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ग्रामीण क्षेत्रों में भी बदला दशहरा का स्वरूप

केरेडारी : प्रखंड में दशहरा पर्व को लेकर नवरात्रा का पाठ कंडाबेर जैसे शक्ति पिठों

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Oct 2018 08:21 PM (IST)Updated: Sun, 14 Oct 2018 08:21 PM (IST)
ग्रामीण क्षेत्रों में भी बदला दशहरा का स्वरूप

केरेडारी : प्रखंड में दशहरा पर्व को लेकर नवरात्रा का पाठ कंडाबेर जैसे शक्ति पिठों, गांव के देवी मंडपों और दुर्गापूजा पंडालों में मां दुर्गे की नौ रूपों की पूजा अर्चना से पूरा प्रखंड भक्तिमय हो उठा है। वैसे अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी पूरी तरह दशहरा पर्व का स्वरूप बदल सा गया है।

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केरेडारी में जब पहली बार दुर्गापूजा की हुई शुरुआत हुई थी उस वक्त गांव के दुर्गामंडप मिट्टी की दीवार व खपरैल की छत हुआ करते थे। तथा पारंपरिक ढोल, नगाड़ा व शहनाई की गूंज व महिलाओं द्वारा

गाए देवी के लोक गीतों से वातावरण भक्तिमय हुआ करता था। साथ ही

गांव में नवमी के दिन सामूहिक रूप से बकरों की बलि ग्रामीणों के लिए आकर्षण का केंद्र हुआ करता था। आज से करीब 93 वर्ष पूर्व का दशहरा पूरी सादगी और देवी के प्रति समर्पण था जो आज मां की भव्य प्रतिमा, लाखों का पंडाल और

आधुनिक साउंड व डीजे ने प्रतियोगिता का रूप ले लिया है। वैसे केरेडारी प्रखंड में अंग्रेजों के भी मां का आशीष लेने पहुंचने का इतिहास बताया जाता है।

- केरेडारी में दुर्गापूजा की शुरुआत

सबसे पहले प्रखंड के चटटीबारीयातु गांव के स्व बैजु साव, कुंवर साव ने ग्रामीणों की मदद से वर्ष 1925 ई0 में प्रारभ्भ्ा किया था। यहां अंग्रेजों द्वारा मां दुर्गे की पूजा अर्चना करने का इतिहास बताया जाता है। वहीं वर्ष 1930 ई. में कंडाबेर मां अष्टभुजी के गर्भ गृह में कलश स्थापना कर 92 वर्षीय देवदत मिश्रा के पिता भागी मिश्रा द्वारा पूजा प्रारंभ किया गया था।

जबकि 1948 ई0 में पहरा गांव में सकलदेव सिहं के द्वारा, केरेडारी मुख्य चौक पर वर्ष 1951 ई0 में,मुरलीधर दूबे, चंद्रदेव तिवारी, तथा बासुदेव हलवाई के द्वारा दुर्गापूजा की शुरुआत की गई थी। 1965 ई0 में नागेश्वर महतो ने ग्रामीणों के सहयोग से बारीयातु गांव में मां की पूजा अचर्ना शुरू की थी। वहीं गत वर्ष 2013 में प्रखंड का अति दूरस्थ पंचायत पताल का गांव हेन्देगीर

में भी मुखिया झुबरी देवी के नेतृत्व में दुर्गापूजा भव्य रूप से प्रारंभ किया गया था। वैसे पूरा प्रखंड भक्तिमय हो उठा है। चारों ओर मां का आशीष बरस रहा है, जिससे भक्तगण निहाल हो रहे हैं।


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