हर रोज मौत के मुंह से रोटी चुरा बचा रहे अपनी सांसें
संवाद सहयोगी, तिसरी (गिरिडीह): तिसरी-गावां में धड़ल्ले से अवैध ढिबरा खदानों का संचालन हो
संवाद सहयोगी, तिसरी (गिरिडीह): तिसरी-गावां में धड़ल्ले से अवैध ढिबरा खदानों का संचालन हो रहा है। सभी अवैध खदान वन भूमि की सीमा पर पहाड़ व जंगलों में स्थित हैं। माफिया स्थानीय महिला-पुरुषों से ढिबरा का उत्खनन कराते हैं। मजदूर जान हथेली पर रख पेट की खातिर खदानों में काम करने को विवश होते हैं। खदानों में आए दिन मिट्टी व चाल धंसने की घटना होती रहती है, जिसमें मजदूरों की मौत आम बात हो गई है।
मौत पर होती है लीपापोती: खदानों में मजदूरों की मौत को छिपाने का अथक प्रयास किया जाता है। माफिया व खदान संचालक अपनी धौंस जमा और प्रशासनिक कार्रवाई का भय दिखाकर परिजनों को चुप करा देते हैं। कई बार तो ऐसी मौतों को बीमारी बता माफिया अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। पूरे मामले में शासन-प्रशासन मूकदर्शक बना रहता है। वन विभाग भी बीच-बीच में संचालकों पर कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति कर चुप्पी साध लेता है।
व्यवसायियों को संरक्षण प्राप्त: स्थानीय लोग बताते हैं कि तिसरी-गावां प्रखंड में अवैध ढिबरा के व्यवसाय को चलाने में मालदा के किसी बड़े व्यवसायी का हाथ है। उसकी पहुंच पुलिस, वन विभाग के उच्च अधिकारियों एवं राजनीतिज्ञों तक है। उसके संरक्षण में ही ढिबरा खदान बेरोकटोक रातदिन संचालित की जाती है। तिसरी-गावां की कई खदानों से उच्च कोटि का ढिबरा व माइका निकलता है। उसे उक्त व्यवसायी मजदूरों से औने-पौने दाम में खरीद लेता है। राजनीतिक दलों का संरक्षण भी खदान संचालकों को प्राप्त है।
कार्रवाई के नाम पर होती खानापूर्ति: कुछ दिनों पहले वन व खनन विभाग ने भोगताडीह, ककनी, रंगमटिया व मैनी पहाड़ का निरीक्षण कर वहां संचालित ढिबरा खदानों को जेसीबी से ध्वस्त कर दिया था, लेकिन इसके तुरंत बाद खदानों को पुन: चालू कर दिया गया। इससे साफ पता चलता है कि विभाग कार्रवाई के नाम पर केवल खानापूर्ति करता है।
विस्फोटकों का भी धड़ल्ले से किया जाता उपयोग: बता दें कि गावां प्रखंड के चरकी, साख, मैनी, ककनी, खतपोंक, रंगमटिया, कटकोको, भंडारी, कबूतरी बाबा पहाड़ व मंसाडीह के जंगलों में दर्जनों अवैध खदान संचालित हैं। उक्त खदानों में जेसीबी से खुदाई की जाती है। खदानों में पत्थर को तोड़ने के लिए गुल्ला टोपी का उपयोग भी किया जाता है। गुल्ला टोपी लगाने के पहले ट्रैक्टर में लगी ड्रिल मशीन से जगह-जगह छेद किया जाता है। गुल्ला टोपी आसानी से खदान माफिया को उपलब्ध हो जाती है। कई ऐसी खदानें हैं, जिसकी गहराई दो सौ से ढाई सौ फीट तक होती है। मजदूर मौत के मुंह में जाकर दो जून की रोटी का जुगाड़ करते हैं और माफिया मालामाल हो रहे हैं।
एक साल में आधा दर्जन मजदूरों की हुई मौत: ढिबरा खदानों में एक साल में आधा दर्जन मजदूरों की मौत हो चुकी है। एक मई 2017 को ढिबरा खदान में दो मजदूर सहित एक छात्रा की मौत हुई थी। खतपोंक के रोहनियाटांड़ खदान में एक मजदूर की मौत चाल धंसने से हुई थी। इसके अलावा और दो मजूदरों की मौत हुई है। फिलहाल डीएफओ की दबिश के कारण ढिबरा का व्यवसाय एक सप्ताह से बंद कर दिया गया है।