Weekly News Roundup Jamshedpur एडिय़ां रगडऩे के बाद प्रोबेशन क्यों, पढ़िए कॉरपोरेट जगत की अंदरूनी खबर
Weekly News Roundup Jamshedpur. कंपनी में प्रतिवर्ष लगभग 300 बाइ-सिक्स स्थायी होते हैं। कई कर्मचारी इतने बदनसीब होते हैं कि बिना स्थायी हुए ही सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
जमशेदपुर, निर्मल प्रसाद। Weekly News Roundup Jamshedpur देश में टाटा समूह अपने मजबूत इरादों और नैतिकता के लिए जाना जाता है। देश की सबसे बड़ी ऑटोमोटिव कंपनियों में से एक टाटा मोटर्स का प्लांट जमशेदपुर में स्थापित है। यहां वर्तमान में लगभग 4700 बाइ-सिक्स कर्मचारी हैं। इन्हें स्थायी होने से पहले काई वर्षों तक बाइ-सिक्स कर्मचारी के तौर पर काम करना पड़ता है।
ये काम स्थायी कर्मचारियों की तरह करते हैं लेकिन इनकी सुविधाओं और वेतन में काफी अंतर होता है। कंपनी में प्रतिवर्ष लगभग 300 बाइ-सिक्स स्थायी होते हैं। कई कर्मचारी इतने बदनसीब होते हैं कि बिना स्थायी हुए ही सेवानिवृत्त हो जाते हैं। खास यह कि जो स्थायी होते हैं उन्हें फिर एक वर्ष का प्रोबेशन (प्रशिक्षण) अवधि पूरा करना पड़ता है। सवाल उठता है कि जब बाइ-सिक्स के रूप में ये कर्मचारी इतनी एडिय़ां रगड़ चुके होते हैं तो फिर प्रोबेशन अवधि क्यों? इसमें कंपनी की मान्यता प्राप्त यूनियन भी आखिर चुप क्यों है?
पहले दोस्त, अब जानी दुश्मन
जमशेदपुर में इंजन बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है टाटा कमिंस। यहां की मान्यता प्राप्त यूनियन है टीसी कर्मचारी यूनियन। कभी अरुण सिंह और मनोज सिंह ने निवर्तमान महामंत्री सुशील श्रीवास्तव का तख्ता पलट कर सत्ता में आए थे। दोनों गहरे दोस्त और एक-दूसरे के समर्थक। लेकिन अब बन गए हैं जानी दुश्मन। कंपनी प्रबंधन की ओर से आयोजित बोनस समझौते की पार्टी में दोनों भिड़ गए। प्रबंधन ने दोनों नेताओं को जांच पूरी होने तक बर्खास्त कर दिया। लेकिन इन सबके बीच कंपनी में कार्यरत लगभग 800 कर्मचारी फंस गए, जिनका ग्रेड पहली अप्रैल 2019 से लंबित है। अब यह इन दोनों यूनियन नेताओं की अनुभवहीनता कहें या अपरिपक्वता, पूर्व में महामंत्री और उपाध्यक्ष रहे, आज कंपनी से ही बाहर हो गए हैं। अब दोनों नेता रांची की दौड़ लगा रहे हैं ताकि यूनियन सह प्रदेश इंटक के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह इनका कुछ भला कर दें।
एडमिशन में छूट रहे पसीने
जमशेदपुर की कंपनियों में कार्यरत हर एक कर्मचारी चाहता है कि उसके बच्चे का दाखिला अच्छे स्कूल में हो। लॉटरी में नाम नहीं निकला तो यूनियन नेताओं के पास दौड़ लगा रहे हैं ताकि उनके बच्चे का दाखिला मनचाहे स्कूल में हो जाए। टाटा वर्कर्स यूनियन में लगभग एक वर्ष बाद आम चुनाव होने वाले हैं। लेकिन इसकी बिसात अभी से बच्चों के एडमिशन पर बिछाई जा रहीं हैं। कर्मचारी अपने लिए कमेटी मेंबरों से और वे ऑफिस बियरर से दाखिले के लिए पैरवी कर रहे हैं। कमेटी मेंबर से लेकर ऑफिस बियरर भी जानते हैं कि यदि संबधित व्यक्ति का काम नहीं हुआ तो चुनाव में वोट भी नहीं मिलेगा। इसलिए किसी तरह का एडमिशन कराने की जुगत लगाई जा रही है। यदि एडमिशन हो गया तो बल्ले-बल्ले। लेकिन नहीं हुआ तो कर्मचारी से लेकर कमेटी मेंबर तक नाराज। सोच लिया है कि आगामी चुनाव में इन्हें सबक सिखाएंगे।
टीडब्ल्यूयू चुनाव को गुणा-भाग शुरू
टाटा वर्कर्स यूनियन पर भले ही एक पक्ष चुनाव जीतकर काबिज है, लेकिन इसमें भी दो धड़ हैं। एक अध्यक्ष आर रवि प्रसाद और दूसरा महामंत्री सतीश सिंह का। उप चुनाव के लिए चाहे आरओ पद का चुनाव हो, अध्यक्ष के निजी सचिव को मनमर्जी तरीके से पदस्थापना हो या कमेटियों का गठन, हर मौके पर दोनों पक्ष आपस में उलझते हैं। फरवरी 2021 में यूनियन का आम चुनाव है। लेकिन गुणा-भाग अभी से शुरू हो चुका है। जातिवाद को भी खूब हवा दी जा रही है। अध्यक्ष खेमे में कितने समर्थक कमेटी मेंबर हैं? कितने महामंत्री के साथ खड़े हैं? पूर्व अध्यक्षों के समर्थक किसके साथ चुनाव में जाएंगे? पूर्व डिप्टी प्रेसिडेंट टुन्नू चौधरी किसका दामन थामेंगे? ऐसी सभी विषयों पर अभी से मंथन शुरू है। हार-जीत के मायने तलाशे जा रहे हैं। क्योंकि हारे तो सीधे यूनियन व ऑफिस बियरर से बाहर होंगे और जीते तो फिर बल्ले-बल्ले।