विदेशों में भी धूम मचा रही बंसतराय की जरी कला
अपने हाथों से बनी बनाई जरी(लेवल) लहंगा न सिर्फ देश बल्कि विदेशो में भी धूम मचा रही है बल्कि अपनी आजीविका भी चला रहे हैं। मोहमद कासिम इस धंधे से कई वर्षों से जुड़े हैं उन्होंने बताया कि उनके द्वारा बनायी जा रही समानों की मांग अमेरिका रूस नेपाल आदि में ज्यादा है।
- बसंतराय की जरी कला से बेखबर झारखंड सरकार
ललन झा / संस, बसंतराय : बसंतराय प्रखंड के कारीगरों के हाथों के हुनर से तैयार जरी कला की बैच न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी धूम है। बसंतराय में जरी कला से जुड़े हजारों कामगार हैं जो अपने हुनर के बल पर आजीविका चला रहे हैं। मोहम्मद कासिम इस धंधे से कई वर्षों से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा बनायी जा रही बैच की मांग अमेरिका, रूस, नेपाल आदि देशों में ज्यादा है। इन देशों के खासकर पुलिस, आर्मी, एयरफोर्स, पारा मिलिट्री आदि के लिए वे सभी बैच बनाते हैं जो जरी कला से तैयार होती है। इसके लिए विदेशी मांगकर्ताओं के पास पहले सैंपल भेजा जाता है, अगर सैंपल पसंद आ जाता है तो फिर वहां की सरकार से काफी संख्या में ऑर्डर मिलता है। इस जरी कला को बनाने में जो समान प्रयुक्त होता है वे स्थानीय बाजार में उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए सभी सामान दिल्ली से ही लाकर तैयार किया जाता है। इस कार्य में स्थानीय युवा काफी संख्या में जुड़े हुए हैं जो अपने हाथों से काफी बारीकी से मनपसंद डि•ाइन की जरी व मनभावन लहंगा और डिजाइनर बैच तैयार करते हैं। काम से जुड़े लोग प्रति दिन 500 से 600 रुपये तक कमा लेते है और जिनसे उनका परिवार चलता है। लॉकडाउन में धंधा हुआ मंदा : बीते तीन माह से अधिक समय से जारी लॉकडाउन में बसंतराय की जरी कला का कारोबार अभी बिल्कुल बंद है। कहीं से कोई डिमांड नहीं है। इधर दो चार दिनों से पुन: इस कारोबार को शुरू किया जा रहा है। वर्तमान समय में बसंतराय में ही करीब तीन हजार लोग इस धंधे से जुड़े है। लेकिन जो हालात है काफी संख्या में लोग बेरोजगार बनकर घर बैठे हुए हैं। अपने ही राज्य में उन्हें पहचान नहीं मिल पाई है। देश विदेश में बसंतराय की पहचान बनी है लेकिन यह बिडंबना है कि झारखंड सरकार इस कला से अनजान बनी हुई है। बसंतराय की जरी कला की मांग देश के अन्य राज्यों में है लेकिन झारखंड में कोई डिमांड नहीं है। राज्य सरकार अगर इस धंधे में कुछ मदद करे तो काफी संख्या में युवाओं को रोजगार मिल सकता है।