सरकारी दावा फेल : आइटीआइ कर 10 साल से भटक रहे बिरहोर युवक Jamshedpur News
दस साल पहले आइटीआइ प्रशिक्षण लेने वाले विल्पुतप्राय बिरहोर जनजाति के दो नवयुवक अब भी नौकरी के लिए भटक रहे हैं।
चाईबासा, सुधीर पांडेय। सरकार आदिम जनजाति के विकास के लिए भले ही हजार वादे करती हो, जमीनी हकीकत बदरंग है। दस साल पहले आइटीआइ प्रशिक्षण लेने वाले विल्पुतप्राय: बिरहोर जनजाति के दो नवयुवक अब भी नौकरी के लिए भटक रहे हैं। वह भी ऐसे समय में जब सरकार ने तय कर रखा है कि आदिम जनजाति के वैसे युवक जो उच्च शिक्षा प्राप्त करेंगे, उनके लिए सीधी नौकरी का प्रावधान है।
700 पहाड़ियों वाले सारंडा जंगल की गोद में बसी बिरहोर आदिम जनजाति से आने वाले दशरथ बिरहोर व विष्णु बिरहोर न सिर्फ मैट्रिक पास हैं, बल्कि जमशेदपुर स्थित इंडो डेनिश टूल रूम से आइटीआइ का डिप्लोमा भी लिया है। दोनों कहते हैं कि उनकी जनजाति धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। गरीबी और अशिक्षा के कारण उनका विकास नहीं हो पाया। किरीबुरू की टाटिबा बस्ती में पक्का घर देकर बसाए गए, लेकिन महत्वपूर्ण योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच रहा।
सरकार ने की थी सीधी भर्ती की घोषणा
सरकार ने घोषणा की थी कि बिराहोर जनजाति से अगर कोई मैट्रिक या उच्च शिक्षा हासिल करता है तो सरकार की नौकरी में सीधी भर्ती का लाभ मिलेगा। आसानी से दो जून की रोटी मिलने लगेगी। जनजाति का भविष्य सुरक्षित रहे इसलिए भारत सेवा आश्रम संघ की मदद से पहले मैट्रिक पास की। इसके बाद जमशेदपुर के सोनारी में रहकर इंडो डेनिश टूल रूम से आइटीआइ किया। उसके बाद से लगातार सरकारी नौकरी के लिए आवेदन दे रहे हैं मगर कोई सुनवाई नहीं हो रही।
सिर्फ मिला आश्वासन
अगस्त 2016 में एसपी को पत्र लिखकर योग्यता अनुसार रिक्त पद पर बहाली के लिए गुहार लगाई, मगर आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। इन दोनों बिरहोर युवकों ने कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है। बेरोजगारी के कारण परिवार पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। जीविका का कोई साधन नहीं है। अगर वादे के मुताबिक सरकार नौकरी दे देती तो उनकी स्थिति सुधर जाती।
ये कहते बीडीओ
विल्पुतप्राय: जनजाति बिरहोर के शिक्षित बेरोजगारों को सरकारी नौकरी में सीधी भर्ती का कोई सरकारी प्रावधान नहीं है। जहां तक विष्णु व दशरथ बिरहोर की बात है तो इनकी नौकरी के संबंध में खदान क्षेत्र की निजी कंपनियों में अस्थायी नौकरी के लिए बात की गयी थी। ये निजी कंपनी में नौकरी के इच्छुक नहीं है।
- समरेश प्रसाद भंडारी, बीडीओ, नोवामुंडी।
- दशरथ बिरहोर और विष्णु बिरहोर को नहीं मिली नौकरी
- लुप्त हो रही बिरहोर जनजाति से मैट्रिक करनेवाले पहले युवा हैं दोनों
- 40 से 50 युवा ङोल रहे बेरोजगारी का दंश, आजीविका चलाना मुश्किल
- सरकार के स्तर से अब तक मिलता रहा है सिर्फ कोरा आश्वासन