Motivational Story: पढ़ाई छोड़ने के 16 वर्ष बाद पूरी की स्नातक की शिक्षा और जीत लिया साहित्य अकादमी पुरस्कार
Motivational Story कुछ करने का जज्बा हो तो फिर कहने ही क्या। कांटो भरा सफर रहा है साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता चंद्रमोहन किस्कू का। उन्होंने झारखंड के चाकुलिया के सुदूर गांव बड्डीकानपुर में प्रारंभिक शिक्षाप्राप्त की थी ।
पंकज मिश्रा, चाकुलिया : वर्ष 2002 में इंटर, 2018 में स्नातक और 2021 में साहित्य अकादमी पुरस्कार। सुनने में भले ही यह अटपटा लगे पर इस वर्ष साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चयनित चंद्रमोहन किस्कू का शैक्षणिक सफर कुछ ऐसा ही है। पूर्वी सिंहभूम जिला के धालभूमगढ़ प्रखंड अंतर्गत सुदूर गांव बेहड़ा के निवासी बोरेंद्र नाथ किस्कू व विमला किस्कू के पुत्र चंद्रमोहन का जन्म 22 फरवरी 1982 को हुआ था।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा चाकुलिया प्रखंड के पहाड़ की तराई में बसे बड्डीकानपुर गांव स्थित उनके मामा घर में हुई थी। इसके बाद नरसिंहगढ़ उच्च विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने घाटशिला कॉलेज में दाखिला लिया 2002 में आईएससी पास करने के साथ ही उनका चयन टाटा मोटर्स में अप्रेंटिस के तौर पर हो गया। इसके साथ ही उनकी नियमित पढ़ाई छूट गई। 3 वर्ष तक अप्रेंटिस करने के बाद वर्ष 2005 में उनका चयन रेलवे में दूरसंचार अनुरक्षक के पद पर हो गया। पहली पदस्थापना पश्चिम बंगाल के हल्दिया के समीप दुर्गाचक स्टेशन पर हुई। सुनसान इलाका एवं छोटा स्टेशन होने के कारण यहां उनका अधिकांश समय खाली ही गुजरता था। इसी दौरान उनके एक लोको पायलट मित्र सलीम सोरेन ने कहा कि तुम अच्छा लिखते हो। खाली समय में कुछ रचना कर डालो। मित्र की सलाह चंद्रमोहन को सही लगी। उन्होंने 2006 में लिखना शुरु कर दिया। इसके बाद तो उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अबतक 13 पुस्तकें हो चुकी है प्रकाशित
लेखन के क्षेत्र में कदम रखने के बाद बीते 14 वर्षों में चंद्रमोहन किस्कू की विभिन्न भाषाओं में लिखी गद्य एवं पद्य की 13 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है जबकि 8 पुस्तकें अभी प्रकाशित होने की कतार में है। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों में हिंदी में सबरनाखा, फूलों की खेती, एक आदिवासी लड़की, महुआ चुनती आदिवासी लड़की तथा प्रेम के गीत (सभी कविता संग्रह) शामिल है। इसके अलावा उन्होंने ''''उसके जाने के बाद'''' तथा ''''मुर्गा पाड़ा'''' पुस्तक को संथाली से हिंदी में अनुवादित किया है। संथाली में उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों में मुलुज लांदा (कविता संग्रह) व फेसबुक (कहानी संग्रह) शामिल है। उनके द्वारा हिंदी एवं बांग्ला भाषा से संथाली में अनुवादित की गई पुस्तकों में आंगरा, सिद्धू कानू तिकीनाग होहोते, बीर बुरु रेयाग आइदारी व काहू को आर कालापानी प्रमुख है। इन्हीं में से एक पुस्तक ''''सिद्धू कानू तिकीनाग होहोते'''' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। इसे उन्होंने मशहूर लेखिका महाश्वेता देवी द्वारा रचित मूल बांग्ला उपन्यास सिद्धू कानूर डाके को संथाली में अनुवादित कर लिखा है।
नाना डोमन हांसदा भी थे लेखक
चंद्रमोहन किस्कू बाल्यावस्था में ही मां के साथ चाकुलिया प्रखंड के बड्डीकानपुर गांव स्थित अपने मामा घर आ गए थे। उनके नाना स्वर्गीय डोमन चंद्र हांसदा संथाली भाषा के अच्छे लेखक थे। गांव में उनका अपना पुस्तकालय भी था, जिनमें हिंदी के अलावा बंगला एवं संथाली की अनेक पुस्तकें थी। नाना को देखकर ही बालक चंद्रमोहन के मन में लिखने पढ़ने की ललक जगी। शायद यही कारण था कि वर्ष 2002 में इंटर पास करने के बाद उनकी जो पढ़ाई छूट गई थी उसे उन्होंने दोबारा शुरू करने का निश्चय किया। इसके तहत 2018 में उन्होंने इग्नू से हिंदी साहित्य में स्नातक की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने मास्टर डिग्री भी हिंदी भाषा में ही हासिल की। पढ़ाई के प्रति उनकी रूचि अभी भी एक कॉलेज जाने वाले छात्र की तरह है। फिलहाल वे इतिहास में एमए कर रहे हैं। उनकी इच्छा प्रोफेसर बनने की है।