पशुधन के सम्मान में होता सोहराय
दुमका : संताल समुदाय में भी पशुधन की खास महत्ता है। संताल समुदाय के लोग भी गोर्वधन पूजा की तरह ही सोहराय में पशुधन की पूजा-अर्चना काफी विधि-विधान से करते हैं।
दुमका : संताल समुदाय में भी पशुधन की खास महत्ता है। संताल समुदाय के लोग भी गोर्वधन पूजा की तरह ही सोहराय में पशुधन की पूजा-अर्चना काफी विधि-विधान से करते हैं। इसी कड़ी में गुरुवार को दिसोम मारंग बुरु युग जाहेर आखड़ा की ओर से कुकुरतोपा गांव में सोहराय नृत्य का आयोजन किया गया और ग्रामीणों को सोहराय पर्व के महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। धर्म गुरु सोमय किस्कू ने इस पर्व के पीछे की धाíमक मान्यता के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि सोहराय पर्व संताली कैलेंडर के अनुसार काíतक महीने में मनाया जानेवाला पर्व है लेकिन कालांतर में संताल हूल के कारण कई जगहों में सोहराय का पर्व जनवरी-फरवरी में मनाने का प्रचलन शुरूहो गया। इसकी वजह से लोगों में यह धारणा हो गई है कि संताल समुदाय के लोग फसल के पकने के उपलक्ष्य में सोहराय मनाते हैं। सोमाय के मुताबिक सोहराय पर्व की यह सही व्याख्या नहीं है। वास्तव में पशुधन के सम्मान में सोहराय पर्व मनाने कि धाíमक मान्यता है। सोमय के मुताबिक संतालों के इष्ट देव ठाकुर और देवी ठाकरन ने मानव जाति कि भलाई के लिए पशुधन, गाय, बैल को पृथ्वी लोक में भेजा था ताकि मनुष्य खेतीबाड़ी और पौष्टिक आहार दूध का सेवन कर सकें। इसके बदले में मनुष्यों को गाय, बैल आदि का सेवा करना था और ठाकुर के नाम पूजा-पाठ करना था लेकिन समय के अनुसार ऐसा नहीं हुआ और मनुष्य जाति पशु का शोषण, अत्याचार करने लगे और ठाकुर की पूजा-अर्चना भी नहीं करने लगे। जब पशुओं पर अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया तो पशु के प्रतिनिधि कपिल गाय ने ठाकुर से इसकी शिकायत की। गुहार लगाते हुए कहा कि सभी पशुओं को वापस स्वर्ग लोक बुला लिया जाए जिस पर ठाकुर सहमत हो गए लेकिन जब यह बात ठकुरान को पता चला तो वे मानव समुदाय के अस्तित्व को हवाला देते हुए कोई हल निकालने की मंशा जताई। इस पर लिट्ट मारंग बुरु को पृथ्वी लोक से बुलाया गया और उन्हें पूरी स्थिति बताते हुए कहा गया कि अगर पशुओं पर मानव जाति का अत्याचार अविलंब बंद कर उन्हें सम्मान नहीं दिया गया तो मानव समुदाय का अस्तित्व भी संकट में पड़ जाएगा। इस लिट्ट मारंग बुरु ने पशुओं पर अत्याचार बंद करने व इनके सम्मान में सोहराय का आयोजन करने का भरोसा दिया और तब से सोहराय का आयोजन पशु के सम्मान में संताल आदिवासी समुदाय के लोग करते हैं जो पांच दिवसीय होता है। इस दौरान मौके पर लीलमुनी हेंब्रम, जोबा हांसदा, सुनीता टुडू, मिनी मरांडी, मर्शिला हेंब्रम, बालेश्वर टुडू, मंगल मुर्मू, लोरेन मुर्मू, विलियम मुर्मू, मोनिका हांसदा, एलिजाबेथ हेंब्रम, रासमती किस्कू, जोबा टुडू, सुकुरमुनी मुर्मू, मीरुनी किस्कू, रूथ मरांडी समेत काफी संख्या में महिला व पुरुष मौजूद थे।