सावधान रहें: बिना फिल्टर आपके घरों में पानी पहुंचा रहा निगम
सत्येंद्र ¨सह, गिरिडीह: अगर आप भी नगर निगम द्वारा आपूर्ति किया जा रहा पानी पी रहे हैं तो सतर्क हो
सत्येंद्र ¨सह, गिरिडीह: अगर आप भी नगर निगम द्वारा आपूर्ति किया जा रहा पानी पी रहे हैं तो सतर्क हो जाएं। यह जल न तो शुद्ध है और न ही स्वच्छ। खंडोली डैम से बिना फिल्टर किए सीधे आपके घरों तक पानी पहुंचाया जा रहा है। लोगों की ¨जदगी से यह खिलवाड़ कोई एक-दो दिन से नहीं, बल्कि लगातार दो महीने से हो रहा है।
बता दें कि शहर की आधी आबादी को खंडोली वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से पेयजल की आपूर्ति की जाती है। इसके लिए यहां दो प्लांट का संचालन किया जा रहा है। पुराने प्लांट में दो इंटकवेल मशीन खराब होने के कारण जलाशय से लाए गए पानी को बगैर साफ किए सीधे संप एवं पाइप के सहारे घरों तक पहुंचाया जा रहा है। निगम यह कहकर पल्ला झाड़ रहा है कि खंडोली से पानी की आपूर्ति करने की जिम्मेवारी संवेदक को दी गई है। उसे ही यह सब देखना है। इस प्लांट के रखरखाव नहीं किए जाने के कारण लोगों को इस समस्या से जूझना पड़ रहा है।
शहर के लोगों की प्यास बुझाने के लिए खंडोली में बना डैम: शहर के लोगों को शुद्ध पेयजल की आपूर्ति करने के लिए यहां से करीब 12 किलोमीटर दूर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण वर्ष 1957 में किया गया था। यहां खंडोली जलाशय के पानी को लाकर उसे फिल्टर करने के बाद पाइप के सहारे उस पानी को शहर में निर्मित टंकियों में जमा किया जाता है। इसके बाद लोगों के घरों तक इसकी आपूर्ति की जाती है। बढ़ती आबादी को देखते हुए यहां बाद के दिनों में एक और वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बनाया गया। पुराने प्लांट में रखरखाव की कमी के कारण स्थिति यह है कि पिछले दो महीने से बगैर ट्रीटमेंट किए बगैर पानी लोगों के घरों में पहुंचा दिया जा रहा है। बताया गया कि इसका दो इंटकवेल महीनों से खराब है। यहां के तीन वॉल्व भी नहीं चल रहे हैं। सेफ टंकी में गाद जमा है, जिसके कारण बेड में यह साफ नहीं हो पाता है। बेड में जूठे पत्तल और प्लास्टिक पड़े हैं। फोकलेटर भी खराब है। पूरे प्लांट में गंदगी इस कदर भरी पड़ी है कि यहां चलना भी मुश्किल होता है।
यहां से प्रतिघंटा करीब 95 हजार गैलन पानी की आपूर्ति की जा रही है, जिसका कुप्रभाव ऑफिसर्स कॉलोनी, बरगंडा, न्यू बरगंडा, कर्बला रोड, अरगाघाट, शास्त्रीनगर, मकतपुर समेत शहर की आधी आबादी पर पड़ रहा है।
रात के अंधेरे में रहकर करना पड़ता काम: पुराने प्लांट में कार्यरत महेंद्र हेंब्रम, माकूब अंसारी एवं कलीम अंसारी ने बताया कि यहां एक भी बल्ब नहीं रहने के कारण रात में अंधेरे में रहकर काम करना पड़ता है। कई बार तो हमलोगों ने अपने पैसे से बल्ब लगाया है, इसके बावजूद न तो संवेदक की तरफ से कोई इसपर पहल की जाती है और न ही निगम की तरफ से। यहां काम करनेवालों के लिए कोई सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। पिछले चार महीने से वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। स्वीपर नहीं होने के कारण सफाई नहीं हो पाती है।
दो करोड़ खर्च के बाद भी लोग झेल रहे जलसंकट: शहर की आबादी बढ़ने के साथ ही पेयजल की मांग भी बढ़ती गई। जब एक प्लांट से मांग को पूरा करने में परेशानी होने लगी तो एक और प्लांट का निर्माण कराया गया। इस प्रकार यहां दो प्लांटों के माध्यम से लोगों को पेयजल की आपूर्ति की जाने लगी। पूर्व में यहां से इसकी आपूर्ति का भार पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के जिम्मे था, लेकिन बाद में इसकी जिम्मेवारी नगर निकाय ने ले ली। तब यहां नगर परिषद हुआ करता था। पूर्व में जहां सात-आठ लाख रुपये खर्च करने के बाद लोगों को पेयजल मुहैया करा दिया जाता था, वहीं आज शहर के लोगों को इसकी आपूर्ति करने के लिए संवेदक की बहाली कर दी गई है, जिन्हें प्रतिवर्ष नगर निगम की ओर से एक करोड़ 99 लाख रुपये का भुगतान किया जा रहा है। इसके बाद भी शहर के लोगों को समुचित मात्रा में पेयजल नहीं मिल पा रहा है। हर बार यही कहा जाता है कि बिजली की अनियमित आपूर्ति के कारण ही पेयजल की समुचित आपूर्ति संभव नहीं हो पा रही है।