नक्सली गढ़ में पीली क्रांति का हुआ आगाज
गुमला जहां कुछ साल पहले माओवादियों की गरजती थी बंदूके दहशत में जीते थे किसान बदहाली
गुमला : जहां कुछ साल पहले माओवादियों की गरजती थी बंदूके, दहशत में जीते थे किसान, बदहाली और कंगाली की थी स्थिति, वहां जिला कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों के प्रयास से अब पीली क्रांति हुई है। किसानों की आय को दोगुना करने के उद्देश्य से विकास भारती बिशुनपुर द्वारा संचालित जिला कृषि विज्ञान केन्द्र ने लगभग 40 एकड़ जमीन में राई और सरसो की खेती कर इस क्रांति को धरातल पर उतारने का काम किया है। कम पानी और बेहतर उपज
कुल 51 किसानों ने जिला कृषि विज्ञान केन्द्र के तकनीकी समर्थन से राई और सरसों की उम्दा किस्म की बीज खेतों में लगाई है। कम पानी और कम लागत से की गई खेती से किसानों के चेहरे खिलने लगे हैं। केन्द्र के वरीय वैज्ञानिक सह प्रमुख डा.संजय कुमार पांडेय ने बताया कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए यह नया प्रयोग किया गया है। जो सफल रहा हे। केन्द्र ने भूमि सर्वेक्षण और मिट्टी जांच के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के राजस्थान के भरतपुर स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय से परियोजना प्रायोजित कराया। उन्होंने बताया कि सरसों की खेती को इस जिले के किसानों के लिए एक उपयोगी एवं टिकाऊ आय का साधन बनाया जा सकता है। बनालात में सरसों की खेती एक मिसाल है जो किसानों के पलायन को रोकने में मददगार साबित हो रही है। किसानों की खुशहाली और आय बढ़ाना इसका मुख्य मकसद है। सरसों की खेती में कम पानी लगता है और लागत भी कम है। पूसा सरसों 97 से 100 दिन में फसल तैयार हो जाता है। इसका औसत उत्पादन प्रत्येक हेक्टेयर 19 से 21 क्विटल है। इसी तरह एनआरसी वाई एस 05-02 पीली सरसों की परिपक्वता की अवधि 94 से 103 दिन की है। इसका उत्पादन क्षमता 12 से 17 और अधिकतम 24 क्विटल है। उसके अनुसार बीआरएन 27 द्वारा इस जिले में किसानों के सौ एकड़ जमीन पर प्रत्यक्षण कराया है। जिससे आने वाले दिनों में यह जिला तिलहन के मामले में आत्मनिर्भर बन जाएगा। इसी तरह आय को दोगुना करने के लिए पीली क्रांति के साथ मधु क्रांति लाने का प्रयास किया गया है और किसानों को मधु उत्पादन से आय बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। यह भी टिकाऊ आय का हिस्सा है। सरसों का बाजार मूल्य एवं समर्थन मूल्य प्रति क्विटल 42 सौ से अधिक है। किसान कुंती देवी, बाबुराम उरांव, रामवृक्ष उरांव, सुरेश राम उरांव, अवध खेरवार एवं सुबे उरांव ने बताया कि इस तरह की खेती से उन्हें ज्यादा उत्पादन के कारण बड़ी राहत मिली है।