दीपावली के लिए बासुकीनाथ मंदिर सज कर तैयार
बासुकीनाथ : विश्व प्रसिद्ध बाबा बासुकीनाथ के दरबार में दीपावली की पूर्व संध्या पर मंगलवार को मंदिर प्रबंधन के द्वारा भव्य सजावट की गई।
बासुकीनाथ : विश्व प्रसिद्ध बाबा बासुकीनाथ के दरबार में दीपावली की पूर्व संध्या पर मंगलवार को मंदिर प्रबंधन के द्वारा भव्य सजावट की गई। मंदिर प्रबंधन के द्वारा बासुकीनाथ मंदिर एवं आसपास में आकर्षक विद्युत सज्जा, फूलों से सजावट एवं केले के खंभों से तोरणद्वार बनाया गया था। दीपावली के एक दिन पूर्व काíतक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि दिन मंगलवार जिसे नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। देर शाम तक करीब 20 हजार भक्तों ने पूजा-अर्चना किया। इस मौके पर देश विदेश से आए भक्तों ने बाबा बासुकीनाथ की पूजा-अर्चना की। बासुकीनाथ मंदिर प्रभारी सह जरमुंडी अंचलाधिकारी विकास कुमार त्रिवेदी ने मंगलवार की शाम बासुकीनाथ मंदिर पहुंचकर विधि व्यवस्था का जायजा लिया एवं मंदिर कर्मियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिया। मंदिर प्रबंधन के द्वारा काली पूजा, दीपावली एवं छठ पूजा को लेकर मंदिर प्रबंधन के द्वारा आवश्यक व्यवस्था की गई थी।
क्या है नरक चतुर्दशी
बासुकीनाथ : काíतक मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इसे छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं। लेकिन इनमें सबसे मशहूर कथा भगवान श्रीकृष्ण और नरकासुर नामक असुर की है। जिसने 16 हजार कन्याओं का बंदी बनाकर रखा था। जिससे भगवान श्रीकृष्ण ने बाद में विवाह किया था। पुराणों के अनुसार, नरकासुर नामक असुर की शक्ति से देवी-देवताओं और धरती पर भी सभी लोग उससे परेशान थे। असुर ने संतों के साथ 16 हजार स्त्रियों को भी बंदी बनाकर रखा था। जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवता और ऋषि-मुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए और उनको अपनी परेशानी के बारे में बताया। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नरकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया। लेकिन नरकासुर को एक स्त्री के हाथों मरने का श्राप था। इसलिए भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और उनकी सहायता से नरकासुर का वध किया। जिस दिन नरकासुर का अंत हुआ, उस दिन काíतक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी।
दीपदान की परंपरा हुई प्रारम्भ
बासुकीनाथ : नरकासुर के वध के बाद श्रीकृष्ण ने कन्याओं को बंधन से मुक्त करवाया। मुक्ति के बाद कन्याओं ने भगवान कृष्ण से गुहार लगाई कि समाज अब उन्हें कभी स्वीकार नहीं करेगा। इसके लिए आप कोई उपाय निकालें। हमारे सम्मान वापस दिलवाएं। समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए भगवान कृष्ण ने सत्यभामा के सहयोग से 16 हजार कन्याओं से विवाह कर लिया। 16 हजार कन्याओं को मुक्ति और नरकासुर के वध के उपलक्ष्य में घर-घर दीपदान की परंपरा शुरू हुई।