कर्मा में बासी भात खाकर पारण करने की परंपरा
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चिकनिया : भाई-बहन के रिश्तों की डोर को मजबूत करने का पर्व है कर्मा और इस पर्व में कर्मा करनेवाली
महिलाएं बासी भात खाकर पारण करने की परंपरा का निर्वहन करती हैं। ऐसी मान्यता वर्षो से चली आ रही है और इसका पालन व्रत करनेवाली महिलाएं काफी विधि-विधान व अनुष्ठान पूर्वक करती हैं और भाई के दीघार्यु होने की कामना करती हैं। कर्मा को लेकर दुमका के ग्रामीण क्षेत्रों में जबरदस्त उत्साह का माहौल है। कर्मा पर्व भाद्रपद मास शुक्लपक्ष कि तृतीया तिथि से शुरू होती है और इसका समापन एकादशी को होता है। जानकार बताते हैं कि तृतीया तिथि को सुबह तालाब या नदी में स्नान कर एक डाला में बालू डाल कर विभिन्न प्रकार के बीज को डाला जाता है और प्रतिदिन इसमें सुबह-शाम अगरबत्ती दिखाकर कर्मा का गीत गाकर इसकी पूजा की जाती है। एकादशी को दिन भर निर्जला उपवास रहकर रात में घर के बाहर कर्म डाल गाड़कर पुआ-पकवान, फल-फूल, खीरा, खीरा पत्ता, चना आदि चढ़ाकर इसकी पूजा की जाती है। व्रत रखनेवाली युवतियां गांव के बुजुर्ग से करमा का कथा सुनती हैं और इसके उपरांत प्रसाद का वितरण किया जाता है। जबकि व्रत रखनेवाली युवतियां इस दिन अन्न के बजाए फलाहार करती हैं। एकादशी के अगले दिन सुबह नदी या तालाब में डाला विसर्जन करने के उपरांत ही व्रत करने वाली युवतियां बासी भात खाकर व्रत तोड़ती हैं।