इस मखमली कालीन पर दुनिया फिदा, कालीन बनाने वाले रोटी को मोहताज
बुनकरों को इस बात का दर्द है कि इतनी मेहनत के बाद आशातीत मजदूरी नहीं मिल पाती जबकि कालीन बनाने का काम बहुत मेहनत भरा होता है।
गिरिडीह [दिलीप सिन्हा]। झारखंड के गिरिडीह जिले का गांडेय प्रखंड कालीन उद्योग के केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है। उत्तरप्रदेश के भदोही की तर्ज पर यह इलाका बुनकरों की नगरी के रूप में तब्दील होता दिख रहा है। गांडेय में बनने वाले मखमली कालीन को विदेशी बाजार भी मिल रहा है। लोहारी और पुतरिया जैसे गांवों में दर्जनों बुनकर परिवार कालीन निर्माण में जुटे हुए हैं। यहां के कारीगर कालीन बुनने के बाद उसे राजस्थान भेजते हैं।
वहां से धुलाई और डिजाइनिंग कर इसे यूरोप, सऊदी अरब, आस्ट्रेलिया तक निर्यात किया जाता है। सादे कालीन की कीमत 50 हजार रुपये से शुरू होती है और एक लाख रुपये तक होती है, वहीं कलर और डिजाइन वाले कालीन की कीमत एक लाख से शुरू होकर दो लाख रुपये तक जाती है।
पुतरिया गांव के रहने वाले बुनकर निताय प्रसाद वर्मा ने बताया कि पहले वह भदोही में कालीन बनाने का काम किया करते थे। इस काम की बारीकियां सीखने के बाद गांव लौट आए और कालीन बनाना शुरू किया।
इसके लिए कालीन बनानेवाली जयपुर रग्स कंपनी से संपर्क किया। उस कंपनी की ओर से कालीन बनाने में प्रयोग होनेवाली आवश्यक सामग्री उपलब्ध करा दी जाती है। निताय ने बताया कि देखते ही देखते गांव के कई बेरोजगार युवक इस काम से जुड़ गए।
पिछले आठ साल में यह काम तेजी से अन्य गांवों में फैल गया। निताय ने बताया कि 11 फीट लंबा और आठ फीट चौड़ा एक कालीन तीन कारीगर महीने भर में तैयार करते हैं। इसे बनाने में दस प्रकार के धागों का प्रयोग होता है।
कंपनी की ओर से कारीगरों को 20 हजार 600 रुपये बतौर कालीन बुनाई के लिए मजदूरी दी जाती है। इस कालीन की कटिंग व धुलाई के बाद कंपनी एक लाख से अधिक कीमत वसूलती है। बुनकरों को इस बात का दर्द है कि इतनी मेहनत के बाद आशातीत मजदूरी नहीं मिल पाती जबकि कालीन बनाने का काम बहुत मेहनत भरा होता है। एक कारीगर को लगभग सात हजार रुपये की आमदनी हो पाती है। इसलिए कई बुनकरों को परिवार चलाने के लिए अन्य काम भी करने पड़ते है।