इस गांव के पत्थरों में जीवंत है 12वीं सदी
झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिला से सटे एक छोटा सा गांव है- खिचिंग। इस गांव में 12वीं सदी का पाषाण शिल्प कला आज भी जिंदा है।
चाईबासा [मो. तकी]। झारखंड के कोल्हान प्रमंडल के पश्चिम सिंहभूम जिला से सटे ओडिशा का एक छोटा सा गांव है- खिचिंग। इस गांव में 12वीं सदी का पाषाण शिल्प कला आज भी जिंदा है। खिचिंग गांव का केशना तो कस्बा होने के बावजूद मूर्तियों के गांव के नाम से जाना जाता है। इस गांव के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी हाथों से पत्थर तराश कर मूर्तियों को आकार देते आ रहे हैं। यह शिल्प कला ही पूरे गांव की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है।
बड़े-बुजुर्ग ही नहीं खिचिंग गांव का हर बच्चा शिल्पी है। सिर्फ फोटो देख यहां के हर हाथ पत्थरों को इस तरह तराशते हैं कि वह जीवंत हो उठते हैं। देखनेवाले चकित रह जाते हैं। सधे हाथों से यहां घर-घर हर दिन भगवान की सैकड़ों प्रतिमाएं आकार लेती हैं। बारीक नक्काशी इन मूर्तियों की विशेषता है। ओडिशा में सिर्फ यही एक गांव है जहां घर-घर सिर्फ मूर्तियां बनाई जाती हैं। देश की अगर बात करें तो सिर्फ राजस्थान में यह कला देखने को मिलता है। मूर्तिकार कहते हैं कि इस गांव को मां किचकेश्वरी का आशीर्वाद प्राप्त है। जिन पत्थरों से मूर्तियां आकार लेती हैं, वह सिर्फ इसी गांव में पाया जाता है।
आगे बढ़ा रहे अपने पूर्वजों की विरासत
12वीं सदी से पहले जब महाराजा पूर्ण चन्द्र भांज देव ने इस क्षेत्र पर शासन शुरू किया तो उन्होंने मां किचकेश्वरी का मंदिर निर्माण करने की योजना बनाई। पुरी समेत कई जगहों से मूर्तिकार बुलाए गए। काफी खोज के बाद खिचिंग के पास आदीपुर में ऐसे पत्थर पाए गए जो लोहे से भी मजबूत थे। इन्हीं पत्थरों से मंदिर का निर्माण हुआ। उसी दौर से यहां मूर्तिकार बस गए। आज भी ये पूर्वजों की पेशागत परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
मूर्तियों की विदेश में सर्वाधिक मांग
मूर्ति निर्माण कारोबार से गांव के करीब एक हजार लोग जुड़े हैं। मूर्तियों के दाम साईज और काम की बारीकी के आधार पर तय होता है। इस गांव से मूर्तियों की सप्लाई ओडिशा के सभी शहरों में होती है। भुवनेश्वर के बड़े कारोबारी यहां से मूर्तियां खरीद कर विदेश में भेजते हैं। आस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्राजील, दक्षिण अफ्रिका और इंग्लैंड समेत कई देशों में यहां की मूर्तियों की बिक्री होती है।
प्राचीन व ऐतिहासिक गांव है खिचिंग
खिचिंग ओडिशा के मयूरभंज स्थित एक प्राचीन ऐतिहासिक गांव है। यह भंज वंश की राजधानी थी। भंज का राजवंश चितौड़ के राजपूतों की एक शाखा थी। तब राज्य के दो खंड थे। खिचिंग व खिंजली। इसके संस्थापक वीरभद्र थे। उन्हें ‘आदि भंज’ कहा जाता है।
मां की मानते कृपा
मां किचकेश्वरी की कृपा है जिसके कारण पूरे ओडिशा में इस गांव को मूर्ति निर्माण के लिए चुना गया। पूर्वजों के कला को हम भी कायम रखे हैं।
-संतोष कुमार महाकुड़, खिचिंग गांव
पेशा देता सुकून
इस मूर्तिकला से सैकड़ों परिवार रोजगार से जुड़े हैं। 12वीं सदी का यह पेशा हमें सुकून देता है। हर प्रकार की मूर्तियों का यहां निर्माण होता है। लोगों के जीवन यापन का यह बेहतरीन जरिया बन चुका है।
-कुशलदेव बारीक, केशना गांव