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लक्ष्य को हासिल करने में जल्दीबाजी नहीं करें युवा : डा.ऋचा

संताल परगना कालेज दुमका के मनोविज्ञान विभाग के अंतर्गत संचालित मानसिक स्वास्थ्य परामर्श केंद्र की ओर से वेबिनार का आयोजन किया गया था।

By JagranEdited By: Published: Sat, 25 Sep 2021 09:25 PM (IST)Updated: Sat, 25 Sep 2021 09:25 PM (IST)
लक्ष्य को हासिल करने में जल्दीबाजी नहीं करें युवा : डा.ऋचा
लक्ष्य को हासिल करने में जल्दीबाजी नहीं करें युवा : डा.ऋचा

संताल परगना कालेज दुमका के मनोविज्ञान विभाग के अंतर्गत संचालित मानसिक स्वास्थ्य परामर्श केंद्र की ओर से शनिवार को कालेज के प्राचार्य सह संरक्षक डा. खिरोधर प्रसाद यादव कि अध्यक्षता कापिग स्ट्रेटेजी आफ मेंटल हेल्थ प्राब्लम्स इन एडोलेसेंट्स एंड यूथ्स विषय पर राष्ट्रीय वेब लेक्चर सीरिज आठ का आयोजन किया गया।

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मौके पर डा. खिरोधर प्रसाद यादव ने कहा कि आज का विषय कालेज के विद्यार्थियों के लिए बेहद महत्व रखता है। वहीं, मानसिक स्वास्थ्य परामर्श केंद्र के निदेशक डा. विनोद कुमार शर्मा ने कहा कि आज किशोर हो या युवा घर व बाहर तरह-तरह की विसंगतियों में पड़कर आक्रोशित, उदास व तनावग्रस्त हो रहे हैं। अवसादग्रस्त हो रहे हैं। नशा का सेवन कर अपनी जिदगी को तबाह कर रहे हैं। आत्महत्या जैसी घृणित घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। भविष्य की चिता, करियर का चुनाव व सही मार्गदर्शन के अभाव में युवा भटक रहे हैं। गलत रास्ते अपना कर समाज में असुरक्षा व अशांति फैला रहे हैं। अपनी हीनता को दूर करने के लिए गरीब, कमजोर व महिला को अपना निशाना बनाते हैं। कहा कि ऐसे में कापिग स्ट्रेटेजी का सही होना अत्यावश्यक है ताकि जीवन को भटकाव से बचाया जा सके। बतौर मुख्य अतिथि चिरायूं मेडिकल कालेज एंड हास्पिटल के सीनियर क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट डा. ऋचा प्रियंवदा ने कहा कि एक ओर किशोरावस्था, जहां शारीरिक विकास का दौर होता है। वहीं युवावस्था अनुभवों से परिपक्व होने की दहलीज पर होती है। यह अवस्था किसी चीज के लिए पूर्ण व आत्मनिर्भर नहीं होता है, जिसके कारण असफलता या लक्ष्य नहीं पाने की स्थिति में तुरंत आवेग व आक्रोश का भाव पैदा हो जाता है। बिना परिणाम को जाने प्रतिक्रिया देने को उतारू हो जाते हैं। इस पर नियंत्रण रखने की जरूरत है। समस्या के प्रति प्रतिक्रिया देने से पहले यह जानने का प्रयास होना चाहिए कि हमारे पास रिसोर्सेज क्या हैं। लक्ष्य को हासिल करने की जल्दीबाजी नहीं करें। क्योंकि, यह असफलता की स्थिति में मानसिक पीड़ा देती है। जिससे पूरा परिवार व समाज प्रभावित होता है। अपने नजरिया को बदलते हुए वातावरण की समस्याओं से जूझने के लिए अपने में अनुकूलनशीलता को विकसित करें। अपने अंदर की क्षमता को बिना सुझाव के निखरने का मौका दें। जीवन शैली में अपेक्षित बदलाव कर युवा व किशोर जीवन को तनावों से दूर रह सकते है। मुख्य वक्ता पारस एचएमआरआइ, पटना बिहार के नैदानिक मनोवैज्ञानिक डा. नीरज वेदपुरिया ने कहा किशोर व युवाओं को सक्रिय व ऊर्जावान रहने के लिए एक सीमा तक उनमें तनाव रहना आवश्यक है। खेद की बात यह है कि भारत युवाओं का देश होकर भी सबसे अधिक मानसिक बीमारी से ग्रसित युवा वर्ग ही हैं। इतना ही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2019 के एक रिपोर्ट के मुताबिक सबसे अधिक मानसिक बीमारी भारत में है। डा. नीरज ने किशोर व युवाओं को तनाव से बचने व मानसिक स्वास्थ्य रखने के उद्देश्य से कुछ कापिग स्ट्रेटेजी की भी चर्चा की। जिसमें पारिवारिक सहयोग, रूटीन के हिसाब चलना व छोटे-छोटे लक्ष्यों को हासिल करने की प्रेरणा, संतुलन व पौष्टिक आहार हो जिससे मस्तिष्क सही ऊर्जा के साथ काम कर सके। ओपन कम्युनिकेशन हो जहां इमोशनल वेंटिलेशन हो। योगा,व्यायाम के साथ कैसे ना कहने की भी क्षमता विकसित करनी चाहिए। तनाव को कम करने के लिए लाफ्टर शो या कार्यक्रम का भी मजा लेना चाहिए। साथ ही हर नेगेटिविटी में पाजिटिविटी तलाशने की आदत डालनी चाहिए।

कार्यक्रम में प्रो. पूनम बिझा, दशरथ महतो, डा.कमल शिवकांत हरि, डा. उमा भारती समेत कई मौजूद थे।


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