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भाजपा-झामुमो को फंसाने के लिए आजसू ने बिछाई जाल

दिलीप सिन्हा, गिरिडीह: स्थानीयता समेत विभिन्न मुद्दों को लेकर नाराज चल रही आजसू पार्टी गिरि

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Feb 2019 12:17 AM (IST)Updated: Thu, 21 Feb 2019 12:17 AM (IST)
भाजपा-झामुमो को फंसाने के लिए आजसू ने बिछाई जाल

दिलीप सिन्हा, गिरिडीह: स्थानीयता समेत विभिन्न मुद्दों को लेकर नाराज चल रही आजसू पार्टी गिरिडीह लोकसभा सीट के लिए भाजपा पर दबाव बना रही है। पार्टी इसके लिए भाजपा नेतृत्व के समक्ष भी अपनी दावेदारी पेश कर चुकी है। भाजपा के साथ गठबंधन में बने रहने के लिए सूबे की 14 में से कम से कम एक लोकसभा सीट की मांग कर रही है। आजसू की नजर सूबे की तीन कुर्मी बहुल लोकसभा सीटों गिरिडीह, हजारीबाग एवं रांची पर है। भाजपा से गठबंधन होने पर सिर्फ गिरिडीह एवं गठबंधन नहीं होने पर तीनों सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी पार्टी कर रही है। गिरिडीह से पूर्व सांसद व टुंडी के विधायक राजकिशोर महतो एवं गोमिया विधानसभा उप चुनाव में झामुमो के निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहने वाले लंबोदर महतो पार्टी के संभावित उम्मीदवार हैं। गिरिडीह के सांसद रह चुके राजकिशोर जहां गठबंधन होने पर ही चुनाव लड़ना चाहते हैं वहीं लंबोदर दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार हैं। लंबोदर को पार्टी के नंबर टू नेता एवं मंत्री चंद्रप्रकाश चौधरी का करीबी माना जाता है। वहीं यह बात भी सामने आ रही है कि गठबंधन होने पर पार्टी प्रमुख सुदेश महतो भी चुनाव लड़ सकते हैं। सुदेश लगातार दो बार अपनी सिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव हार चुके हैं। उनकी सिल्ली सीट अब झामुमो के कब्जे में है। दरअसल आजसू की रणनीति लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ-साथ झामुमो को भी अपने जाल में फंसाने की है। झामुमो के साथ उसकी कुर्मी वोट बैंक को लेकर प्रतिस्पर्धा चल रही है।

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वहीं गिरिडीह सीट भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती रही है। रवींद्र पांडेय पांच बार इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन

पिछले चुनाव से ही इस सीट में भाजपा की स्थिति गड़बड़ा गयी है। मोदी लहर में बहुत मुश्किल से पांडेय अपनी सीट बचा सके थे।

इस बार टिकट के लिए उन्हें जूझना पड़ रहा है। पार्टी के अंदर उनका विरोध हो रहा है। प्रत्याशी बदलने की मांग भाजपा के कार्यकर्ता कर रहे हैं। इसे देखते हुए आजसू यहां इंट्री लेने की कोशिश कर रही है। हालांकि जानकार बताते हैं कि आजसू के चुनाव लड़ने से भाजपा को फायदा होता है। गिरिडीह में कुर्मी वोटरों की संख्या करीब दो लाख से अधिक है। इस वोट बैंक पर झामुमो का कब्जा है। आजसू के मैदान में उतरने से कुर्मी वोटर बंट जाते हैं। इसका अपरोक्ष फायदा भाजपा को ही होता है। लेकिन गठबंधन के तहत यदि आजसू का उम्मीदवार होगा तो कुर्मी वोटरों पर झामुमो की पकड़ ढ़ीली हो जाएगी। ऐसे में आजसू कुर्मी वोटरों के मामले में झामुमो पर भारी पड़ सकती है। सुदेश की सीट सिल्ली से लेकर गिरिडीह तक की राजनीतिक स्थिति पर आप नजर डालेंगे तो पाएंगे कि कुर्मी वोटरों पर वर्चस्व की

जंग झामुमो एवं आजसू के बीच चल रही है। सुदेश को सिल्ली में दो-दो बार मात देकर झामुमो ने आजसू की कमर तोड़ दी है। वहीं आजसू अब सिल्ली, रामगढ़ से निकलकर हजारीबाग होते हुए विनोद बिहारी महतो की धरती धनबाद एवं गिरिडीह तक पहुंच चुकी है। इससे झामुमो बौखला गया है।

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बाक्स : टुंडी, डुमरी व गोमिया में है आजसू का मजबूत जनाधार

गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र के अंदर छह विधानसभा क्षेत्र गिरिडीह, डुमरी, गोमिया, बेरमो, टुंडी एवं बाघमारा है। इन छह विधानसभा क्षेत्रों में से कुर्मी बहुल तीन क्षेत्र डुमरी, गोमिया एवं टुंडी में आजसू का मजबूत जनाधार है। तीनों क्षेत्रों में झामुमो की लड़ाई आजसू से है। टुंडी से आजसू के राजकिशोर महतो विधायक हैं। वहां उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी झामुमो के मथुरा प्रसाद महतो हैं। इसी तरह से गोमिया में झामुमो की बबिता देवी विधायक हैं। वहां उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी आजसू के लंबोदर महतो हैं। डुमरी में झामुमो के जगरनाथ महतो विधायक हैं। वहां भी आजसू मजबूत स्थिति में है। पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो आजसू गिरिडीह में अकेले मैदान में उतरी थी। कुर्मी वोटरों के भरोसे आजसू के डॉ. यूसी मेहता 55 हजार 531 वोट लाने में सफल रहे थे।


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