घोसकेडीह में नहीं दिखता विकास
प्रखंड के बोदगो पंचायत स्थित घोसकेडीह में मूलभूत जरूरतें भी मयस्सर नहीं हैं। यहां की समस्याएं ही बन रही है इस गांव की पहचान। 600 से अधिक आबादीवाले इस गांव में सबसे बड़ी समस्या आवागमन की है। यहां तक पहुंचने के लिए नहर पर बनी सड़क हल्की बारिश में कीचड़युक्त होकर लोगों पर भारी पड़ जाती है । शिक्षा की बात करें तो यहां नौनिहाल बच्चों के लिए आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है। एक विद्यालय है जहां वहां के गुरुदेव के आशीर्वाद से बच्चों को थोड़ी बहुत शिक्षा मिल जाती है।आंगनबाड़ी केंद्र के नहीं होने के कारण यहां पर स्वास्थ्य सुविधाएं मसलन टीकाकरण या इससे संबंधित अभियान का लाभ लोगों तक नहीं पहुंच पाता है । जो थोड़े
पवन बरनवाल, धनवार : प्रखंड के बोदगो पंचायत स्थित घोसकेडीह में मूलभूत जरूरतें भी मयस्सर नहीं हैं। 600 से अधिक आबादीवाले इस गांव में सबसे बड़ी समस्या आवागमन की है। यहां तक पहुंचने के लिए नहर पर बनी कच्ची सड़क हल्की बारिश में कीचड़युक्त होकर लोगों पर भारी पड़ जाती है। शिक्षा की बात करें तो यहां नौनिहाल बच्चों के लिए आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है।
एक विद्यालय है जहां-वहां के गुरुदेव के आशीर्वाद से बच्चों को थोड़ी बहुत शिक्षा मिल जाती है। आंगनबाड़ी केंद्र के नहीं होने के कारण यहां पर स्वास्थ्य सुविधाएं मसलन टीकाकरण या इससे संबंधित अभियान का लाभ लोगों तक नहीं पहुंच पाता है। जो थोड़े बहुत जागरूक हैं वे लगभग ढाई तीन किलोमीटर दूर स्थित चट्टी पंचायत के पांडेयडीह आंगनबाड़ी केंद्र जाकर अपने बच्चों को लाभ दिलाते हैं परंतु उनका प्रतिशत बहुत कम है। इस गांव में जरूरतमंद लोगों को न तो विधवा पेंशन मिल पा रहा है और न ही वृद्धापेंशन ही नसीब हो रहा है। यहां पर आज भी लोग मिट्टी के टूटे-फूटे घरों में रहने को विवश हैं। यहां कृषि के लिए सिचाई की कोई सुविधा नहीं है वहीं पेयजल की भी भारी समस्या है। इस बाबत स्थानीय निवासी 70 वर्षीय बंधन दास ने कहा कि सरकार उसी के लिए काम करती है जो बाबू लोगों को खुश कर सकें। इस बात का प्रमाण वे खुद हैं क्योंकि आज तक उन्हें न तो वृद्धा पेंशन नसीब हुआ है और न ही आवास की ही सुविधा मिली है। कई लोग आए जिनसे उन्होंने अपना दुखड़ा सुनाया पर कुछ भी फायदा नहीं हुआ।
सीताराम पासवान ने बताया कि उन्हें अपने गांव तक आने के लिए भारी परेशानी से होकर गुजरना पड़ता है। एक स्कूल है वहां भी अच्छी ढंग से पढ़ाई नहीं होती है। एक वृद्ध महिला ने कहा कि उसके पति का स्वर्गवास हो गया है। उसके पास एक टूटा फूटा मिट्टी का घर है। राशन को छोड़कर आज तक उसे कोई भी सरकारी लाभ नहीं मिल पाया है।
राजकुमार पासवान ने बताया कि एक दशक पूर्व यहां रोड का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। उनलोगों ने भी उसमें शारीरिक रूप से सहयोग किया था परंतु आज तक उसका निर्माण पूर्ण नहीं हो पाया जिससे आवागमन में भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
पेयजल की भी भारी समस्या है। गर्मी के दिनों में पेयजल के लिए उनलोगों को दर दर भटकना पड़ता है। बिजली की बात करें तो 24 घंटे में एक दो घंटे ही बिजली आती है। स्थानीय जनप्रतिनिधि सिर्फ चुनाव के वक्त यहां आते हैं और उनलोगों को आश्वस्त करते हैं परंतु जब वे जीतकर जाते हैं तो इस ओर दुबारा देखना भी पसंद नहीं करते। बहरहाल जो भी हो परंतु स्थानीय जनप्रतिनिधि व प्रशासन ने थोड़ी भी पहल की होती तो यहां के लोगों की कई समस्याएं समाप्त हो जाती तथा कई सरकारी योजनाओं का लाभ यहां के लोगों को मिल जाता।