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खत्म हुई सामंतवादी व्यवस्था, गांवों तक पहुंची सरकार

गिरिडीह : पारसनाथ नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) का कथित तौर पर मुख्यालय माना जाता है। पारस

By JagranEdited By: Published: Fri, 08 Dec 2017 03:01 AM (IST)Updated: Fri, 08 Dec 2017 03:01 AM (IST)
खत्म हुई सामंतवादी व्यवस्था, गांवों तक पहुंची सरकार
खत्म हुई सामंतवादी व्यवस्था, गांवों तक पहुंची सरकार

गिरिडीह : पारसनाथ नक्सली संगठन भाकपा (माओवादी) का कथित तौर पर मुख्यालय माना जाता है। पारसनाथ के नक्सली न सिर्फ झारखंड बल्कि छत्तीसगढ़, ओडिशा समेत कई राज्यों में सक्रिय हैं। एक करोड़ रुपये के दो इनामी नक्सली यहीं के हैं। माओवादियों की अपील पर हजारों ग्रामीण यहां जुटते थे। लेकिन, अब न तो माओवादियों को यहां नये कैडर मिल रहे हैं और न ही उनके प्रभाव क्षेत्रों में जनसमर्थन। उनके प्रभाव क्षेत्रों में पहले जहां सरकारी कार्यक्रमों का स्थानीय लोग बहिष्कार करते थे, वहीं आज सरकारी कार्यक्रमों में हजार

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ों लोग शिरकत कर रहे हैं। सवाल उठता है कि यह बदलाव कैसे हो रहा है? क्या सिर्फ बंदूक के बल पर हो रहा है? पारसनाथ जोन के नक्सल प्रभावित गांवों की समीक्षा करने के बाद जो तस्वीर सामने आई है, वह बताता है कि माओवादियों ने जिन बुनियादी सवालों सामंतवाद, महाजनी प्रथा, जंगल पर कब्जा, सुदूर गांवों की प्रशासनिक उपेक्षा को मुद्दा बनाकर ग्रामीणों को गोलबंद किया था, वे सारे मुद्दे यहां के लोगों के लिए अब महत्वपूर्ण नहीं रह गए हैं। माओवादियों ने शुरूआती संघर्ष इन इलाकों में महाजनी प्रथा एवं सामंतवाद के खिलाफ किया था। इस कारण ग्रामीण इससे काफी आकर्षित हुए थे। माओवादियों से पहले शिबू सोरेन ने पीरटांड़, टुंडी, तोपचांची, डुमरी के इलाकों में 70 के दशक में इन सवालों को लेकर संघर्ष किया था। सामंतवाद एवं महाजनी प्रथा को पहले शिबू ने काफी हद तक खत्म किया था और बाद में जो बचा था, उसे माओवादियों ने खत्म कर दिया। जंगल पर भी अब इन इलाकों में आदिवासियों का अधिकार है। महाजनी प्रथा खत्म होने के बाद माओवादियों ने सत्ता के खिलाफ संघर्ष शुरू किया। पुलिस से सीधी लड़ाई शुरू होने एवं सामंतवादी व महाजनी व्यवस्था खत्म होने के कारण लोगों का समर्थन माओवादियों को घटता गया। माओवादियों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत यह हो गयी कि वे लोगों को जोड़ने के लिए कोई नया मुद्दा नहीं तलाश सके। वहीं पुलिस अपनी सूचना तंत्र मजबूत कर माओवादियों को लगातार चोट देती रही। यही कारण है कि पिछले एक साल में गिरिडीह पुलिस तीन इनामी समेत 30 नक्सलियों को गिरफ्तार करने में सफल रही। नक्सलियों की परेशानी यह है कि एक ओर उनके पुराने कमांडर लगातार पकड़े जा रहे हैं और दूसरी ओर नये कैडर उन्हें मिल नहीं रहे हैं। सुदूर ग्रामीण इलाके जो माओवादियों का प्रभाव क्षेत्र था, प्रशासन उन इलाकों की उपेक्षा करता था। विकास की किरण वहां तक नहीं पहुंच पाती थी। इसका फायदा माओवादी उठाते थे। वे यह बताने में सफल होते थे कि मौजूदा व्यवस्था में विकास संभव नहीं है।

इनसेट..

नक्सल क्षेत्र में रात बिता प्रशासन ने जीता दिल

नक्सल क्षेत्र की उपेक्षा का दाग प्रशासन पर था। नक्सल क्षेत्रों में बड़े अधिकारियों की बात छोड़िए बीडीओ एवं सीओ स्तर के अधिकारी भी नहीं जाते थे। गिरिडीह के डीसी उमाशंकर ¨सह एवं तत्कालीन एसपी अखिलेश बी वारियर ने एक नया प्रयोग किया जो काफी सफल रहा। यह प्रयोग था, गरीब कल्याण मेला सह रात्रि विश्राम कार्यक्रम। इस कार्यक्रम के तहत जिले के तमाम अधिकारियों को नक्सल क्षेत्र में एक साथ पूरा दिन रात गुजारना था। साथ ही उनकी समस्याओं का तत्काल निष्पादन करना था। यह कार्यक्रम जोखिम भरा था। पहली बार पीरटांड़ के घोर नक्सल प्रभावित हरलाडीह में हुआ। डीसी, एसपी से लेकर जिले के तमाम अधिकारियों ने वहां दिन रात बिताया। प्रशासन सशंकित था कि शायद इस सरकारी कार्यक्रम में माओवादियों के कारण लोगों की उपस्थिति अच्छी नहीं हो। लेकिन प्रशासन उस वक्त हैरान हो गया जब इस कार्यक्रम में करीब दस हजार लोग जुटे। 6854 लोगों ने अपनी समस्याओं से संबंधित आवेदन दिया जिसमें से 5981 आवेदनों का ऑन स्पॉट निष्पादन किया गया। नक्सल क्षेत्र के 295 युवाओं को विभिन्न कंपनियों में नियोजन दिया गया। गरीब कल्याण मेला सह रात्रि विश्राम कार्यक्रम दूसरा डुमरी प्रखंड के नक्सल प्रभावित ससारखो में हुआ जहां करीब 12 हजार से अधिक लोग जुटे। यहां 9203 आवेदन मिला जिसमें से 6145 आवेदनों का तत्काल निष्पादन किया गया। यहां 194 युवाओं को नियोजन दिया गया। नक्सलियों की मांद में सरकारी कार्यक्रमों में इस तरह के जुटान ने बदलाव का साफ संकेत दे दिय।

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बाक्स :

नक्सल क्षेत्र का होगा सर्वांगीण विकास : डीसी

डीसी उमाशंकर ¨सह ने कहा है कि नक्सल क्षेत्रों का सर्वांगीण विकास किया जाएगा। पारसनाथ एक्शन प्लान के तहत पारसनाथ के सभी नक्सल प्रभावित गांवों का विकास किया जा रहा है। प्रशासन नक्सल क्षेत्र में जाकर लोगों की समस्याओं का निदान कर रहा है। उन्होंने लोगों से अपील की है कि वे प्रशासन पर भरोसा रखें। प्रशासन उनकी समस्याओं का निदान करेगा। क्षेत्र का विकास लोकतंत्र में ही संभव है। जो भी भटके हुए लोग हैं, वे मुख्यधारा में शामिल होकर विकास में शामिल हों।

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बंदूक छोड़ मुख्यधारा में शामिल हों माओवादी : एसपी

एसपी सुरेंद्र कुमार झा ने माओवादियों से कहा है कि वे बंदूक छोड़ मुख्यधारा में शामिल हों। सरकार उनका पुनर्वास करेगी। पारसनाथ समेत पूरे गिरिडीह जिले को नक्सल मुक्त किया जाएगा। नक्सली यदि हथियार छोड़ मुख्यधारा में शामिल नहीं होंगे तो उन्हें पुलिस की गोली खानी पड़ेगी। नक्सलवाद से विकास नहीं बल्कि विनाश हो रहा है। वे अपने क्षेत्र के विनाश के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने आम लोगों से भी अपील की है कि वे माओवादियों के बहकावे में नहीं आएं।


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