदेह के आरोप में गिरफ्तार कर ले गई। वहां नौ माह जेल में रहा। बाद में साक्ष्य के अभाव में कोर्ट से रिहाई मिल गई। इसके बाद वर्ष 2008 में झारखंड पुलिस ने नक्सली संदेह में गिरफ्तार कर लिया। यहां चार माह जेल काटने के बाद साक्ष्य के अभाव में रिहा कर दिया गया। गिरफ्तारी के दौरान सीआरपीएफ जवानों ने उनके शैक्षणिक प्रमाण पत्र बरामद कर फाड़ दिए। जिसके कारण आज तक मैं सरकारी नौकरी नहीं कर सका।  

नक्सली आकर डराते धमकाते रहे, पुलिस करती थी अत्याचार 
सुनील सिंह ने बताया कि वर्ष 2005 से 2010 तक रात में नक्सलियों को गांव में काफी आना जाना था। डरा-धमकाकर अपनी बातें मनवाते थे। दिन में पुलिस ग्रामीणों पर अत्याचार करती थी। वर्ष 2006 में घर के बैल-बकरी व जमीन का कुछ हिस्सा बेचकर जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज से इतिहास में स्नातकोत्तर किए। इसके बाद इसी वर्ष  बंगाल पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों में गांव में सर्च ऑपरेशन के दौरान मुझे नक्सली आरोप में पकड़ लिया। वर्ष 2008 में झारखंड पुलिस मुझे पुन: नक्सली संलिप्तता में पकड़कर जेल भेज दिया। बंगाल पुलिस मेरे सभी शैक्षणिक प्रमाण पत्र भी लेकर चली गई जो आज तक वापस नहीं मिले। कई वर्षों तक वरीय अधिकारियों के यहां के चक्कर लगाए। इस दौरान सरकारी नौकरी के लिए सक्षात्कार भी दिए थे पर प्रमाण पत्र की मूल प्रतियां नहीं होने के कारण नौकरी नहीं मिली। 

पत्नी पार्वती भी है स्नातक 
पत्नी पार्वती भी स्नातक पास है। शिक्षित होने के बावजूद पार्वती खेतीबाड़ी में अपने पति का हाथ बांटती है। दोनों की इच्छा है कि अपने बच्चों को भी उच्च शिक्षा देकर समाज में स्थान दे सके। पार्वती ने बताया कि बीता समय  काफी खराब था। अब परिवार के साथ खेतीबाड़ी कर परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। काफी इच्छा थी कि स्नातक तक की पढ़ाई पूरी कर सरकारी नौकरी मिलेगी पर ऐसा नहीं हुआ। 

घर के बैल बेचकर बेटे को जेल से निकाला : मां 
70 वर्षीय मां भारती सिंह ने कहा कि जब पुलिस मेरे बेटे को पकड़ कर ले गई तो मैं काफी परेशानी हो गई।  आर्थिक संकट खड़ा हो गया। सुनील ही परिवार के भरण पोषण में हाथ बांटता था। मजबूरन मुझे दो जोड़े बैल और कुछ बकरियों को बेचकर बेटा को जेल से छुड़ाया। 


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