अधूरी रह गई संसद पहुंचने की तमन्ना
दिग्गज मजदूर नेता व संयुक्त बिहार के मुख्यमंत्री रहे बिदेश्वरी दुबे के सानिध्य में राजनीति में पांव जमाने वाले राजेंद्र प्रसाद सिंह कांग्रेस व इंटक के दिग्गज नेता थे। संयुक्त बिहार में वे ऊर्जा एवं झारखंड में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके थे।
दिलीप सिन्हा, गिरिडीह : दिग्गज मजदूर नेता व संयुक्त बिहार के मुख्यमंत्री रहे बिदेश्वरी दुबे के सानिध्य में राजनीति में पांव जमानेवाले राजेंद्र प्रसाद सिंह कांग्रेस व इंटक के दिग्गज नेता थे। संयुक्त बिहार में वे ऊर्जा एवं झारखंड में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके थे। इंटक के वे राष्ट्रीय महामंत्री थे। विधानसभा चुनाव में उनका शानदार रिकार्ड रहा है। बेरमो विधानसभा क्षेत्र से वे छह बार विधायक चुने गए थे। इंटक की राष्ट्रीय राजनीति में अग्रणी भूमिका निभाने के कारण कांग्रेस पार्टी एवं खुद वे लोकसभा जाना चाहते थे लेकिन उनकी यह तमन्ना अधूरी रह गई।
बेरमो विधानसभा क्षेत्र से छह बार चुनाव जीतने वाले राजेंद्र प्रसाद सिंह तीन-तीन बार गिरिडीह लोकसभा सीट से भाग्य आजमाने के बावजूद लोकसभा नहीं पहुंच सके थे। तीनों बार उन्हें भाजपा के रवींद्र कुमार पांडेय के हाथों पराजित हो जाना पड़ा था। झामुमो के समर्थन के बावजूद राजेंद्र सिंह लोकसभा चुनाव नहीं जीत सके थे। रवींद्र पांडेय उनके मित्र कांग्रेस नेता कृष्णमुरारी पांडेय के बेटे हैं। इस कारण दोनों के बीच चाचा-भतीजा का रिश्ता था। राजेंद्र सिंह भले ही लोकसभा चुनाव नहीं जीत सकें लेकिन पूरे गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में उनका जबरदस्त प्रभाव था। यही कारण है कि उनके निधन की सूचना जैसे ही मिली पूरे क्षेत्र के कांग्रेसी व झामुमो कार्यकर्ता शोक में डूब गए।
गांडेय के झामुमो विधायक डॉ. सरफराज अहमद कभी संयुक्त बिहार में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे। वे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी थे। सरफराज 1984 में गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे। इसके बाद 89 के चुनाव में हार गए। सरफराज 91 एवं 92 उप चुनाव में भी गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हार गए। सरफराज अहमद ने बताया कि उन्होंने इसके बाद राजीव गांधी से कह दिया कि वे अब लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं। इस पर राजीव गांधी ने उनसे पूछा था कि गिरिडीह से कौन लड़ेगा। सरफराज ने राजेंद्र सिंह के नाम की अनुशंसा की थी। सरफराज ने बताया कि इसके पूर्व 1985 के विधानसभा चुनाव में गिरिडीह के सांसद होने के नाते पार्टी ने उनसे उनके संसदीय क्षेत्र के गिरिडीह, बेरमो, बाघमारा एवं टुंडी विधानसभा क्षेत्र के लिए प्रत्याशियों की अनुशंसा मांगी थी। उन्होंने गिरिडीह से ज्योतिद्र प्रसाद, बेरमो से राजेंद्र प्रसाद सिंह, बाघमारा से ओपी लाल एवं टुंडी से उदय कुमार सिंह की अनुशंसा की थी। उस चुनाव में चारों जीते थे। इसके बाद 96, 98 एवं 1999 के लोकसभा चुनाव में राजेंद्र प्रसाद सिंह कांग्रेस के टिकट पर गिरिडीह लोकसभा सीट से चुनाव लड़े। राजेंद्र सिंह जब पहली बार 96 में कांग्रेस से चुनाव लड़े तो उन्हें मात्र 84601 वोट मिले थे। वे तीसरे नंबर पर थे। भाजपा के रवींद्र पांडेय 218188 वोट लाकर चुनाव जीते थे। दूसरे नंबर पर जनता दल से डॉ. सबा अहमद थे। उन्हें 126525 वोट मिले थे। इसके बाद 98 के चुनाव में राजेंद्र सिंह झामुमो समर्थित प्रत्याशी बने। दो लाख 16 हजार 732 वोट लाकर भी राजेंद्र सिंह भाजपा के रवींद्र पांडेय से पिछड़ गए। पांडेय दो लाख 85 हजार 523 वोट लाकर चुनाव जीत गए थे। निवर्तमान सांसद झामुमो मार्डी के राजकिशोर महतो को 76124 वोट मिले थे। आज की तरह यदि गठबंधन हुआ होता तो राजेंद्र सिंह 98 में ही लोकसभा पहुंच जाते। 99 लोकसभा चुनाव में राजेंद्र सिंह ने रवींद्र पांडेय को कांटे की टक्कर दी थी। राजेंद्र सिंह को दो लाख 28 हजार 630 वोट मिले थे, जबकि दो लाख 48 हजार 454 वोटर लाकर पांडेय फिर चुनाव जीत गए।
लोकसभा चुनाव में जहां रवींद्र पांडेय का ग्राफ लगातार गिर रहा था, वहीं राजेंद्र सिंह का ग्राफ लगातार बढ़ रहा था। 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने गिरिडीह सीट गठबंधन के तहत झामुमो के खाते में डाल दिया। राजेंद्र सिंह के सानिध्य में राजनीति करने वाले कांग्रेस के प्रदेश प्रतिनिधि नरेंद्र सिन्हा छोटन ने बताया कि 99 के चुनाव में राजेंद्र सिंह मामूली वोटों से हार गए थे। इसके बावजूद 2004 के चुनाव में पार्टी ने गठबंधन के कारण उन्हें नहीं उतारा। हजारीबाग जिले के मांडू विधानसभा क्षेत्र के विधायक टेकलाल महतो को झामुमो ने यहां उतारा था। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उन्हें जीताकर दिल्ली भेजा था।