Move to Jagran APP

मन की आंखों से बुनते जीवन का ताना-बाना

पोडै़याहाट पोड़ैयाहाट प्रखंड के अमड़ा कामत गांव के ताहिर मियां दोनों आंखों से दिव्यांग

By JagranEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 07:23 PM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2020 07:23 PM (IST)
मन की आंखों से बुनते जीवन का ताना-बाना

पोडै़याहाट : पोड़ैयाहाट प्रखंड के अमड़ा कामत गांव के ताहिर मियां दोनों आंखों से दिव्यांग हैं, बावजूद मन की आंखों से हैंडलूम पर जीवन की ताना-बाना बुनते हैं। काम इतना सुंदर और कलात्मक कि आंख वाले भी एक बार सोचने को मजबूर हो जाते हैं। आसपास के गांवों में इनकी कारीगरी का लोग मिसाल दिया करते हैं। यही कारण है कि 2013 -14 में हैंडलूम सूती वस्त्र के लिए राज्यस्तरीय प्रथम पुरस्कार 25000 रुपये तथा प्रशस्ति पत्र भी दिया गया। 13 फरवरी 2019 को भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय द्वारा झारखंड के पारंपरिक हस्तकरघा उत्पाद के विकास के लिए इन्हें उत्कृष्टता प्रमाण पत्र एवं 20 हजार रुपये की नगद राशि भी दी गई थी।

loksabha election banner

---------------------------------------------

ताहिर मियां हैंडलूम चलाने में सिद्धहस्त : ग्रामीणों की माने तो ताहिर मियां दोनों आंख से दिव्यांग होने के बावजूद भी हैंडलूम में एक-एक धागे को इस तरह पिरोते हैं कि अच्छे-अच्छे की बोलती बंद हो जाती है। राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक पदाधिकारी आकर इन का निरीक्षण कर चुके हैं। बंद आंखों से एक से एक कलात्मक चित्रकारी कपड़े पर उतरने में ये माहिर माने जाते हैं। एक धागा भी कहीं से टूट जाए तो इन्होंने छूकर ही यह बता देते हैं कि किस ताना से धागा टूटा हुआ है और उसे टटोलकर तुरंत बना लेते हैं। इतना ही नहीं ताहिर मियां घर का भी सारा काम बहुत आसानी से करते हैं मसलन धान तैयार करना, धान पीटना , खेतों में जाना आदि कार्य भी यह सुगमता से ही कर लेते हैं।

---------------------------------------------

ताहिर मियां को नहीं मिली मदद : भले ही राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार से इन्हें इनके कार्यों को लेकर प्रशस्ति पत्र और राशि दी गई है। लेकिन जिले के पदाधिकारी को इनका ना तो ध्यान है नगद रही है यही कारण है कि इसे हथकरघा नहीं दिया है जिसके कारण यह पूर्णतया बेकार बैठा हुआ है। पहले गांव में दूसरे के हथकरघा पर यह काम किया करता था लेकिन इधर एक डेढ़ साल से हैंडलूम बंद पड़ा हुआ है जिसके कारण ताहिर मियां भी घर में बेकार है। ताहिर मियां ने बताया कि इस बार गांव में 28 हैंडलूम का वितरण हुआ लेकिन उसे नहीं मिला जबकि उन्होंने भी फॉर्म भर कर दिया था।

-------------------------------------------

बड़ी मुश्किल से परिवार का कर पा रहा है भरण पोषण : हैंडलूम बंद होने के बाद ताहिर मियां बिल्कुल बेकार हो गया है। वह कोई बड़ा काम नहीं कर सकता है। घर का ही छोटा मोटा काम करता है जिसके कारण इनकी आर्थिक स्थिति खराब चल रही है । उन्होंने बताया कि बड़ा लड़का शादी के बाद से अलग हो गया है और उसके ऊपर दो छोटे छोटे लड़का एवं तीन लड़की की भरण पोषण का जिम्मेदारी है।

-------------------------------------

हैंडलूम की कारीगरी तो रग-रग में है और उसके बगैर जीवन अधूरा है । यदि एक हैंडलूम मिल जाता तो वह कुछ ना कुछ घर में काम करके गमछा, लूंगी, कुर्ता आदि का कपड़ा बनाकर किसी तरह जीवन यापन कर लेता हूं। इस कार्य को करना जानता हूं जिसमें आसानी से घर चला लेते हैं।

- ताहिर मियां, कारीगर।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.