स्कूटी पर कोयला बेच जीविका चलाते दिव्यांग मजदूर
ललमटिया पेट की भूख और परिवार की जिम्मेदारी के आगे शारीरिक अक्षमता आड़े नहीं आ सकत
ललमटिया : पेट की भूख और परिवार की जिम्मेदारी के आगे शारीरिक अक्षमता आड़े नहीं आ सकती। जी हां, ललमटिया श्रवण ने यह कर दिखाया है। पैरों से दिव्यांग श्रवण ने अपने जीवन से हार नहीं मानी और अपनी कमजोरी को ही जीवन का आधार बनाया। ट्राइ स्कूटी से श्रवण कोयला ढोकर अपने परिवार की जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहा है। बुजुर्ग मां-बाप की सेवा श्रवण कुमार की तरह करने की इच्छा पाले इस कलयुगी दिव्यांग श्रवण से जब जागरण की बात हुई तो उसने बताया कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए शारीरिक अक्षमता आड़े नहीं आ सकती। खनन क्षेत्र से कोयला उठाकर वह स्कूटी से उसे गांव-गांव में जाकर बेच आता है और परिवार की गाड़ी खींच रहा है। बसडीहा के पास कोयला उतारने के क्रम में श्रवण ने बताया कि कहीं काम नहीं मिलने पर यह तरीका भी जीवन यापन का सही लगा। बूढ़े मां-बाप सहित परिवार के भरण-पोषण और दवा आदि के लिए प्रतिमाह 6000 की जरूरत होती है जो कोयला बेचकर अर्जित कर लेता हूं। उसने बताया कि पिता श्याम नाथ राम अब काफी बुजुर्ग हो गए हैं। वह काम धंधा नहीं कर सकते। परिवार की जिम्मेदारी उनपर है। मां भी बूढ़ी है। अत्यंत गरीब होने के बाद उनके माता पिता को वृद्धापेंशन भी नहीं मिलती है। महंगाई में परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल होता है लेकिन किसी तरह खुद के श्रम से भोजन आदि के लिए उपार्जन कर लेता हूं। बताया कि यदि उसे कोई काम मिलता तो वह पूरी ईमानदारी से करते, लेकिन ऐसा कोई अवसर नहीं मिला है। कोयला उठाने एवं स्कूटी में लादने में पूरा दिन निकल जाता है। कोई सहायता करने वाला भी नहीं है। घर में माता-पिता के अलावा पत्नी और दो छोटी-छोटी बेटियों की जिम्मेदारी उसपर है। खदान के कोयला से ही जीविका चलती है। बताया कि यहां सैकड़ों की संख्या में लोग प्रतिदिन साइकिल से कोयला ढोते हैं। साइकिल वालों से पुलिस प्रति साइकिल 100 लेती है, लेकिन मुझे कोई तंग नहीं करता। जिदगी की गाड़ी इस कदर कब तक चलेगी, यह सोचकर उसके चेहरे पर चिता का भाव भी झलका।