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ऐसे गिरफ्तारी हुई थी मानो आतंकवादी हों

राजमोहन की याचिका पर इलाहबाद हाईकोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का निर्वाचन रद करते हुए छह साल के लिए चुनाव लड़ने से उन्हें अयोग्य ठहरा दिया था।

By JagranEdited By: Published: Tue, 23 Jun 2020 06:21 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jun 2020 06:18 AM (IST)
ऐसे गिरफ्तारी हुई थी मानो आतंकवादी हों

दिलीप सिन्हा, गिरिडीह : राजमोहन की याचिका पर इलाहबाद हाईकोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का निर्वाचन रद करते हुए छह साल के लिए चुनाव लड़ने से उन्हें अयोग्य ठहरा दिया था। इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की रात बारह बजे पूरे देश में आंतरिक आपातकाल की घोषणा कर दी थी। 26 जून से पूरे देश में आंतरिक आपातकाल लागू हो गया था। प्रेस पर अंकुश लग चुका था। देश के दूसरे शहरों की तरह संयुक्त बिहार के गिरिडीह जिले में आपातकाल के खिलाफ आंदोलन परवान चढ़ चुका था। गिरिडीह के दर्जनाधिक छात्र एवं युवक इस आंदोलन की कमान संभाले हुए थे। उनमें से प्रमुख थे गिरिडीह कॉलेज छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष सह छात्र संघर्ष समिति के संयोजक अपूर सिंह। मीसा के तहत जेल जानेवाले इस इलाके के वे पहले आंदोलनकारी थे। अपूर सिंह अब सक्रिय राजनीति में नहीं हैं। आइए हम उन्हीं से आपातकाल के बारे में जानते हैं।

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आपातकाल लागू होने के पहले ही जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर इंदिरा सरकार के खिलाफ आंदोलन घर-घर पहुंच चुका था। संयुक्त बिहार में छह जिलों में जेपी आंदोलन को लेकर क‌र्फ्यू लगा था जिसमें गिरिडीह भी शामिल था। सांकेतिक अनशन भी चल रहा था। उस वक्त मैं गिरिडीह कॉलेज छात्र संघ का अध्यक्ष और नागेश्वर सिंह सचिव थे।

जयप्रकाश नारायण ने सरकारी कार्यक्रमों का बहिष्कार करने का आह्वान किया था। उनके इस आह्वान पर 15 अगस्त 1974 को झंडा मैदान में झंडोत्तोलन व स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन चल रहा था। छात्रों और युवाओं ने नारेबाजी कर इस कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया। तत्कालीन एसडीएम बेक जूलियस ने मुझे एवं जनसंघ के कार्यकर्ता श्याम सुंदर राम को गिरफ्तार कर लिया। नगर थाना में इस गिरफ्तारी के विरोध में छात्रों ने भारी बवाल किया। पुलिस को लाठीचार्ज करनी पड़ी। मुझे मीसा के तहत हजारीबाग सेंट्रल जेल में डाल दिया गया। दिसंबर महीने में मुझे जमानत मिल गई। मैं जेल से बाहर निकला और फिर जेपी आंदोलन में कूद गया। आंदोलन और तेज हो चुका था। आपातकाल लागू होते ही जिले के तमाम छात्र एवं युवा नेता, आरएसएस व विपक्षी नेताओं की पूरी सूची सरकार तैयार करा चुकी थी। इधर हमलोगों की गुप्त बैठकें हो रही थीं। हमलोगों पर खुफिया एजेंसी की नजर थी। 27 जून 1975 को आपातकाल के खिलाफ एक बड़ी रैली निकालने का निर्णय लिया गया। 27 जून की सुबह करीब 11 बज रहे थे। हमलोग अभी रैली निकालते ही इसके पूर्व पूरे बड़ा चौक को पुलिस ने चारों ओर से घेर लिया। घर-घर घुसकर तलाशी ली गई। दहशत का ऐसा माहौल बन गया मानो फिर से अंग्रेजी सरकार लौट आई हो। आतंकवादियों की तरह पुलिस ने मुझे और इस आंदोलन के अग्रणी नेता कृष्णरंजन प्रसाद को बड़ा चौक पर दबोच लिया। हमदोनों को गिरफ्तार कर हजारीबाग सेंट्रल जेल भेज दिया गया। आंदोलन में प्रदीप राम, अमरेंद्र सिंह, वेद प्रकाश सिन्हा, कृष्ण मोहन प्रसाद उर्फ नुनू दा, गुलाम हैदर सिद्दिकी, निसार अहमद, अनिल शर्मा, संतोष सिन्हा, पोरेशनाथ मित्रा, बाबुल गुप्ता, सोमनाथ शर्मा, सुरेश राम, ओम भगत, निर्भय कुमार शाहाबादी, चंद्रमोहन प्रसाद, लक्ष्मण स्वर्णकार, प्रो. राजेंद्र सिंह, गोपाल राम, शिवशंकर भदानी, भाई रवींद्र सिंह आदि ने इस आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाई थी। हजारीबाग जेल से मुझे बिहार के दूसरे कई जेलों में समय-समय पर सरकार भेजती रही। भागलपुर सेंट्रल जेल में मैं और बिहार के छात्र नेता नीतीश कुमार एक साथ थे। 11 मार्च 1977 को मुझे भागलपुर जेल से रिहा कर दिया गया। तब तक आपातकाल समाप्त हो चुका था और चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। चुनाव में देश की जनता ने इंदिरा सरकार को उखाड़कर फेंक दिया।


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