बिहार पुनर्गठन अधिनियम बने स्थानीयता का आधार
नई सरकार के गठन के बाद कोई कह रहा है कि 1932 के सर्वे को स्थानीयता का आधार बनाया जाएगा। कोई 1964 के सर्वे को आधार बनाने की बात कह रहा।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : नई सरकार के गठन के बाद कोई कह रहा है कि 1932 के सर्वे को स्थानीयता का आधार बनाया जाएगा। कोई 1964 के सर्वे को आधार बनाने की बात कह रहा। वहीं, पिछली सरकार ने 1985 से पहले से रह रहे को स्थानीय मान लेने की नीति बनाई थी। इन सबको लेकर विरोध व बहस होती रही है। ऐसी ही बहस रविवार को सोनारी स्थित ट्राइबल कल्चरल सेंटर (टीसीसी) में हुई। मौका था आदिवासी सुरक्षा परिषद की ओर से आयोजित सम्मेलन का। इसमें आदिवासी बुद्धिजीवियों ने स्थानीयता की संवैधानिक व तार्किक मुद्दे उठाए।
इसमें कहा गया कि कोई भी राज्य सरकार अपने राज्य के लिए स्थानीयता की परिभाषा नहीं गढ़ सकती। संविधान राज्य सरकारों को यह शक्ति बिल्कुल नहीं देती, बल्कि ऐसा करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ लोकसभा व राज्यसभा को है। मामले में पूर्व विधायक सूर्यसिंह बेसरा बोले-'बिहार पुनर्गठन अधिनियम 2000 स्वयं झारखंड की स्थानीयता परिभाषित करता है। जरूरत है, इसे पढ़ने की। इस अधिनियम में स्पष्ट उल्लेख है कि अंतिम सर्वे को ही स्थानीयता का आधार माना जाएगा। इस अधिनियम पर राष्ट्रपति की मुहर भी है, इसलिए वैधानिक रूप से इसे ही झारखंड की स्थानीयता को परिभाषित किया जाना चाहिए और यही संवैधानिक भी है।'
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सीएनटी एक्ट में नहीं हो सकता संशोधन
सम्मेलन में सूर्य सिंह बेसरा ने कहा कि सीएनटी एक्ट में भी न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार फेरबदल कर सकती हैं। यह एक्ट संविधान की नौवीं अनुसूची में होने के कारण इसमें संशोधन की कोई गुंजाइश ही नहीं। राज्य सरकार इसमें एक इंच भी संशोधन करने की नीति बनाती है तो वह अदालत में एक मिनट भी नहीं टिक पाएगा।
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गैर आदिवासी युवक से शादी करने पर नहीं मिले आरक्षण का लाभ
सम्मेलन में आदिवासी सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष रमेश हांसदा ने आदिवासी युवतियों के गैर आदिवासी से विवाह करने पर आरक्षण का लाभ नहीं दिए जाने का मुद्दा उठाया। बोले-'परिषद सरकार से मांग करेगी कि गैर आदिवासी से शादी करने वाली आदिवासी युवतियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिले।
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स्थानीय भाषा में केजी से पीजी तक हो पढ़ाई
सम्मेलन में परिषद के रेज्यूलेशन ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष शंकर सोरेन ने कहा कि आदिवासी विकास के लिए राज्य में केजी से पीजी तक संताली समेत सभी स्थानीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ाई जरूरी है। सरकार पर इसके लिए दबाव बनाए जाने की जरूरत है। वहीं रंगकर्मी जीतराय हांसदा, साहित्यकार गणेश ठाकुर हांसदा व फिल्म अभिनेता दशरथ हांसदा ने कहा कि संताली भाषा-साहित्य व कला-संस्कृति के लिए भी व्यापक पहल की जरूरत है। कहा कि भाषा साहित्य के लिए एकेडमी का गठन होना चाहिए। फिल्मों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर का फिल्म फेस्टिवल होना चाहिए।
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शिक्षा, संस्कृति व आदिवासी संरक्षण पर चर्चा
बैठक में आदिवासी समाज को शिक्षा से समृद्ध करने, संस्कृति का संरक्षण करने पर भी चर्चा हुई। तय हुआ कि आदिवासी सुरक्षा परिषद के इस सम्मेलन में पारित प्रस्ताव से संबंधित मांगपत्र मुख्यमंत्री, राज्यपाल व प्रधानमंत्री को सौंपा जाएगा। चर्चा में दुर्गा बानसिंह, पूर्व विधायक पुत्कर हेम्ब्रम, विनय पूर्ति, जयपाल सिरका, सोनाराम सोरेन, ईश्वर सोरेन, छात्र नेता हेमाल हांसदा, काजू सांडिल, अंजू सांडिल, रामसिंह मुंडा, दिनेश हांसदा, सुरेंद्र टुडू, सालखन मुर्मू जूनियर, सलमा हांसदा, रोबीन मुर्मू आदि उपस्थित थे।