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इन्होंने बांधी रिश्‍तों की ऐसी डोर कि अब पेड़ हैं चारों ओर

राखी बांधकर पेड़ों को बचाने का आंदोलन यहां शुरू होने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 21 Jan 2018 11:39 AM (IST)Updated: Sun, 21 Jan 2018 05:37 PM (IST)
इन्होंने बांधी रिश्‍तों की ऐसी डोर कि अब पेड़ हैं चारों ओर
इन्होंने बांधी रिश्‍तों की ऐसी डोर कि अब पेड़ हैं चारों ओर

विकास कुमार, हजारीबाग। जिले के टाटीझरिया में स्थित दूधमटिया जंगलों में सीना तान कर खड़े हरे-भरे पेड़ जहां हरियाली की कहानी कहते हैं वहीं यह एक आंदोलन का भी प्रतीक हैं, जो मानव-प्रकृति प्रेम की मिसाल कही जा सकती है। यहां की वन संपदा इतनी विपुल, इतनी घनी और इतनी हरी-भरी शायद ही हो पाती अगर इनके रिश्तों की डोर ग्रामीणों के हाथों से बांधी गई राखियों से न बंधी होती।

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शिक्षक व पर्यावरणविद महादेव महतो के नेतृत्व में 22 साल पहले शुरू हुई जंगल बचाने की मुहिम अब यहां जनांदोलन का रूप ले चुकी है। इसी का परिणाम है कि टाटीझरिया के दूधमटिया में जहां गिनती के पेड़ बचे थे, वहां अब ऐसा सघन वन है कि पेड़ों की घनी छांव के बीच धूप भी दबे पांव कोई सुराख ढूंढकर आहिस्ता-आहिस्ता पहुंचती है। फल-फूल, छांव, लकडिय़ां और प्राणवायु और अन्य जीवनदायी तत्व देने वाले पेड़ों और जंगलों का कर्ज किसी मानवीय प्रयास से शायद ही उतारा जा सके लेकिन टाटीझरिया के ग्रामीणों ने पेड़ों से
दोस्ती निभाने की कोशिश जरूर की है।

राखी बांधकर पेड़ों को बचाने का आंदोलन यहां शुरू होने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। दो दशक पहले यहां के लोग हाथियों के उत्पात से परेशान थे। ऐसे में शिक्षक व पर्यावरणप्रेमी महादेव महतो ने ग्रामीणों को एक युक्ति सुझाई, जो न सिर्फ हाथियों के उत्पात से निजात दिलाने वाली साबित हुई बल्कि वन संपदा के विस्तार के लिए भी वरदान साबित हुई। महादेव का मानना था कि हाथियों का प्राकृतिक आवास छिन जाने के कारण वह आबादी में आ रहे हैं। उन्हें जंगल उपलब्ध कराकर उनके उत्पात से बचा जा सकता है। इसी के बाद शुरू हुआ जंगल लगाने और राखियां बांधकर उन्हें बचाने का अभियान।

अब हालत यह है कि यहां वनों की कटाई की अब कोई सोचता तक नही। वृक्षों को रक्षासूत्र बांध कर बचाने के ग्रामीणों इस संकल्प को बाद में वन विभाग ने भी अपना लिया। अब यह अभियान जिले के कोने-कोने से निकल कर पूरे राज्य में फैला चुका है। वन विभाग इसे महोत्सव का भी रूप दे चुका है और हर साल यहां पेड़ों को राखी बांधने के विशेष उत्सव का आयोजन किया जाता है। अभियान के तहत राखी बांधते हुए यहां के ग्रामीण पेड़ों की पूजा करते हैं और उनकी रक्षा का संकल्प लेते हैं।

बढ़ गए करीब 25 एकड़ जंगल, 50 किलोमीटर में बढ़ा दायरा
हाथियों के आतंक से बचने और जंगल बचाने की मकसद से शुरू हुए इस अभियान ने दूधमटिया की सूरत बदल दी है। करीब 65 एकड़ में फैला दूधमटिया जंगल 22 वर्षों के दौरान सघन तो हुआ ही, इसका क्षेत्रफल अब पहले से 25 एकड़ ज्यादा विस्तृत हो चुका है। जिले में चला यह अभियान पूरे राज्य में प्रेरणास्रोत बना है। लोगों ने इस अभियान को अपनाया भी है। इसके प्रभाव से ही आस-पास के करीब 50 किलोमीटर के दायरे में भी वनों का घनत्व बढ़ा है। जिले के हर कोने में अब रक्षासूत्र बांध कर वनों की रक्षा का संकल्प लिया जाता है। वहीं, सेवानिवृत्त होने के बाद महादेव महतो अभियान को लगातार आगे बढ़ाने के लिए लोगों को हर
दिन लगे रहते हैं।

जानें, क्‍या कहते हैं डीएफओ
पूर्वी वन प्रमंडल, हजारीबाग के डीएफओ सुशील सोरेन कहते हैं कि वनों की रक्षा के लिए रक्षासूत्र बांधे जाने का अभियान का परिणाम काफी अच्छा रहा है। वन क्षेत्र का घनत्व बढ़ा है। दूधमटिया व उसके आस-पास वनों का काफी विस्तार हुआ है।

जानिए, क्‍या कहते हैं राखी बांधो आंदोलन के जनक महादेव महतो
राखी बांधो आंदोलन के जनक महादेव महतो कहते हैं कि ग्रामीणों के सहयोग से इस आंदोलन को अपार सफलता मिल रही है। लोग पेड़-पौधों और जंगल का महत्व समझ रहे हैं। आपदा से बचने के लिए हमें प्रकृति की ओर लौटना ही होगा। हरियाली का दायरा बढ़ता देख अच्छा लगता है।

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