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किशोरावस्था में तनाव व आत्महत्या विषय पर सेमिनार

दुमका : सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय का अंगीभूत संताल परगना कॉलेज में मेंटल हेल्थ काउंसि¨लग सेंटर के द्वारा मनोविज्ञान विभाग में किशोरावस्था में तनाव व आत्महत्या विषय पर बुधवार को एक सेमिनार आयोजित किया गया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Dec 2018 04:13 PM (IST)Updated: Wed, 19 Dec 2018 04:13 PM (IST)
किशोरावस्था में तनाव व आत्महत्या विषय पर सेमिनार

दुमका : सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय का अंगीभूत संताल परगना कॉलेज में मेंटल हेल्थ काउंसि¨लग सेंटर के द्वारा मनोविज्ञान विभाग में किशोरावस्था में तनाव व आत्महत्या विषय पर बुधवार को एक सेमिनार आयोजित किया गया। सेमिनार को संबोधित करते हुए केंद्र के समन्वयक सह विभाग के शिक्षक डॉ. विनोद कुमार शर्मा ने कहा कि किशोरावस्था मनोशारीरिक रूप से परिवर्तन की एक तीव्र अवस्था है जिसे सही दिशा देने की सख्त आवश्यकता है। कहा कि छोटी-छोटी बात पर उग्र होना, चिड़चिड़ापन दिखाना, बिना सोचे-समझे कदम उठाना और फिर बाद में इसके लिए पछतावा भी होना है एवं विश्वास में कमी आना कुछ ऐसे लक्षण हैं जिनके बीच में यह उम्र गुजरती है। इस उम्र में इन्हें जैविक रूप से समाज परिवारिक मान-मर्यादाओं को पार व्यवहार करने के लिए भी उन्हें अचेतनत: उत्तेजित करता है। इतना ही नहीं मानसिक रूप से अपरिपक्वता कि स्थिति में उन्हें अनेकानेक दैनिक जीवन की कार्यकलापों की उलझनों से भी होकर गुजरना पड़ता है जिससे उनमें तनाव का उत्पन्न होना आम हो जाता है। विषय को तर्क पूर्ण सोचने कि अक्षमता, कमजोर अहं (जो वास्तविकता के नियम पर काम करता है), आत्मविश्वास की कमी, परिस्थितियों से पलायन करने जैसी प्रवृतियां इन्हें इतना कमजोर बना देता है कि वे मामूली-सी बात व असफलता पर तीव्र संवेगात्मक विक्षोभ में आ जाते हैं। असफलता से निराश ये ना केवल अपने को कमजोर, दुनिया में असहाय व सबकी नजर में बेकार समझने लगते हैं बल्कि अंदर ही अंदर आक्रोशित भी होते रहते हैं। घोर अपमानजनक स्थिति में ये विकल्प के रूप में मौत को ही बेहतर समझता है और मौका पाकर ¨नदनीय कदम उठा लेते हैं। आवश्यकता इस बात कि है कि घर-परिवार, समाज, शिक्षक, रिश्तेदार सभी ना केवल इस उम्र की होनेवाली परेशानियों को सकारात्मक व्यवहार दें बल्कि इनकी भावनाओं को भी उतना ही महत्व दें ताकि उनका मनोशारीरिक विकास सही दिशा में हो सके। डॉ. विनोद ने कहा कि ऐसी स्थिति में जरूरत पड़े तो मन:चिकित्सीय परामर्श लेने में संकोच नहीं करना चाहिए। सेमिनार में मंच का संचालन विभाग के डॉ. किलिश मरांडी ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में छात्र व छात्राएं मौजूद थीं।

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