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माओवादी का बयान मोतीलाल की बेगुनाही में रोड़ा

दिलीप सिन्हा गिरिडीह पारसनाथ पहाड़ के ढोलकट्टा में पुलिस मुठभेड़ में माओवादी मोतीलाल ब

By JagranEdited By: Published: Wed, 01 Jul 2020 12:42 AM (IST)Updated: Wed, 01 Jul 2020 12:42 AM (IST)
माओवादी का बयान मोतीलाल की बेगुनाही में रोड़ा
माओवादी का बयान मोतीलाल की बेगुनाही में रोड़ा

दिलीप सिन्हा, गिरिडीह : पारसनाथ पहाड़ के ढोलकट्टा में पुलिस मुठभेड़ में माओवादी मोतीलाल बास्के की मौत का मामला तीन साल बाद फिर सुर्खियों में है। तब मुठभेड़ में माओवादी को मार गिराने के लिए सरकार पुलिस की पीठ थपथपा रही थी। आज सरकार मामले की जांच करा रही है कि मोतीलाल वास्तविक में माओवादी था या नहीं। मुख्यमंत्री ने डीजीपी को बुलाकर इस मामले की जांच शुरू कराई है। डीजीपी ने उत्तरी छोटानागपुर के डीआइजी अमोल बी होमकर को जांच का निर्देश दिया। डीआइजी मधुबन पहुंचकर मोतीलाल की पत्नी का बयान भी दर्ज कर चुके हैं। सरकार भले ही इस मामले की जांच करा रहे हैं लेकिन मोतीलाल बास्के की बेगुनाही साबित करना उतना आसान नहीं दिख रहा है।

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दरअसल आत्मसर्पण करने वाले हार्डकोर माओवादी बाबूचंद उर्फ सूरज का अदालत में दर्ज एकबालिया बयान प्रमाण के तौर पर लिया जाएगा। बाबूचंद ने अदालत में 164 के तहत बयान दर्ज कराया था कि पुलिस मुठभेड़ में मोतीलाल समेत दो माओवादियों की मौत हुई थी। एक माओवादी का शव उसके साथी उठाकर अपने साथ लेते गए थे, जबकि मोतीलाल का शव वे नहीं ले पाए। उसे भी गोली लगी थी। मोतीलाल को वह वहीं छोड़कर भाग निकला था। उसके शव के पास से बरामद एसएलआर की भी पुलिस फोरेंसिक जांच करा चुकी है। इस बयान का काट निकालना आसान नहीं होगा।

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शिबू-हेमंत और बाबूलाल ने उठाए थे सवाल

मुठभेड़ में मोतीलाल बास्के की पुलिस की गोली से हुई मौत पर शुरू से सवाल खड़े हो रहे थे। बगल के ढोलकट्टा गांव का होना, उसके नाम से इंदिरा आवास आवंटित होना, उसका कोई पुराना आपराधिक रिकार्ड नहीं होना आदि को आधार बनाकर झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन, कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन एवं तत्कालीन झाविमो अध्यक्ष एवं वर्तमान में भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने मोतीलाल बास्के को निर्दोष करार दिया था। तीनों नेताओं ने ढोलकट्टा गांव का दौरा भी किया था। शिबू सोरेन एवं हेमंत सोरेन ने उस वक्त एलान किया था कि उनकी सरकार बनेगी तो इस मामले की जांच कराई जाएगी। तीनों दिग्गज नेताओं का कहना था कि मुठभेड़ के दौरान वह लकड़ी काटने जंगल जा रहा था। पुलिस उसे माओवादी समझ बैठी और गोली मार दी। हेमंत सोरेन की जब सरकार बनी तो गिरिडीह के झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने इस मुद्दे को उनके समक्ष उठाया। उनका कहना है कि यह एक मानवीय भूल हो सकती है। पुलिस को इसे स्वीकार करना चाहिए।


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