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अंग्रेजों व जमीनदारो के खिलाफ थे तेलगां खडि़या

By Edited By: Published: Sat, 09 Feb 2013 01:05 AM (IST)Updated: Sat, 09 Feb 2013 01:06 AM (IST)

गुमला : आदिवासी बाहुल्य यह क्षेत्र काफी दिनों तक अंग्रेजों और जमींदारों का शासन रहा। अंग्रेज और जमींदार के जुल्म से लोग त्रस्त थे। ग्रामीण शोषण से मुक्ति चाहते थे। अंधेरा में चिराग की तरह मुरगू निवासी तेलगां खड़िया ने अंग्रेजी और जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद किया। अंग्रेजों के खिलाफ गांव-गांव में लोगों को संगठित करना शुरू किया और अपने गांव मुरगू से अंग्रेजों के खिलाफ विगूल फुंक दिया। तेलगां पढ़ाई लिखाई में थोड़ा कमजोर था लेकिन वह बचपन से ही काफी हिम्मत वाला और साहसी था। उसका जन्म मुरगू गांव में नौ फरवरी 1806 ईसवी में हुआ था। इसके पिता का नाम ठुइंया खड़िया और माता का नाम पेतो खड़िया था। अंग्रेजों के जुल्म और जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज बुलन्द करने वाले वीर तेलगां खड़िया भले ही आज उनके बीच नहीं है लेकिन इस महान नायक की कुर्बानी आज भी गुमला वासियों के जुबान में है। अंग्रेजों हुकूमत और जमींदारों के जुल्म की कहानी माता पिता से सुना था जिस कारण युवावस्था में वह अंग्रेजों को नुकसान पहुंचाने के लिए अपना अवसर देखते रहते था। चालीस वर्ष की आयु में तेलंगा की शादी रतनी खड़िया से हुई। इस काल में अंग्रेजों का जुल्म परवान चढ़ रहा था। वह अपना घर बार छोड़कर गांवों में घूम-घूम कर लोगों को संगठित करने का काम किया। संगठन विस्तार के क्रम में अंग्रेजों के दलाल ने कुम्हारी से तेलगां को गिरफ्तार कर लिया और दो वर्ष के लिए जेल में बंद कर दिया। जेल में बंद तेलगां का आक्रोश अंग्रेंजों के खिलाफ दोगुना हो चुका था। वह जेल से छूटकर अपना घर मुरगू आया। मुरगू में लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ गोलबंद करने लगा और लोगों को तलवार बाजी सिखाने लगा। इसी दौरान अंग्रेजों के दलाल ने उसे गोली मार दी और 23 अपै्रल 1880 में उसकी मृत्यु हो गई। इसके मृत शरीर को मुरगू से लाकर गुमला के चंदाली में दफन कर दिया गया। खड़िया समाज के लोग आज भी तेलगां खड़िया को भगवान की तरह पूजा करते हैं।

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