माओवादियों से नहीं, मधुमक्खियों से डर लगता है साहब
गिरिडीह गिरिडीह में भाकपा माओवाद का खूनी इतिहास है। अभी भी यहां माओवाद है। हालांकि अभी य
गिरिडीह: गिरिडीह में भाकपा माओवाद का खूनी इतिहास है। अभी भी यहां माओवाद है। हालांकि, अभी यहां के गांवों में लोगों को माओवादियों से कम, मधुमक्खियों से अधिक डर लग रहा है। इसका वाजिब कारण भी है। बीते एक पखवाड़ा में मधुमक्खियों ने सहोदर भाइयों समेत आधा दर्जन लोगों की जान ली है। सबके सब गरीब। उनकी मौत भी ऐसी कि किसी की भी आत्मा कांप जाय। माओवादी मारते हैं तो सरकारी मुआवजा का प्रावधान है। हाथी मारेगा अथवा सांप के डसने से मौत होगी तो भी मुआवजा की व्यवस्था है। मधुमक्खियों के कारण जान जाने पर सरकारी मुआवजा भी नहीं मिलता। बिहार की सीमा से सटे तिसरी, गावां एवं बेंगाबाद के लोग कहते हैं, उन्हें माओवादियों से नहीं मधुमक्खियों से डर लगता है।
शहद जितना अमृत, डंक उतना ही जहरीला : मधुमक्खियों का शहद जितना मीठा होता है, डंक उतना ही जहरीला होता है। डंक मारने पर शरीर में फार्मिक अम्ल होता है। अगर हजारों मधुमक्खियां हमला करती है तो इंसानी शरीर में बड़ी मात्रा में फार्मिक अम्ल प्रवेश कर जाता है। इससे असहनीय पीड़ा होती है। आइएमए के अध्यक्ष डाक्टर विद्या भूषण का कहना है कि मधुमक्खियों के डंक में ऐसा जहर होता है, जिससे शरीर में संक्रमण हो जाता है। यह अंगों को प्रभावित करता है। रक्तचाप कम हो जाता है। हृदयाघात से मौत की आशंका बढ़ जाती है।
आत्मरक्षा में हमलावर होती हैं मधुमक्खियां : मधुमक्खियां आम तौर पर हमला नहीं करती। जब भयभीत होती है अथवा उनके छत्ता को कोई तोड़ देता है तो वो हमलावर हो जाती है। जंगलों की कटाई बढ़ने के बाद इनका स्वभाव आक्रामक हुआ है। लगातार जंगल कटने से मधुमक्खियों को सुरक्षित ठिकाना नहीं मिल रहा है। गिरिडीह जिले के गावां एवं तिसरी में जिन आधा दर्जन लोगों की मौत हुई है, सभी जंगल में लकड़ी काटने अथवा पत्ता तोड़ने गए थे। वन अधिकारियों के मुताबिक मधुमक्खियों को लगा कि पेड़ पर उनके छत्ता की डालियां कट जाएंगी। इसी कारण हमला किया। हमले के साथ ही मधुमक्खी की भी मौत हो जाती है। कारण कि उसका डंक इंसान के चमड़े में फंस जाता है।
मधुमक्खियों के डंक का इलाज उनके बनाए शहद से भी : मधुमक्खियों ने डंक मारा हो तो इलाज में शहद भी काम आता है। काटने वाली जगह पर शहद लगा कर ढीली पट्टंी बांधनी चाहिए। बेकिग सोडा का पेस्ट लगाने से भी राहत मिलती है। एलोवेरा व टूथ पेस्ट से भी राहत मिलती है। ठंडा पानी और बर्फ लगाने से भी पीड़ा कम होती है। यद्यपि, ऐसे घरेलू उपचार के बाद डाक्टर के पास जाने में विलंब नहीं करना चाहिए।