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सड़कों पर बह रहा खून, घर-आंगन में आंसू

गिरिडीह जिले की पूरे सूबे में पहचान नक्सल प्रभावित क्षेत्र के रूप में है। यह गलत भी नहीं है। कारण पूर्व में यहां नक्सली हिसा की बड़ी-बड़ी घटनाएं हुई हैं

By JagranEdited By: Published: Fri, 07 Feb 2020 06:38 PM (IST)Updated: Fri, 07 Feb 2020 06:38 PM (IST)
सड़कों पर बह रहा खून, घर-आंगन में आंसू
सड़कों पर बह रहा खून, घर-आंगन में आंसू

गिरिडीह : गिरिडीह जिले की पूरे सूबे में पहचान नक्सल प्रभावित क्षेत्र के रूप में है। यह गलत भी नहीं है। कारण, पूर्व में यहां नक्सली हिसा की बड़ी-बड़ी घटनाएं हुई हैं लेकिन गिरिडीह में इंसानों की जिदगी का जितना नुकसान सड़क हादसों में हुआ है, उतना किसी और कारण से नहीं हुआ है। सरकारी रिकॉर्ड में सड़क हादसों के मामले में गिरिडीह जिले को सूबे का तीसरा सबसे खतरनाक जिला माना गया है। वहीं हालिया आंकड़ों पर अब गौर करेंगे तो महसूस करेंगे कि गिरिडीह इस मामले में सबसे खतरनाक स्थिति पर पहुंच चुका है।

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इस आंकड़े में गिरिडीह का स्थान तीसरा नहीं अब नंबर वन पर आ चुका है। सिर्फ इस नये साल के 37 दिनों की पड़ताल की गई तो मालूम हुआ कि इस दौरान 40 इंसानों की जान सड़क हादसों में जा चुकी है। मरनेवालों में चार साल की बच्ची, पंचायत समिति की महिला सदस्य से लेकर 75 साल के वृद्ध भी शामिल हैं। सगे भाई-बहन की भी मौत सड़क हादसे में हुई है। गावां में अभी दो दिन पूर्व हटिया में गैस सिलेंडर लदे ट्रक का ब्रेक फेल होने से कुचलकर महिला की मौत हो गई जबकि आधा दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए। भगवान का शुक्र मनाइए कि कोई गैस सिलेंडर फटा नहीं अन्यथा बहुत बड़ा हादसा हो सकता था।

शुक्रवार को गिरिडीह-बेंगाबाद पथ पर चाहे राष्ट्रीय राजमार्ग हो या फिर राज्य राजमार्ग गिरिडीह जिले की लगभग सभी प्रमुख सड़कें चमचमाती हुई नजर आ रही हैं। वैसे इससे बहुत खुश होने की भी जरूरत नहीं है। कारण है कि इन चमचमाती सड़कों पर मौत दौड़ती है। हाइवा, ट्रैक्टर व ट्रक के रूप में इन सड़कों पर मौत दौड़ रही है। नए साल में जो 40 बहुमूल्य जिदगियों को हमने इन सड़कों पर खोया है, उनमें अधिकांश इन्हीं हाइवा, ट्रैक्टर व ट्रक के शिकार हुए हैं। इन बेकाबू बड़े वाहनों पर अंकुश लगाने की कोई कार्रवाई परिवहन विभाग नहीं कर रहा है।

सड़क सुरक्षा सप्ताह में भी रोज जाती रही जान : 11 से 17 जनवरी तक 31वां राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया गया। जागरूकता रथ निकाला गया। इसके बावजूद इस दौरान पूरे सप्ताह सड़क हादसों में लोगो की जिदगी जाती रही। पहले दिन 11 जनवरी को शहर से सटे शीतलपुर में चार साल के मासूम बच्चे सुदामा उर्फ गोलू की मौत ट्रैक्टर से कुचलकर हो गई। इसी दिन बगोदर के औंरा में बांकुड़ा के बोलेरो चालक विजय चक्रवर्ती की मौत सड़क हादसे में हो गई। दूसरे दिन 12 जनवरी को बगोदर में 22 वर्षीय युवक कैलाश महतो की मौत सड़क हादसे में हो गई। तीसरे दिन 13 जनवरी को तिसरी में अर्जुन मरांडी की मौत सड़क हादसे में हो गई। चौथे दिन 14 जनवरी को बगोदर में चेतलाल महतो की मौत हो गई। पांचवें व छठे दिन 15 एवं 16 जनवरी को कोई भी इंसान सड़क हादसे का शिकार नहीं हुआ। सड़क सुरक्षा सप्ताह के आखिरी दिन 17 जनवरी को जिले में चार लोगों की सड़क हादसे में मौत हो गई। इस दिन डुमरी के दो युवकों की मौत सरिया में हो गई। इसके अलावा जमुआ में एक युवक एवं खोरीमहुआ में एक वृद्ध की मौत हो गई।

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बाइक चालकों पर गाज, बड़े वाहनों को छूट : जब भी अभियान चलाने की बात आती है तो बाइक चालकों की याद आती है। यह अच्छी बात है लेकिन बड़े वाहनों को इससे अलग रखना उतना ही गलत है। परिवहन विभाग बड़े वाहनों के मामले में कोई भी कार्रवाई करने से कतराता है। शहर से लेकर सुदूर गावां, तिसरी, राजधनवार तक खुलेआम हाइवा, ट्रक एवं बसें ओवरलोड चलती हैं। परिवहन विभाग के अधिकारियों की नींद इनके मामले में नहीं खुलती हैं। बड़े वाहन मालिकों के साथ परिवहन विभाग का मधुर रिश्ता देखने को मिलता है। गिरिडीह-धनबाद समेत अधिकांश रूटों पर ऐसी-ऐसी खटारा बसें चलती हैं कि आप उसमें सफर करने की बात सोंच भी नहीं सकते। इन बसों में जान जोखिम में डालकर यात्री सफर कर रहे हैं।


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