ट्रेन में श्रमिकों को झेलनी पड़ी यातना, किसी कोच में पानी नहीं तो कहीं पंखा खराब
श्रमिक स्पेशल ट्रेनें प्रवासी मजदूरों को अपनी धरती पर लौटाकर ला तो रही हैं लेकिन रास्ते में कई यातनाएं देते हुए। इन ट्रेनों में श्रमिक के लिए न पंखे का जुगाड़ रह रहा न शौचालय में पानी का।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : श्रमिक स्पेशल ट्रेनें प्रवासी मजदूरों को अपनी धरती पर लौटाकर ला तो रही हैं, लेकिन रास्ते में कई यातनाएं देते हुए। इन ट्रेनों में श्रमिक के लिए न पंखे का जुगाड़ रह रहा, न शौचालय में पानी का। गुरुवार को पांच घंटे लेट टाटानगर स्टेशन पहुंची गुजरात के मोरबी शहर से चली श्रमिक स्पेशल के यात्रियों को भी ऐसी ही यातनाओं का गवाह बनना पड़ा। ट्रेन मोरबी स्टेशन से 26 मई की रात 7.30 बजे खुली थी।
1705 श्रमिकों को लेकर चली यह ट्रेन 38 घंटे में 2030 किलोमीटर का सफर तय कर सुबह 10.30 बजे टाटा पहुंची। इसे सुबह 5.20 बजे ही पहुंचना था। खैर, अब बात कर लेते हैं आने में यात्रियों को हुई परेशानी की। इस इस ट्रेन के वाश बेसिन में पानी ही नहीं था। टायलेट तक सूखा था।
बहरहाल, गुरुवार को ट्रेन पहुंचने पर टाटानगर स्टेशन में एआरएम विकास कुमार सहित रेल अधिकारियों ने यात्रियों को भोजन का पैकेट व पानी का बोतल देकर स्वागत किया। बाहर दक्षिण पूर्व रेलवे महिला कल्याण संगठन की ओर से राशन के पैकेट 1705 श्रमिकों को दिया गया। बाहर खड़ी बसों में अलग से श्रमिकों के लिए अलग अलग बोरे में राशन रखा हुआ था। ट्रेन में पश्चिम व पूर्वी सिंहभूम, हजारीबाग, धनबाद, सरायकेला खरसावां के श्रमिक थे।
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ये समस्या हुई यात्रियों को
- शौचालय में पानी नहीं था। टायलेट का इस्तेमाल करने को कोच-दर-कोच भटना पड़ा।
- कई कोच में पंखे भी जवाब दे चुके थे। गर्मी ने हाल बेहाल कर रखा था।
- मजबूरी मं ट्रेन की खिड़की पर भींगा तौलिया लगा राहत पाने का जुगाड़ लगाते यात्री टाटा पहुंचे।
स्टेशनों में मिला भोजन का पाकेट भी गर्मी से खराब हो चुके थे, खराब खाने को यात्री मजबूर थे।
- 1400 श्रमिकों की जगह 1705 श्रमिक ट्रेन में ठूंस कर लाए गए, शारीरिक दूरी का ख्याल नहीं रखा।
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श्रमिकों से भी टिकट के नाम पर वसूल लिए 900 रुपये
झारखंड के प्रवासी मजदूरों की बेबसी का फायदा गुजरात के मोरबी शहर के ठेकेदार उठा रहे हैं। रेलवे व राज्य सरकार के प्रयास से मुफ्त में इन प्रवासी श्रमिकों को झारखंड में लाया जा रहा है, लेकिन जिस संस्थान में यह मजदूर काम करते थे उसी संस्थान (क्यूटेन) के ठेकेदारों द्वारा रेलवे टिकट के नाम पर करीब दो सौ से ज्यादा श्रमिकों से 900 रुपये वसूले गए। घर पहुंचने की जल्दी व बेबसी में मजदूरों ने टिकट के नाम पर इन ठेकेदारों को रुपये दे दिए।
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मैं टाइल्स फैक्ट्री में काम करता थां। लॉकडाउन के कारण काम बंद था। ट्यूटन कंपनी के ठेकेदार ने करीब 200 श्रमिकों से भी ज्यादा लोगों से टिकट के नाम पर 900 रुपये ले लिए। रुपये न देने पर वे टिकट नहीं दे रहे थे।
आसमान चक्रधरपुर
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ट्रेन में गर्मी ने बुरा हाल कर दिया। किसी कोच में पानी नहीं तो किसी कोच के पंखे बंद। भीगा हुआ तौलिए ओढ़कर टाटानगर तक पहुंचे। ट्रेन की व्यवस्था बिल्कुल भी ठीक नहीं थी। बहुत परेशानी हुई।
रघुनाथ भगत, कानडोरी पश्चिमी सिंहभूम ----------
मेरे पास रुपये नहीं थे। फिर भी टिकट के लिए मुझे अपने साथी से 900 रुपए उधार लेने पड़े। जिसके बाद मुझे टाटानगर आने का टिकट मिला। ठेकेदार ने सबसे टिकट के नाम पर रुपये ले लिए। मजबूरी में सबने दिए भी।
सूरज चक्रधरपुर