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खेती में जैविक खाद का उपयोग ज्यादा लाभदायक

संवाद सहयोगी गोड्डा ग्रामीण विकास ट्रस्ट- कृषि विज्ञान केंद्र गोड्डा के सभागार में किसा

By JagranEdited By: Published: Fri, 18 Jun 2021 07:26 PM (IST)Updated: Fri, 18 Jun 2021 07:26 PM (IST)
खेती में जैविक खाद का उपयोग ज्यादा लाभदायक
खेती में जैविक खाद का उपयोग ज्यादा लाभदायक

संवाद सहयोगी, गोड्डा: ग्रामीण विकास ट्रस्ट- कृषि विज्ञान केंद्र, गोड्डा के सभागार में किसानों के लिए भारत के स्वतंत्रता के 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में जागरूकता शिविर के अन्तर्गत ''खाद का संतुलित उपयोग'' कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में कोविड-19 के मापदंड को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि पंचायत सैदापुर की मुखिया रीता देवी, जिला कृषि पदाधिकारी डा. रमेश चन्द्र सिन्हा, आत्मा गोड्डा के उप परियोजना निदेशक राकेश कुमार सिंह, जीवीटी-कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक-सह-प्रधान डा. रविशंकर एवं गंगटा फसिया एफपीओ की सदस्य चांदनी कुमारी ने दीप जलाकर किया। सैदापुर पंचायत की मुखिया रीता देवी ने सभी किसानों को गोबर की खाद को खेत में अधिक से अधिक प्रयोग करने एवं जैविक खेती करने के लिए जोर दिया। जिला कृषि पदाधिकारी डा. रमेश चन्द्र सिन्हा ने पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए खाद, उर्वरक, उर्वरक के प्रकार, यूरिया, डीएपी, पोटाश का संतुलित मात्रा में प्रयोग करने के लिए विस्तारपूर्वक बताया। आत्मा के उप परियोजना निदेशक राकेश कुमार सिंह ने खाद एवं उर्वरकों के संतुलित मात्रा में प्रयोग करने हेतु मिट्टी की जांच एवं महत्व पर प्रकाश डाला। वरीय वैज्ञानिक-सह-प्रधान डा. रविशंकर ने किसानों से मिट्टी उपजाऊ बनाये रखने के लिए संतुलित मात्रा में खाद, उर्वरक तथा जैविक खाद का प्रयोग करने के लिए आह्वान किया। मिट्टी की जांच कृषि विज्ञान केंद्र की प्रयोगशाला में कराने के लिए प्रेरित किया। उद्यान वैज्ञानिक डा. हेमन्त कुमार चौरसिया ने जैविक खेती, जैव उर्वरक जैसे- एजोटोबैक्टर, राईजोबियम, पीएसबी, केएमबी, तरल खाद, के प्रयोग से 50 से 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रासायनिक उर्वरक की बचत होती है तथा 10 से 15 प्रतिशत फसल उत्पादन में वृद्धि होती है। धान की फसल में नील हरित शैवाल के प्रयोग से 20 से 25 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की बचत होती है। कृषि प्रसार वैज्ञानिक डा. रितेश दुबे ने वेस्ट डीकम्पोजर द्वारा खर-पतवार, गोबर, कचरा को सड़ाकर खाद बनाने की विधि, फसलों एवं सब्जियों पर वेस्ट डीकम्पोजर घोल का छिड़काव, सूक्ष्म सिचाई द्वारा खाद डालने की विस्तृत जानकारी दी। मौसम वैज्ञानिक रजनीश प्रसाद राजेश ने मिट्टी का नमूना लेने की विधि की विस्तृत जानकारी दी। किसानों को खाद एवं उर्वरकों के संतुलित प्रयोग से संबंधित फिल्म दिखाया गया। किसानों को मिट्टी जाँच प्रयोगशाला का भ्रमण कराने के दौरान मृदा परीक्षक यंत्र द्वारा 12 पोषक तत्वों के परीक्षण के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी तथा मिट्टी का नमूना संग्रह करने के लिए 15 सेमी. भी आकार गहरा गड्ढा खोदकर तत्पश्चात खुरपी की सहायता से गड्ढे के किनारों 500 ग्राम मिट्टी का नमूना लेना सिखाया गया। डा. अमितेश कुमार सिंह ने बताया कि हरी खाद जैसे-सनई, ढैंचा, उरद, मूंग की तैयार फसल को मिट्टी में मिलाने से 30 से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन तत्व का मिट्टी में ठहराव होता है। केंचुआ खाद तैयार करने की विधि, फसलों की उपज बढ़ाने में केंचुआ खाद की भूमिका एवं स्वरोजगार के रूप में केंचुआ खाद का उत्पादन करके अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं। डा. हेमन्त कुमार चौरसिया ने धन्यवाद ज्ञापन किया। मौके पर डा. सतीश कुमार, डा. प्रगतिका मिश्रा, वसीम अकरम, बुद्ध देव सिंह, अवनीश सिंह, राजेश कुमार, अमर साहनी, जयमंती हेम्ब्रम, प्रियव्रत झा, अभय कुमार सिंह, प्रिस कुमार, जयकृष्ण माल, नीतीश आनन्द, अनिल कुमार यादव, कृष्णा मुर्मू, चांदनी कुमारी समेत 58 वैज्ञानिक गण, कर्मचारी गण एवं प्रगतिशील किसान कार्यक्रम में सम्मिलित हुए।

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