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गरीबों की दुनिया के बड़े शिल्पकार थे मुंशी प्रेमचंद

गोड्डा मुंशी प्रेमचंद जो जीते थे वही रचते थे। प्रेमचंद ने अपने उपन्यास में चरित्र को प्रधानता

By JagranEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 07:42 PM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2020 06:13 AM (IST)
गरीबों की दुनिया के बड़े शिल्पकार थे मुंशी प्रेमचंद
गरीबों की दुनिया के बड़े शिल्पकार थे मुंशी प्रेमचंद

गोड्डा : मुंशी प्रेमचंद जो जीते थे, वही रचते थे। प्रेमचंद ने अपने उपन्यास में चरित्र को प्रधानता दी। यूरोपीय उपन्यास के विकास की भी यही दिशा है। विश्व के तीन महान साहित्यकार मैक्सिम गोर्की, शरद्चंद और प्रेमचंद 1936 में ही दुनिया से चल बसे। शरदचंद और प्रेमचंद के उपन्यास पढ़ने पर पाठकों की आंखे नम होती है। प्रेमचंद के उपन्यास पढ़ने पर आंसू आते हैं मगर वे आंसू पाठक को क्रांति के लिए मजबूर कर देते है। प्रेमचंद की जयंती पर गोड्डा के साहित्यकारों ने उन्हें नमन करते हुए आदरांजलि दी है।

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फोटो - 22

प्रेमचंद के उपन्यास में गूंजती थी रोटी : डॉ नवीन गोड्डा के जाने माने साहित्यकार और सुंदरपहाड़ी उच्च विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक डॉ नवीन कुमार ने कहा है कि प्रेमचंद के उपन्यासों में रोटी गूंजती है। आध्यत्मवाद नहीं गूंजता। आजादी के समय उन्होंने साहित्य लेखर कर तब की साम्यवादी स्थितियों को ²ष्टिगोचर किया। प्रेमचंद को कई लोग गांधीवादी, मा‌र्क्सवादी, आर्यसमाजी, साम्यवादी, आध्यात्मवादी मानते हैं मगर वास्तव में वे निम्न वर्ग के प्रतिनिधित्व की करते रहे। प्रेमचंद के साहित्य में चार वर्ग हमेशा सहानुभूति पाते रहे। सीमांत किसान, मजदूर वर्ग , अछूत और नारी।इस कारण गरीबी दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय प्रेमचंद ही हैं। उनकी रचना गोदान युग जीवन का प्रतिबिब भी है और आने वाले युग की कसौटियां भी।

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फोटो - 23

प्रेमचंद का साहित्य समाज का दर्पण : डॉ ठाकुर जिले के जाने माने साहित्यकार डॉ मौसम कुमार ठाकुर ने कहा है कि हिदी साहित्य में ग्राम्य जीवन की आत्मा,कलम के सिपाही, कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद द्वारा कुशल कारीगर की भांति सामाजिक संवेदनाओं, अंतर्वेदनाओं और मनोवेदनाओं को अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में लोगों के चितन और मनन के लिए रखा गया है। साहित्य समाज का दर्पण होता है, इसे मुंशी प्रेमचंद ने ही चरितार्थ किया। होरी,धनियां, गोबर, झुनियां आदि पात्रों की दशा एवं मनोदशा का सजीव चित्रण कर सामाजिक समरसता के छेदों को ²ष्टिगोचर किया है।अपनी सहज और सुगम रचनाओं के माध्यम से मुंशी जी ने अपने विचार सत्य ,सुंदर और आनंद के समन्वित रुप-साहित्य है, को बल दिया है। यही कारण है कि उनकी रचनाएं आज भी रुचिकर और प्रासंगिक है। लगता है हमारे आस-पड़ोस से मिलती जुलती कहानी है। एक मजदूर की तरह अपनी15 उपन्यास 300 से अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद और 7 बाल साहित्यों से हिदी साहित्य को समृद्ध करने वाले मुंशी प्रेमचदं को उनकी जयंती पर भावभीनी आदरांजलि है। मानवीय संभावनाओं और मूल्यों को खोजने वाले, तराशने वाले इस पथिक को शत शत नमन।


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