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प्रज्ञा को मां दुर्गा का रूप मानते सुंदरपहाड़ी के पहाड़िया

पहाड़िन महिलाओं के सुरक्षित प्रसव के लिए पहाड़ खेत - खलिहान तक की खाक छानी - पहाड़ से उतार कर सुंदरपहाड़ी पीएचसी में टार्च की रोशनी में कराया संस्थागत प्रसव जासं गोड्डा जिले के दामिने कोह के नाम से विख्यात सुंदरपहाड़ी प्रखंड के पहाड़ों पर

By JagranEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 05:49 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 05:49 PM (IST)
प्रज्ञा को मां दुर्गा का रूप मानते सुंदरपहाड़ी के पहाड़िया

जासं गोड्डा : जिले के दामिने कोह के नाम से विख्यात सुंदरपहाड़ी प्रखंड के पहाड़ों पर रहने वाली पहाड़िया जनजाति के लोगों का कहना है कि जिस प्रकार मां दुर्गा लोगों की रक्षा करती है। उसी प्रकार हमारे घरों की घरवाली की रक्षा तो प्रज्ञा दीदी करती हैं। जब वह नहीं थी दर्जनों घरों की महिलायें प्रसव के दौरान मर गई। जब से प्रज्ञा दीदी आई हैं, तब से यहां की महिलाओं का सुरक्षित प्रसव हो रहा है। इसलिए प्रज्ञा दीदी हमारे लिए सक्षात मां दुर्गा का रूप है। सुंदरपहाड़ी प्रखंड में कालाजार और मलेरिया का अत्यधिक प्रकोप रहता है। इस डर से प्रखंड व जिला पदाधिकारी जब भी पहाड़ की ओर रूख करते हैं, तो पीने का पानी अपने साथ लेकर जाते हैं। पहाड़ों पर अधिकांश आबादी पहाड़िया जनजाति की है। इन जगहों पर पहुंचने के लिए कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ग्वालियर की रहने वाली प्रज्ञा बाजपेयी ने महिलाओं के सुरक्षित प्रसव के लिए सुंदरपहाड़ी के पहाड़ों की खाक छान मारी। पहाड़ों पर धान की खेती करने वाली महिलाओं तक पहुंची। खुद कई बार कालाजार और मलेरिया के चपेट में भी आई। लेकिन धुन की पक्की प्रज्ञा ने हार नहीं मानी। पहाड़िया समुदाय के लोग इनकी भाषा को भी नहीं समझते। इसके लिए प्रज्ञा ने पहाड़िया भाषा भी सीखी और महिलाओं को अस्पताल की ओर रूख करने के लिए प्रेरित किया। वह प्रदान संस्था की एनजीओ की तरफ से यहां पर काम करने एक दशक पहले गोड्डा आई थी। मृत्यु दर में आई कमी: प्रज्ञा बाजपेयी कहती हैं कि सुंदरपहाड़ी प्रखंड के पहाड़ी इलाके में पहाड़ों पर प्रसव के दौरान जच्चा- बच्चा की मृत्यु दर सबसे अधिक थी। इसका मुख्य कारण था संस्थागत प्रसव का अभाव। पहाड़ों पर ओझा- गुणी और जड़ी- बूटी के चक्कर में गर्भवती महिलायें जान गंवा देती थी। अस्पताल की ओर वह रूख ही नहीं करती थी। इसका मुख्य कारण शिक्षा का अभाव था। पहाड़ों पर पीने का पानी झरना से ही मिल पाता था। झरना का पानी शुद्ध नहीं होने के कारण गर्भवती महिलाऐं मलेरिया की चपेट में आ जाती थी। जड़ी- बूटी तथा झोला छाप डॉक्टर के चक्कर में या तो समय से पहले इनका गर्भपात हो जाता था, या फिर गर्भवती महिला ही मर जाती थी।

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टॉर्च की रोशनी में कराया संस्थगत प्रसव : प्रज्ञा कहती हैं कि सुंदरपहाड़ी का स्वास्थ्य केन्द्र में पहले रात में डॉक्टर नहीं रहते थे। अस्पताल में बिजली की भी व्यवस्था नहीं थी। कई बार पहाड़ों से गर्भवती महिलाओं के पहुंचने पर टार्च की रोशनी में प्रसव कराया गया। इससे भी काम नहीं चला तो सदर अस्पताल गोड्डा तक ले गई। कहती हैं कि स्थिति में काफी सुधार हुई है। जरूरत पड़ने पर यहां नर्स से लेकर डॉक्टर को भी पहाड़ों पर चढ़ना पड़ता है। जागरूकता के बाद अब पहाड़िया महिलायें भी संस्थागत प्रसव के लिए अस्पताल का रूख करने लगीं हैं।


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