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पुलिस की पिटाई में मुंह से निकलने लगा खून पर नहीं छोड़ा तिरंगा

गोड्डा पथरगामा प्रखंड के कोरका गांव के स्वतंत्रता सेनानी स्व. माधो रामदास के परिवार के पा

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Aug 2020 06:35 PM (IST)Updated: Fri, 14 Aug 2020 06:35 PM (IST)
पुलिस की पिटाई में मुंह से निकलने लगा खून पर नहीं छोड़ा तिरंगा

गोड्डा : पथरगामा प्रखंड के कोरका गांव के स्वतंत्रता सेनानी स्व. माधो रामदास के परिवार के पास उनकी याद में एक तस्वीर तक नहीं है। लेकिन आजादी के पूर्व के समय का उनका साथी चरखा आज भी उनके बलिदान की याद दिलाता है। कोकरा गांव में आज भी स्वतंत्रता सैनानी माधो रामदास की अंतिम निशानी चरखा को उनके परिजनों ने धरोहर के रूप में संजो कर रखा है। स्वतंत्रता सैनानी माधो रामदास की बेटी उत्तीमा देवी कहती हैं कि उनकी मां जीतनी देवी बताती थी कि पिता आजादी के पहले भी गांधी जी के बताये रास्ते पर चलते थे। महात्मा गांधी के सलाह पर खरीदे चरखा से प्रतिदिन सवेरे सवेरे सूत काटते थे। अपने जीवन पर्यंत उन्होंने चरखे को साथ रखा। आज भी उनके वंशजों ने कोराका गांव में चरखा को धरोहर के रूप में संजोकर रखा है।

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दारोगा के पीटने पर मुंह से खून निकला पर तिरंगा नहीं गिरने दिया : माधो रामदास के साथी स्वतंत्रता सेनानी नंदकिशोर मांझी कहते हैं कि माधो रामदास शुरू से ही क्रांतिकारी विचार के आदमी थे। देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए डॉ अनिरूद्ध मंडल, दीनदयाल रामदास, बुद्धिनाथ झा कैरव, भुवनेश्वर मंडल, बनारसी लायक, कटकी मंडल, दामोदर भंडारी, जगदीश नारायण मंडल आदि के साथ रणनीति बनाते रहते थे। कम उम्र में ही 1942 की क्रांति में ही माधो रामदास आजादी की लड़ाई में कूद गये थे। वे जगह- जगह पर अंग्रेजों का विरोध करने लगे थे। परिणाम स्वरूप माधो रामदास को अंग्रेज की पुलिस ने पकड़ा तो उस समय के दारोगा मजीद ने रजौन गांव के समीप खुली सड़क पर छाती पर चढ़कर खूब पीटा। सड़क पर घसीट कर बहुत दूर तक ले गया। इससे उसके मुंह से खून निकलने लगा। दारोगा मजीद कहने लगा कि हाथ में पकड़े तिरंगा को फेंक दो तो तुझे छोड़ देंगे। गंभीर रूप से जख्मी होने के बाद भी माधो रामदास ने अपने हाथ से तिरंगा नहीं फेंका। अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दारोगा के सामने ही लगाने लगे। इसके बाद मजीद दारोगा ने माधो रामदास को भागलपुर सेंट्रल जेल भेज दिया। काफी दिनों तक वे भागलपुर सेंट्रल जेल में ही रहे।

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जख्मी माधो ने जेल की यातना से कुछ ही दिन में तोड़ा दम : माधो रामदास की इकलौती बेटी उत्तिमा देवी कहती हैं कि मेरा जन्म अगस्त 1947 में हुआ। उस समय मेरे पिताजी माधो रामदास जिदा थे। मां जीतनी देवी बताती थी कि आजादी मिलने पर माधो रामदास ने कई गांवों में जाकर दिवाली सा जश्न मनाया था। जेल की यातना से वे भीतर से टूट चुके थे। कई बीमारियों ने उनके शरीर को भीतर ही भीतर खोखला कर दिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि आजादी मिलने के कुछ ही दिन बाद पिता माधो रामदास का निधन हो गया। पिता गुजरने के बाद मां ने भी काफी तकलीफ में भरण- पोषण किया। बाद में पिता के स्वतंत्रता सेनानी का पेंशन मां को काफी दिन तक मिला। अब तो दुनिया में मां भी नहीं रही। घर में इन सभी की याद में अगर कुछ बचा है तो वह पिताजी का चरखा।


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