चीख पड़ते जंगल गर मुह में जुबां होती
कटकमसांडी : वर्षो से प्रकृति के साथ खिलवाड़ और उसको बचाने की जंग का साक्षी रहा है आदिवासी व भुक्तभोगी
कटकमसांडी : वर्षो से प्रकृति के साथ खिलवाड़ और उसको बचाने की जंग का साक्षी रहा है आदिवासी व भुक्तभोगी रहा है जंगल। अगर जंगल को जुबां होती तो चीख कर दुनिया को सच का आइना दिखाता। आदिवासियों का सदियों से जंगल से गहरा रिश्ता रहा है। वे शुरू से ही जंगल में रहते आए हैं, जंगल उनके जीवन का बुनियादी आधार रहा है। जंगल ने आदिवासियों को आश्रय प्रदान किया और आदिवासियों ने जंगल में उपलब्ध संसाधनों और पूरे पर्यावरण की रक्षा भी की। मगर आज वही वनाधिकार अधिनियम को हथियार बनाकर अंधाधुंध जंगलों को उजाड़ने में लगे हैं। कटकमसांडी अंचल द्वारा आदिवासियों को अब तक लगभग 25-30 एकड़ वन भूमि का पट्टा वनाधिकार अधिनियम के तहत दी जा चुकी है। इन दिनों वनाधिकार अधिनियम का पट्टा पाने के लिए बींड भिथरवा, नैनादोहर, डांटो, बारीकोला झोंझी, शाहपुर के जंगलों में रहने वाले आदिवासी जंगलों का अंधाधुंध सफाया करने में लगे हैं। पहले आदिवासी जंगल बचाना चाहते थे अपने अस्तित्व और आने वाले पीढि़यों की खुशहाल ¨जदगी के लिए और आज जंगल उजाड़ रहे वनाधिकार पट्टा पाने के लिए। आज आदिवासी समाज की सोंच में जंगल के प्रति बदलाव देखा जा रहा है। उजड़ते जंगल के प्रति वन विभाग बिलकुल खामोश है। दूसरी ओर जंगल माफियाओं की सक्रियता से रोज पेड़ो को कटवाकर दूसरे क्षेत्रों में खरीद फरोख्त का धंधा चरम पर है। जंगल माफियाओं को सिर्फ जंगलों की बर्बादी से मतलब है। माफिया पेड़ो के साथ साथ पहाड़ों को भी नही बख्शा है। इन दिनों कटकमसांडी से दर्जनों ट्रैक्टरों से पत्थर के बोल्डर सीमावर्ती प्रखंड क्षेत्रों में बे रोक टोक भेजा जा रहा है। वन विभाग मैन पावर की कमी बताकर अपना पल्ला आसानी से झाड़ लेते हैं। सरकारी योजनाओं में भी बड़े पैमाने पर पत्थरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। करोड़ो के लागत से बनाए जा रहे सड़कों में पहाड़ों व जगलों से निकालकर बोल्डर लगाया जा रहा है जिनको रोक टोक करने वाला कोई नही है। एक ओर जहां इन अवैध खनन से सरकार को लाखो करोड़ो की राजस्व की क्षति हो रही है वहीं दूसरी ओर जंगल माफियाओं व पत्थर तस्करों की चांदी ही चांदी है। आज तक इन माफियाओ पर कोई कार्रवाई नही होना अपने आप में एक सवाल बना हुआ है।