भारत ने पाक के 150 सैनिकों को मार टाईगर हिल पर लहराया था तिरंगा
26 जुलाई 1999। यह तिथि भारतीय इतिहास के स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। इसी दिन भारतीय सेना ने अपने शौर्य और पराक्रम का परिचय देते हुए न केवल दुश्मनों के दांत खट्टे किए थे बल्कि कारगिल में टाईगर हिल पर तिरंगा लहरा कर कारगिल विजय दिवस मनाया था। हमें गौरवान्वित किया था और पूरी दुनिया को यह संदेश भी दिया था कि भारतीय सेना दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। हमारी ओर आंख उठाकर देखने वालों की खैर नही कोई हमें कमजोर समझने की हिमाकत नहीं करे। उस दिन को याद कर हम सभी का सीना आज भी गर्व से चौड़ा हो जाता है।
गिरिडीह : 26 जुलाई 1999। यह तिथि भारतीय इतिहास के स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। इसी दिन भारतीय सेना ने अपने शौर्य और पराक्रम का परिचय देते हुए न केवल दुश्मनों के दांत खट्टे किए थे, बल्कि कारगिल में टाईगर हिल पर तिरंगा लहरा कर कारगिल विजय दिवस मनाया था। हमें गौरवान्वित किया था और पूरी दुनिया को यह संदेश भी दिया था कि भारतीय सेना दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। हमारी ओर आंख उठाकर देखने वालों की खैर नहीं, कोई हमें कमजोर समझने की हिमाकत नहीं करे। उस दिन को याद कर हम सभी का सीना आज भी गर्व से चौड़ा हो जाता है। हालांकि इस विजय के लिए हमें बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। देश की रक्षा के लिए करीब 550 भारतीय जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। कारगिल युद्ध में अपना योगदान देनेवाले भारतीय सेना के कई जवान आज भी हमारे बीच मौजूद हैं, उन्हीं में से एक हैं भारतीय सेना में हवलदार रहे अशोक कुमार। वह 2002 में सेना से सेवानिवृत्त हुए हैं और अभी वह गिरिडीह के प्रधान डाकघर में सहायक डाकपाल के पद पर कार्यरत हैं। मूलरूप से बिहार दानापुर के रहनेवाले अशोक ने दैनिक जागरण से कारगिल युद्ध के अनुभव और भारतीय सेना की शौर्य गाथा को साझा किया है। प्रस्तुत है अशोक की जुबानी युद्ध की कहानी :
युद्ध में निभाई है बड़ी भूमिका : 3 मई 1999 को कारगिल युद्ध शुरू हुआ था। हम तीन साथियों को रैकी करने और युद्ध में मोर्चा संभाले जवानों को मदद पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई थी। हम सभी सुबह हेलीकाप्टर से खाने-पीने का सामान लेकर निकल पड़ते थे। सभी जवानों को मोर्चा पर खाने-पीने के सामान पहुंचाते थे। युद्ध में घायल या शहीद होनेवाले जवानों को लेह स्थित सेना के अस्पताल में पहुंचाने की जिम्मेदारी हमारी ही थी। साथ ही आसमान से दुश्मनों की गतिविधियों पर नजर रखना और उसके बारे में अपने अफसरों को जानकारी देने का काम भी हमें सौंपा गया था।
सावधान नहीं थे हम, दुश्मनों ने उठाया फायदा : बकौल अशोक उस समय हमारे जवान पूरी तरह सावधान और सतर्क नहीं थे। इसी का फायदा दुश्मनों ने उठाया। करीब तीन हजार पाकिस्तानी सेना भारत की सीमा में प्रवेश कर गए थे। इसके बाद भारतीय सेना ने भी मोर्चा संभाल लिया। दोनों ओर से गोलीबारी शुरू हो गई। दुश्मनों को हम मुंहतोड़ जवाब देने लगे।
काम आई हमारी रणनीति, दुश्मनों ने टेके घुटने : यह लड़ाई निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी थी दुश्मनों पर हम लगातार भारी पड़ रहे थे। 26 जुलाई को सुबह पांच बजे टाईगर हिल पर पूरे आक्रमक तरीके से धावा बोलने की हमारी योजना थी, लेकिन इसके पहले भारतीय सेना के अफसरों व जवानों की बैठक हुई, जिसमें पूरी स्थिति पर चर्चा और समीक्षा की गई। विजयी हासिल करने की रणनीति भी बनाई गई। इसी रणनीति के तहत 25 जुलाई की रात दो बजे हमने टाईगर हिल में धावा बोल दिया। दोनों ओर से फायरिग होने लगी। दुश्मनों पर हम लगातार भारी पड़ रहे थे। 26 जुलाई को सुबह 5 बजे तक दुश्मन पस्त हो चुके थे। करीब 150 पाक सैनिकों को हमने ढेर कर दिया था। दुश्मनों ने हमारे सामने घुटने टेक दिए थे। इस तरह भारतीय सेना ने दुश्मनों को पीछे कर टाईगर हिल पर चढ़ाई की और तिरंगा फहरा दिया। इसी के साथ हमने फतह हासिल कर ली थी।
मारे गए चार हजार पाक सैनिक : ढाई महीना से अधिक समय तक चले इस युद्ध में पाकिस्तान को काफी नुकसान उठाना पड़ा। करीब चार हजार पाक सैनिक मारे गए, जबकि भारत के भी लगभग 550 जवान शहीद हुए थे।