कभी स्वच्छ जल और सफेद बालू थी बरही नदी की पहचान
कभी स्वच्छ जल और सफेद बालू थी बरही नदी की पहचान
कभी स्वच्छ जल और सफेद बालू थी बरही नदी की पहचान
प्रमोद बरही (हजारीबाग) : ऐसे तो हमारी संस्कृति में नदियां सदैव आस्था का प्रतीक रही हैं। लेकिन समय के साथ बदलते काल चक्र ने इन जीवनदायिनी धाराओं को अभिशप्त बना दिया है। कई ऐसी नदी है जो कभी क्षेत्र के लिए वरदान थी, आज खुद अपनी पहचान खो रही है। हम बात कर रहे हैं बरही नदी की जो कभी स्वच्छ जल, नदी में कल-कल करती पानी की धाराएं और सफेद बालू के लिए अपनी अलग पहचान रखती थी। क्षेत्र के हर वर्ग व समुदाय के लोगों के लिए यह वरदान साबित होता रहा। किंतु आज वह खुद अस्तित्व खो रहा है। खासकर बरही का ऐतिहासिक सूर्य नदी व बरहीडी छठ घाट नदी आज अपनी अस्तित्व खो रही है। नदी में पानी का स्तर काफी कम है। नदी में बालू की जगह मिट्टी और पानी के जगह कीचड़ व घास आदि अधिक हो गए हैं। कुल मिलाकर नदी अपना अस्तित्व खो रहा है। यानी आज नदी की कोख में पानी कम और गंदगी की भरमार है। जबकि सामाजिक व धार्मिक आस्था से जुड़ी बरही नदी बरही मुख्यालय से महज एक किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा की ओर स्थित है। बरही के दोनों समुदाय की घनी आबादी सदियों से सामाजिक व धार्मिक कार्य के साथ साथ पानी आपूर्ति एवं कपड़ा धुलाई व नहाने का साधन का उपयोग पूर्वज जमाने से करते आ रहें हैं। श्मशान घाट व कब्रिस्तान इसी नदी के किनारे स्थित है।