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सरकारी सुविधा को तरस रहे बिरहोर

सरिया (गिरिडीह) : विलुप्त होती जनजाति बिरहोर आज भी बदहाल जिंदगी जीने को विवश है। सरकार उनकेजीवन स्तर

By Edited By: Published: Sat, 17 Jan 2015 07:03 PM (IST)Updated: Sun, 18 Jan 2015 06:03 AM (IST)

सरिया (गिरिडीह) : विलुप्त होती जनजाति बिरहोर आज भी बदहाल जिंदगी जीने को विवश है। सरकार उनकेजीवन स्तर में सुधार लाने और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए लाखों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन इसका लाभ बिरहोरों को नहीं मिल पा रहा है। परिणामस्वरूप आज भी उन्हें पत्तों से बनी झोपड़ी में रहने, जंगलों से जानवरों का शिकार और लकड़ी काटकर जीवनयापन करना पड़ रहा है। सरकार की तमाम घोषणाएं उनके आवास तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं।

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बता दें कि सरिया के अमनारी बिरहोरटंडा में बिरहोर समुदाय के करीब 70 से ज्यादा लोग निवास करते हैं। उनके जीवनस्तर में सुधार लाने के लिए विभाग कई तरह की योजना स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से चलाता है, ताकि वे भी आम लोगों की तरह जीवनयापन कर सकें लेकिन उन्हें योजनाओं का शायद ही पूरा लाभ मिल पाता है।

हाल के दिनों में कुछ संगठनों के माध्यम से चलाए गए कार्यक्रमों के कारण उनमें शिक्षा के प्रति कुछ जागरूकता आयी, लेकिन बाकी के क्षेत्रों में आज भी उनकी स्थिति काफी दयनीय है। बताते हैं कि इस समुदाय के लोगों की जीविका का मुख्य साधन रस्सी बनाना और बेचना है। गांव में घूम-घूमकर सीमेंट की बोरी खरीदना, उससे रस्सी बनाना, उसे औने-पौने दाम में बेचना और लकड़ी-पत्तों से बनी झोपड़ी में रहना ही इनकी दिनचर्या है।

इस समुदाय के लोगों का मानना है कि अगर विभाग जमीनी स्तर पर आकर मदद करे तो उनके जीवनयापन के तरीके में सुधार हो सकता है। इस समुदाय के लोगों में रस्सी बनाने, साइकिल मरम्मत करने, गाड़ी चलाने का हुनर है, लेकिन पूंजी के अभाव में वेलोग बेरोजगार की तरह बैठे रहते हैं। वे विभाग से मिले सामान को आसपास के ग्रामीणों के पास बेचकर पैसे को शराब में बहा देते हैं। जानकारों का कहना है कि बिरहोर समुदाय का सर्वागीण विकास और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए स्थायी रोजगार की व्यवस्था करनी होगी।


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