नदियों पर ग्रहण: गायब हो रहा बालू, मैदान बन रहीं नदियां
ज्ञान ज्योति गिरिडीह किसी भी निर्माण कार्य के लिए बालू का होना आवश्यक है। एक अदद मकान स
ज्ञान ज्योति, गिरिडीह: किसी भी निर्माण कार्य के लिए बालू का होना आवश्यक है। एक अदद मकान से लेकर बड़े-बड़े पुल-पुलियों, सरकारी भवनों आदि के निर्माण के लिए बालू की आवश्यकता पड़ती है। इसके बिना किसी भी तरह का निर्माण कार्य होना संभव नहीं है। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए गिरिडीह जिले की जीवनदायिनी नदियों का लगातार दोहन किया जा रहा है। सभी नियम-कानून को ताख पर रख नदियों से मनमाने तरीके से बालू का उठाव अनवरत जारी है। इससे बालू माफियाओं की चांदी तो कट रही है, लेकिन नदियों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। इसी के साथ पर्यावरण भी खतरे में पड़ गया है। अगर यही स्थिति रही और नदियों से बालू के दोहन पर रोक नहीं लगी तो आने वाले समय में स्थिति और भयावह हो सकती है। बात चाहे जिला मुख्यालय की नदी की हो या फिर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित नदियों की। सभी जगह एक ही स्थिति है। सभी नदियों से अवैध और अवैज्ञानिक तरीके से बालू का उठाव होने की लगातार शिकायतें मिल रही हैं, इसके बावजूद प्रशासन मौन है।
नहीं होता नियम का पालन: नदियों से बालू उठाव करने का सरकार ने नियम भी बना रखा है, लेकिन बालू माफिया और इस धंधे से जुड़े लोग सभी नियमों को ताख पर रख दिए हैं। वे मनमानी तरीके से बालू का उठाव करते हैं। अवैध तरीके से बालू का उठाव होने के कारण सरकार को राजस्व की क्षति तो हो ही रही है, नदियों और पर्यावरण पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ रहा है, लेकिन संबंधित विभाग की इस ओर कोई ध्यान नहीं है। विभाग इस मामले में पूरी तरह अनभिज्ञ बन आंखें बंद किए हुए है, जिससे धंधेबाजों का मनोबल बढ़ा हुआ है और वे अवैध तरीके से बालू का उठाव कर नदियों के अस्तित्व को मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
सिमट रहा उसरी नदी का अस्तित्व: शहर की लाईफ लाइन कही जाने वाली उसरी नदी के अस्तित्व को मिटाने में बालू माफिया कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इस नदी में परसाटांड़, शास्त्री नगर, चिरैयाघाट, अरगाघाट, सिहोडीह, कर्बला रोड दीनदयाल घाट, सुखिया महादेव घाट, बड़कीटांड़ सहित अन्य जगहों पर से वर्षों से बालू का उठाव हो रहा है, जिससे नदी अब समतल मैदान का रूप लेने लगी है। जानकारों की मानें तो नदी के अस्तित्व और जल स्तर को बनाए रखने के लिए नदियों में कम से कम 20 फीट बालू होना आवश्यक है, लेकिन उसरी नदी में शायद हीे कोई ऐसा स्थान होगा, जहां 20 फीट बालू बचा हो। अधिकांश जगहों पर 3-5 फीट बालू है, जबकि कई स्थानों पर से बालू का नामोनिशान भी पूरी तरह मिट गया है।
हादसे का भी बन सकता कारण: बता दें कि पुल-पुलियों से 500 मीटर छोड़कर बालू का उठाव करना है, लेकिन इस नियम को भी दरकिनार कर बालू उठाया जा रहा है। इस कारण उसरी नदी पर कुछ ही वर्ष पूर्व निर्मित नया पुल का पिलर खोखला हो गया। इससे पुल का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है। कभी भी यह हादसे का कारण बन सकता है।